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सेहत : जब रागों के आगे विवश भी हो जाते हैं रोग, आप भी अपना सकते हैं म्‍यूजिक थेरेपी

आज के समय में ज्यादातर लोग तनाव का शिकार हैंं किसी को काम का तनाव तो किसी को घर का तो किसी को पैसे का, कोई न कोई वजह सभी के पास है तनाव के साथ जीने के लिए।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 04 Oct 2018 03:43 PM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 07:00 AM (IST)
सेहत : जब रागों के आगे विवश भी हो जाते हैं रोग, आप भी अपना सकते हैं म्‍यूजिक थेरेपी
सेहत : जब रागों के आगे विवश भी हो जाते हैं रोग, आप भी अपना सकते हैं म्‍यूजिक थेरेपी

वाराणसी [वंदना सिंह] । आज के समय में ज्यादातर लोग तनाव का शिकार हैंं। किसी को काम का तनाव तो किसी को घर का तो किसी को पैसे का। कोई न कोई वजह सभी के पास है तनाव के लिए। मगर क्या आप जानते हैं कि संगीत के जरिए रोगों से मुक्ति या रोगों को रोका जा सकता है। वैसे भी रोगों का मूल तनाव ही है। भारत में प्राचीन काल से ही इसका प्रयोग किया जा रहा है मगर अब लोग इसे भूलते जा रहे हैं। 

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खास बात यह कि पहले के समय में जब महिलाएं काम करती थीं या जांता चलाती थीं, किसान खेतों में अनाज की कटाई या बोआई करते थे यानी जिस काम में ताकत लगती थी उस वक्त 'जंतसार' गीत गाया जाता था। दरअसल संगीत चिकित्सा में लोकगीत शारीरिक, मानसिक का संतुलन बनाते थे जिससे थकान नहीं होती थी। गीतों को गाते और सुनते सुनते शरीर में ऊर्जा का संचार होने लगता था। इस दौरान लोग खुशी खुशी काम करते थे। इसी प्रकार सोलह संस्कार के गीत, जीवन से लेकर मृत्यु तक के गीतों में चिकित्सा है। भारत में तो मृत्यु के वक्त 'मरसिया' गीत गाया जाता था।

 

ये राग दूर करते हैं तनाव

सुबह का राग 'भैरव, अहीर भैरव'

दोपहर का राग 'सारंग'

शाम का राग 'भूपाली'

रात में 'मालकोंस' ये सभी शांति देने वाले राग हैं। 

ख्‍यात शास्त्रीय गायिका डा.रेवती साकलकर बताती हैं कि विदेशों में भी अब संगीत चिकित्सा के लिए शोध चल रहे हैं। भारत में भी कई शहरों में संगीत चिकित्सा का काम चल रहा है। मौसम आधारित राग भी होते हैं। यज्ञों में वैदिक ऋ चाओं का स्वर मन को एकाग्रता देता है। भारतीय समाज में संगीत चिकित्सा को ऋषि मुनियों ने वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध किया है इसीलिए इसके काल, रस, समय भी निर्धारित हैं। प्राचीन काल में माना जाता था कि जो वैद्य होते थे वे औषधि विज्ञान के साथ संगीत की भी जानकारी रखते थे। मेरा मानना है कि संगीत में समग्र दृष्टि से जीवन जीना सिखाया गया है। आयुर्वेद आयु का वेद कहा गया। इसी तरह संगीत चिकित्सा भी उसी की कड़ी है। भारत में संगीत एक तरह से चिंतन, व्यवहार का हिस्सा रही है। ऐसा कहीं नहीं होता होगा। भारतीय समाज में हर एक पक्ष को संगीत से जोड़ा गया होगा। भारत को इसका सदियों से ज्ञान रहा है। सर्वसाधारण मनुष्य हमारे यहां संगीत को जीता है।


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