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दुश्मनों को छिपकर ठिकाने लगाने में माहिर है Mukhtar ansari, जेल को समझता रहा सबसे सुरक्षित ठिकाना

मुख्तार अंसारी अपने दुश्मनों तथा विरोधी पक्ष के गवाहों को छिपकर ठिकाने लगाने में माहिर है। जेल को सुरक्षित ठिकाना समझने वाले मुख्तार ने अधिकांश घटनाओं को जेल के भीतर रहते अंजाम दिलाया यही कारण है कि अधिकांश मामलों में वह साक्ष्य के अभाव में बरी होता चला गया है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 08:50 AM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 01:48 PM (IST)
जेल को सुरक्षित ठिकाना तथा अपना रईसखाना समझने वाले मुख्तार ने अधिकांश घटनाओं को जेल के भीतर रहते अंजाम दिलाया।

वाराणसी [शैलेश अस्थाना]। लगभग तीन दशक से पूर्वांचल समेत देश के कई राज्यों में खौफ का पर्याय बना मऊ विधायक मुख्तार अंसारी अपने दुश्मनों तथा विरोधी पक्ष के गवाहों को छिपकर ठिकाने लगाने में माहिर है। यह दुर्दांत माफिया अक्सर आमने-सामने की मुठभेड़ से बचता रहा है।

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आमने-सामने तभी हुआ जब कभी विरोधियों ने इसे उसरी चट्टी जैसी जगहों पर घेर लिया था। उसरी चट्टीक्वकी घटना 2002 में इसके धुर विरोधी माफिया डान बृजेश के साथ हुई थी, इस घटना में इसके पक्ष के तीन लोग मारे गए थे, बताते हैं कि किसी तरह मुख्तार की जान बची थी। इस घटना में बृजेश भी घायल हुआ और फिर फरार हो गया। इसके बाद के चुनावों में वह लगातार अपने भाषणों में इसका जिक्र करता था और इसे अल्लाह की मेहरबानी और अपने क्षेत्र के अवाम की दुआ बताकर अपने समर्थकों की सहानुभूति हासिल करता रहा। जेल को सुरक्षित ठिकाना तथा अपना रईसखाना समझने वाले मुख्तार ने अधिकांश घटनाओं को जेल के भीतर रहते अंजाम दिलाया, यही कारण है कि अधिकांश मामलों में वह साक्ष्य के अभाव में बरी होता चला गया है।

मुख्तार के विरुद्ध हत्या का पहला केस गाजीपुर जनपद के हरिहरपुर गांव के सच्चितानंद राय की हत्या में दर्ज हुआ था। बताते हैं कि सच्चितानंद ठेकेदार थे और क्षेत्र में रसूख वाले थे, वह चुनाव लडऩा चाहते थे, अपना दबदबा कायम करने तथा अपने भाई अफजाल अंसारी को चुनाव जीताने के लिए मुख्तार ने उन्हें रास्ते से हटा दिया। उन दिनों के कुख्यात आपराधिक गिरोह साधू सिंह और मकनू सिंह से जुड़कर मुख्तार ने अनेक गैंगवार तथा घटनाओं को अंजाम दिलाया। मुख्तार को एक सटीक निशानेबाज व बढिय़ा शूटर माना जाता है।

गाजीपुर में अपना रसूख कायम करने के लिए 90 के दशक में उस दौर के एक और नामी अपराधी रणजीत सिंह की हत्या हुई। बताते हैं कि मुख्तार व उसके साथियों ने उनके पड़ोस के एक घर में छिपकर दो दिनों तक उनकी गतिविधि का जायजा लिया और एक कमरे की दीवार से ईंट निकालकर उनकी उस समय हत्या कर दी, जब वह सुबह अपने दरवाजे पर दातून कर रहे थे। इसी तरह अपने गैंग साधू सिंह-मकनू सिंह के धुर विरोधी चंदौली के साहब सिंह की हत्या उस समय की, जब वह जेल से पुलिस की वैन से वाराणसी कचहरी पहुंचे और वैन से उतर रहे थे।

बताते हैं कि उतरते समय ही एक काले रंग की अंबेसडर कार में सवार मुख्तार और उसके साथियों ने गोलियां बरसाकर साहब सिंह को मौत के घाट उतार दिया और भाग निकले। इसके बाद जितने भी गैंगवार हुए, सबमें मुख्तार कभी सामने से नहीं दिखा, बाद में उसका नाम जरूर सामने आया। भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या हो या फिर मऊ के ए श्रेणी ठेकेदार मन्ना सिंह दोहरा हत्याकांड और फिर इसी कांड के गवाह ठेकेदार रामचंद्र मौर्य और सरकारी गनर सतीश कुमार हत्याकांड, साथ ही दोनों घटनाओं के अनेक गवाहों की हत्या इन सारी घटनाओं को मुख्तार ने जेल से ही अंजाम दिलवाया था।


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