कमीशन का खेल : स्कूलों में साइड बुक के नाम पर अभिभावकों की जेब पर पड़ रहा डाका
वाराणसी में कमीशन का खेल रोकने के लिए शासन की ओर से सभी विद्यालयों को एनसीईआरटी की पुस्तकों से पढ़ाने का निर्देश है।
वाराणसी,जेएनएन। कमीशन का खेल रोकने के लिए शासन की ओर से सभी विद्यालयों को एनसीईआरटी की पुस्तकों से पढ़ाने का निर्देश है। इसके बावजूद तमाम कान्वेंट स्कूलों में साइड बुक और वर्कबुक के नाम पर निजी प्रकाशकों को बढ़ावा दिया जा रहा है। कई स्कूलों के किताबों की लिस्ट में बकायदा साइड बुक का नाम भी दर्ज है। यही नहीं प्रकाशक व लेखक का भी नाम लिखा हुआ है। जबकि एनसीईआरटी से निजी प्रकाशकों की किताबें कई गुनी महंगी है। एनसीईआरटी की मैथ की किताब की कीमत जहां 60 रुपये है। वहीं निजी प्रकाशक की किताबें 250-300 रुपये हैं। ज्यादातर स्कूलों में नर्सरी से कक्षा आठ तक निजी प्रकाशकों की ही किताबें पढ़ाई जा रही है। ऐसे में अभिभावक निजी प्रकाशकों की पुस्तकें क्रय करने को बाध्य है।
इस प्रकार से अभिभावकों की जेब पर अब भी डाका डाला जा रहा है। उप्र स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क निर्धारण) अधिनियम के तहत भले ही कमीशनखोरी रूकने का दावा किया जा रहा है लेकिन हकीकत कुछ और ही है। निजी प्रकाशकों व निजी विद्यालयों के बीच सांठगांठ अब भी जारी है। यही कारण है कि कान्वेंट स्कूलों की किताबें सभी दुकानों पर नहीं मिलती है। यूनिफार्म की भांति किताब-कापी भी कुछ खास दुकानों पर ही मिलती है। ऐसे में अभिभावक इन्हीं चंद दुकानों से किताबें खरीदने के लिए बाध्य है। वहीं ज्यादातर दुकानदार प्रिंट रेट पर ही किताबें बेच रहे हैं। निजी प्रकाशकों की किताबें अच्छी-खासी कमीशन होने के बावजूद अभिभावकों को एक रुपये की छूट नहीं देते हैं। वहीं स्कूलों को मोटा कमीशन देते हैं।
हर साल बढ़ रहा दाम : प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों के दामों में हर साल इजाफा हो रहा है। इस वर्ष भी प्राइवेट किताबों के दामों में 30 फीसद तक वृद्धि हुई है। जबकि एनसीईआरटी की किताबों के दामों में महज पांच रुपये की वृद्धि हुई है। नई किताबें खरीदना मजबूरी : बच्चों के लिए हर साल नई किताबें खरीदना अभिभावकों की मजबूरी है। छोटे क्लास में टेस्ट बुक होने के कारण पुरानी किताबें काम नहीं देती है। वहीं टेस्ट बुक 50 रुपये से लेकर 250 रुपये तक के हैं।
नर्सरी की किताबें ज्यादा महंगी : हाईस्कूल व इंटरमीडिएट में एनसीईआरटी की किताबें चलने के कारण अभिभावकों के पाकेट को काफी राहत मिली है। यदि बच्चे साइड बुक व वर्कबुक न लें तो हाईस्कूल व इंटर की किताबें सिर्फ हजार रुपये में मिल जा रही है। वहीं नर्सरी से जूनियर हाईस्कूल स्तर पर निजी प्रकाशकों की किताबें चलने के कारण अभिभावकों को करीब 2500 से लेकर 3500 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।
पन्ने हुए कम, बढ़ गए दाम : किताबों के साथ-साथ कापियां भी महंगी हुई है। इसके अलावा कापियों के पन्ने भी कम कर दिए गए हैं। कुछ ब्रांडेड कापियां जिसके कागज अच्छे हैं। पहले 180 पेज के रजिस्टर की कीमत 40 रुपये थी। अब इसे 172 पेज कर दिया गया है। वहीं दाम बढ़ा कर 45 रुपये कर दिया गया है। इसी प्रकार 120 पेज की कापी के दाम 28 रुपये से बढ़ाकर 32 रुपये कर दिया गया है। पांच रुपये में मिलने वाला 32 पेज का टेस्ट कापी अब 20 पेज का कर दिया गया है।
30 रुपये की डायरी 100 रुपये में : प्राय: सभी स्कूलों में डायरी का प्रचलन है। अभिभावकों का कहना है कि थोक के भाव में यदि डायरी छपवाया जाय तो महज 30 रुपये कीमत आएगी। वहीं डायरी का 100-100 रुपये वसूला जाता है। इसके अलावा टाई-बेल्ट के नाम पर अलग से पैसा लिया जाता है।
बैग, स्टेशनरी का भी खर्च : नया सत्र शुरू होते ही कापी, किताब के साथ बैग पेंसिल व अन्य स्टेशनरी पर खर्च करना अभिभावकों की मजबूरी है। बाजार में अच्छे बैक 700 से लेकर 3000 रुपये तक मौजूद हैं।
एनसीईआरटी की नकली किताबें भी बाजार में : इस वर्ष एनसीईआरटी की किताबों का अभाव नहीं है। हालांकि कक्ष छह, सात व आठ में साइंस व मैथ की पुस्तकों का अभाव बना हुआ है। इसे देखते हुए एनसीईआरटी की नकली किताबें भी बाजार में बिक रही है। एनसीईआरटी में वॉटर मार्क से होलोग्राम हर पन्ने पर है। जबकि नकली किताबों में वॉटर मार्क गायब हैं।