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भक्ति की हृदय से मस्तिष्क यात्रा में बुद्धि दोष बाधक

वाराणसी : मानस मसान कथा के चौथे दिन मंगलवार को राष्ट्र संत मोरारी बापू ने रामचरित मानस की चौपाइय

By JagranEdited By: Published: Wed, 25 Oct 2017 03:05 AM (IST)Updated: Wed, 25 Oct 2017 03:05 AM (IST)
भक्ति की हृदय से मस्तिष्क यात्रा में बुद्धि दोष बाधक
भक्ति की हृदय से मस्तिष्क यात्रा में बुद्धि दोष बाधक

वाराणसी : मानस मसान कथा के चौथे दिन मंगलवार को राष्ट्र संत मोरारी बापू ने रामचरित मानस की चौपाइयों से महाश्मशान की व्याख्या की। कहा भक्ति यदि हृदय से मस्तिष्क तक पहुंच जाए तो देह आधिदैविक मसान बन जाती है। भक्ति की इस यात्रा में बुद्धि के चार दोष यानी भ्रम, प्रलोभन, प्रमाद व श्रवण में असावधानी बाधक बनते हैं।

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उन्होंने कहा बुद्धि बड़ी प्यारी है लेकिन भक्ति न हो तो वह सिर्फ भ्रम है। ईष्र्या न करने से अच्छी गुणवत्ता कोई और नहीं है, उसे हमें शांत चित्त से ग्रहण करना चाहिए। वास्तव में हमारे विचार ही हमारे भूत-प्रेत हैं। हमारे कुछ विचार सबल व कुछ निर्बल होते हैं। जिसके दिल में संवेदना व हृदय में हेतु नही हैं वो सब भी प्रेत हैं। कैलाश एक सिद्धपीठ है, वहां भी प्रेत निवास करते हैं मगर वह सकारात्मक सोच हैं।

मसान महिमावंत स्थान

रामकथा राम की ही तरह कोमल भी है और कराल भी है। रामचरित मानस का आधिदैविक रूप सुहाना है। सभी कामना सिद्ध हो जाएं या कामना निकल जाएं यही मानस मसान है। मानस मसान समान है और ये तीनों एक जैसे शब्द हैं। मानस में कई तरह के मसान हैं जैसे दशरथ का मसान सरयू का तीर, बाली का मसान रणासन, जटायु का मसान राम के समीप और शबरी का मसान अग्नि में है। आदमी के हृदय में लगाव न हो तो वह श्मशान समान ही है।

भागवत प्रेम बढ़ाता मानस

बापू ने कहा कि परम तत्व ही एक ऐसी जगह है जिसके साथ हम चाहे जो नाता जोड़ सकते हैं। तुलसी को गाओगे तो मैं पक्का तो नहीं कह सकता लेकिन व्यास पीठ पर बैठा हूं तो कहता हूं कि आपकी भक्ति बढ़ेगी, भागवत प्रेम बढे़गा और बढ़ाने जैसी कोई चीज है तो वो है प्रभु भक्ति।

परमात्मा से बढ़कर कुछ नही

परमात्मा के नाम से बढ़कर दुनिया में कोई दूसरा नाम या लाभ नहीं है। जीवन की एक सुंदर भाषा का व्याकरण होना चाहिए। ईश्वर के साथ किसी न किसी रूप में संबंध जोड़ दो। जिसके संतान नहीं हो वो अपने ईष्ट या बाल गोपाल से संबंध जोड़े। सुख-दुख में साथ देने वाला ना हो तो वह समय शून्य होता है। माला लेकर कोई बैठ जाता है तो ब्रह्म स्वयं नीचे आ जाता है। माला जपते समय हमारी आखों का कोई ठिकाना नही होता है।

कसौटियां आदमी को जाग्रत करती है

शास्त्र स्वयं उदार बनकर मार्ग दिखाते हैं। कभी-कभी हम अच्छी संगत में होते हैं लेकिन अच्छाई का लाभ नहीं मिल पाता है। जागरण महत्वपूर्ण है और कसौटिया आदमी को जागृत करती हैं। द्वार पर शिव तत्व और घर में शक्ति तत्व की पहचान कराने के लिए गुरु तत्व चाहिए। महादेव का चरित समुद्र है और वेद भी उसे पार नही कर सकते है।

समर्पण के बाद कुछ नही बचता

बंधन की व्याख्या सुनना चाहते हो तो किसी से कुछ भी लेना बंद कर दो और देना प्रारंभ कर दो। इससे बंधन मुक्त हो जाओगे। व्यक्ति को ऐसा काम करना चाहिए जो विवेक सम्पन्न हो। ऐसा कार्य करना चाहिए जो अपनी साम‌र्थ्य में कर सकें। ऐसा कार्य करना चाहिए जिसमें दूसरों का अहित न हो। परमात्मा भी जिससे प्यार करने लग जाता है उसे पहले तोड़ देता है ताकि उसमें कोई मैल न रहे, कोई कपट न बचे। जीवन में जब समर्पण त्याग देंगे तो कुछ भी नही बचेगा।

रिश्ते स्वयं बनते हैं

व्यवस्था करके जो रिश्ते बनाए जाते हैं, वह स्वार्थ परक होते हैं। इनकी अधिक उम्र नहीं होती लेकिन वो जो रिश्ता बनाता है वो अखंड होता है। इसलिए रिश्ता हम न बनाएं, उसे ही निर्णय करने दें। आदमी को चाहिए कि जितना समय मिले उसमें सत्य, करुणा और प्रेम को परिभाषित करे। इसके लिए शक्ति चाहिए और कभी भी इसका अहंकार नही किया जाना चाहिए।

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काशीनरेश ने उतारी आरती

कथा श्रवण करने काशीनरेश महाराज अनंत नारायण सिंह भी उपस्थित हुए। बापू ने इस दौरान अयोध्या व काशी के रामनगर की तुलना की। काशी नरेश, संतोष दास महाराज सतुआ बाबा, संयोजक संस्था संत कृपा सनातन संस्थान के चेयरमैन व मुख्य यजमान मदन पालीवाल, ट्रस्टी प्रकाश पुरोहित, रवींद्र जोशी, रूपेश व्यास, विकास पुरोहित, मंत्रराज पालीवाल आदि ने व्यापीठ की आरती उतारी।


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