भावों का ज्वार, आंखों से अश्रुधार
वाराणसी : महाश्मशान मणिकर्णिका के सामने गंगापार सतुआबाबा गोशाला में मानस मसान कथा के मंच प
वाराणसी : महाश्मशान मणिकर्णिका के सामने गंगापार सतुआबाबा गोशाला में मानस मसान कथा के मंच पर चौथे दिन मंगलवार को वाणी और व्यवहार एकाकार हुए। महाराज दशरथ के वियोग का वर्णन करते मोरारी बापू की आखों से अश्रुधार बह चली। यह भावों का ज्वार था जो व्यासपीठ पर विराजमान राष्ट्र संत की नयन गंगोत्री से प्रसंग पर्यत अविरल बहा और श्रोताओं की आंखों को गंगधार बनाता रहा। उनके कंठ से निकलते एक-एक शब्द ने उनकी भावुकता का अहसास तो कराया ही वियोगी दशरथ की पीड़ा से साक्षात्कार भी करा दिया। आंखों से होते कथा मर्मज्ञ के गालों को धोते आसुओं की धार उनके श्वेत वसन को भिगोती रही और दीर्घा में बैठी भक्त मंडली भी इस भाव गंगा में गोते लेती रही। अद्भुत नजारा, वाणी से अधिक अश्रुधारा और शब्दों से कहीं अधिक यही बहुत कुछ कह रहे थे। शिव पार्वती विवाह प्रसंग में भी विदाई की बेला को उन्होंने कुछ इसी तरह भावों में घोला। पांच दशक से मानस गंगा में गोते लगा रहे कथा मर्मज्ञ ने इससे पहले कथा के दौरान अपने अनुभव के आधार पर बोला भी कि प्रभु की याद में रोना सबक सीखने जैसा है। बुद्ध पुरुष पाच तरह से वाणी बोलते हैं। होंठों से, मुद्राओं से, मुस्कुराहट से, आखों से और आसू से। उनके एक-एक आसू एक-एक हजार प्रवचन होते हैं। वैसे ही जैसे गोपियों के एक-एक आंसू में कई ज्ञानी बह जाते थे। बहरहाल, दशरथ वियोग प्रसंग के दौरान मोरारी बापू की भाव भंगिमाओं को देख हर कोई अधीर नजर आया। किसी ने एलईडी स्क्रीन पर उभरती उनकी छवि को प्रणाम कर लिया तो भावपूर्ण छवि को सेलफोन कैमरे में भर लिया। वीआइपी दीर्घा में बैठे लोग भी इस संयोग को कैमरे में कैद करने का लोभ संवरण नहीं कर सके, कुछ ने सोफा-कुर्सी पर बैठे-बैठे ही इसका जतन किया तो कई मंच की ओर बढ़ गए। इस दौरान सुरक्षाकर्मियों के लिए असहज स्थिति हो गई और उन्हें बापू के प्रिय श्रोताओं को मंच के पास से हट जाने का आग्रह करना पड़ा। मोरारी बापू की कथाओं के नियमित श्रोता चिमन भाई ने कहा व्यास पीठ पर बापू को इतना अधीर तो मैंने मानस-यमुना की कथा में देखा था। यमुना की वर्तमान स्थिति का वर्णन करते हुए बापू तब भी फफक कर रो पड़े थे। जयप्रकाश माली ने बताया कि चित्तौड़ में मानस मीरा के दौरान भी जहर प्रसंग पर बापू की आंखों से अश्रुधार बह चली थी।