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खनन ठेका बंद, प्रतिवर्ष 50 करोड़ का राजस्व घाटा, जनपद में गंगा के किनारे 24 स्थानों पर हैं बालू खनन के हैं घाट

बालू खनन से प्रतिवर्ष जिले को करोड़ों रुपये का राजस्व रायल्टी के रूप में प्राप्त होता रहा है। इसके बावजूद पिछले दो तीन वर्ष से जनपद में बालू का ठेका नहीं हो रहा है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 06 Dec 2019 10:59 AM (IST)Updated: Fri, 06 Dec 2019 07:10 PM (IST)
खनन ठेका बंद, प्रतिवर्ष 50 करोड़ का राजस्व घाटा, जनपद में गंगा के किनारे 24 स्थानों पर हैं बालू खनन के हैं घाट
खनन ठेका बंद, प्रतिवर्ष 50 करोड़ का राजस्व घाटा, जनपद में गंगा के किनारे 24 स्थानों पर हैं बालू खनन के हैं घाट

वाराणसी [ अशोक सिंह]। बालू खनन से प्रतिवर्ष जिले को करोड़ों रुपये का राजस्व रायल्टी के रूप में प्राप्त होता रहा है। इसके बावजूद पिछले दो तीन वर्ष से जनपद में बालू का ठेका नहीं हो रहा है। इस वजह से प्रतिवर्ष लगभग 50 करोड़ रुपये के राजस्व की क्षति जिले को हो रही है। इससे न केवल राजस्व की क्षति हो रही बल्कि सरकारी कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। बालू खनन को लेकर खनन विभाग कोई पहल भी नहीं कर रहा है।

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गंगा में कछुआ सेंचूरी क्षेत्र रामनगर से लेकर राजघाट तक बालू खनन पर रोक है। इसके अलावा अन्य स्थानों पर 24 घाटों पर बालू का खनन होता रहा है। इसमें प्रमुख स्थान सिंहवार, मुस्तफाबाद, गौरा, गंगवार, सरसौल, रमचंदीपुर, उपरवार आदि प्रमुख बालू खनन घाट हैं। मात्र रमचंदीपुर घाट का पिछले वर्ष खनन ठेका हुआ भी था जो इस वर्ष नहीं किया गया। बताया जाता है कि ज्यादातर घाटों को लेकर कोई विवाद भी नहीं है। वन विभाग की भी कोई आपत्ति सामने नहीं आई है। जानकार बताते हैं कि एक घाट का ठेका करीब दो से तीन करोड़ रुपये में होता है। इस प्रकार अगर सभी घाटों से बालू खनन का ठेका दे दिया जाए तो कम से कम 50 करोड़ रुपये की आय तो राजस्व के रूप में होती ही। इसके बावजूद आखिर क्यों ठेके नहीं दिए जा रहे हैं यह समझ से परे। इस संबंध में जिला खनन अधिकारी विकास सिंह परमार से बात करने की कोशिश की गई तो पता चला कि वह एक पखवारे से अधिक समय से कार्यालय ही नहीं आ रहे हैं। जब खनन अधिकारी से मोबाइल पर सम्पर्क करने की कोशिश की गई तो नंबर स्वीच आफ मिला।

दुकानों पर धड़ल्ले से बिक रहा बालू

पूरे जनपद में बालू खनन का कोई भी ठेका नहीं हुआ है। इसके बावजूद पूरे जिले में दुकानों से बालू की बिक्री हो रही है। ऐसी स्थिति में प्रश्न यह है कि आखिर बालू आ कहां से रहा है। दुकानदारों की मानें तो ज्यादातर बालू पास के जनपदों चंदौली और गाजीपुर से आ रहा है। कुछ स्थानों पर चोरी-छिपे खनन किया जा रहा है। जानकार तो यहां तक बता रहे हैं कि पास के जनपद के खनन माफिया के दबाव में ही यहां पर ठेके नहीं दिए गए। इन सब परिस्थितियों में बालू का रेट भी खनन सीजन होने के बावजूद आसमान छू रहा है। इसका प्रभाव लोगों के भवन निर्माण से लेकर सरकारी कार्यों पर पड़ रहा है। 

इस बारे में एडीएम, वित्त एवं राजस्व सतीश पाल ने कहा कि गंगा में कछुआ सेंचुरी है। उसके कुछ आगे-पीछे के क्षेत्र में खनन नहीं हो सकता है। कुछ गाटे हैं जहां खनन हो सकता है। इस संबंध में मैं खनन अधिकारी से जानकारी हासिल करुंगा कि ठेके क्यों नहीं हुए।


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