गोरखपुर पी गया बलिया का दूध, दिसंबर में चल रहीं थी 110 इकाइयां और अब संख्या घटकर हुईं 50
जिले में दुग्ध विकास की स्थिति चौपट हो गई है। दिसंबर से 30 अप्रैल तक करीब 1.40 लाख लीटर दूध गोरखपुर की दुग्ध समितियों को 32 रुपये की दर से भेजा गया था। मगर भुगतान फंस गया। फरवरी तक किसी तरह जिले की करीब 110 समितियों ने स्थिति झेली।
बलिया संग्राम सिंह। जिले में दुग्ध विकास की स्थिति चौपट हो गई है। दिसंबर से 30 अप्रैल तक करीब 1.40 लाख लीटर दूध गोरखपुर की दुग्ध समितियों को 32 रुपये की दर से भेजा गया था। मगर भुगतान फंस गया। फरवरी तक किसी तरह जिले की करीब 110 समितियों ने स्थिति झेली, लेकिन कोरोना काल में हालत और पतली हो गई। 60 दुग्ध इकाइयां बंद हो गई हैं। उन्होंने दुग्ध आपूर्ति करने से इन्कार कर दिया। करीब 45 लाख रुपये की बकायेदारी गोरखपुर पर चढ़ गई। दुग्ध विकास विभाग ने अब इसके लिये शासन को पत्र लिख दिया है। कहा है कि अगर भुगतान नहीं हुआ तो पराग के बलिया प्लांट को बंद करना पड़ सकता है।
अब यहां से रोजाना सिर्फ एक हजार लीटर की सप्लाई रह गई है। लगन कम होने से धीरे-धीरे स्थिति और खराब होती जा रही है। कुल दो करोड़ की बकायेदारी हो चुकी है। प्लांट चलाने के लिये डीजल देने से कंपनियों ने साफ मना कर दिया है। कर्मचारियों का वेतन भी रुका हुआ है। इस तरह सालों पुराने प्लांट पर एक बार ताला लटकने की संभावना है।
मार्च में होती थी तीन हजार लीटर दूध की आपूर्ति
आजमगढ़ मंडल के अधीन बलिया, मऊ व गाजीपुर डेयरी क्लस्टर हैं। बलिया में प्लांट 1984 में स्थापित हुआ था। इसकी क्षमता 30 हजार लीटर है, इसके लिये 15-15 हजार लीटर के दो स्टाेरेज टैंक बनाए गए हैं। कोरोना की दूसरी लहर से पहले यानी मार्च में यहां से प्रतिदिन करीब तीन हजार लीटर दूध की आपूर्ति होती थी लेकिन अब उत्पादन एक हजार लीटर पर सिमट गया है।
समितियों के दूध का बकाया गोरखपुर द्वारा नहीं किया जा रहा है
कई पत्राचार हो चुका है। इसके बाद भी समितियों के दूध का बकाया गोरखपुर द्वारा नहीं किया जा रहा है। लिहाजा समितियों ने दूध देना बंद कर दिया है। वह दूसरी कंपनियों से जुड़ गई हैं। वह शिकायतें दर्ज करा रही हैं। लगन वगैरह कम होने से इस बार स्थिति ज्यादा खराब होती जा रही है। शासन को समस्या की ओर ध्यान देना चाहिये।