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युवाओं की सोच बदलने की जरूरत, खुद बदलेंगे तभी देश बदलेगा

पूर्वांचल का युवा वर्ग शिक्षा ग्रहण करने बाद यहां रहना नहीं चाहता है। यहां की शिक्षा को अन्य जगह उद्यम का रूप दे देते हैं।

By Krishan KumarEdited By: Published: Wed, 08 Aug 2018 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 08 Aug 2018 06:00 AM (IST)
युवाओं की सोच बदलने की जरूरत, खुद बदलेंगे तभी देश बदलेगा

पिछले कुछ वर्षों में विकास की रफ्तार तेज हुई है। अंदाज बदला है और परिणाम दिख रहा है। बनारस में उद्योग, कारोबार, रोजगार के बेहतरीन अवसर है। सुविधाएं हैं, जरूरत ईमानदार व्यवस्था की है। सभी को मिलकर विकास के रथ को गति देनी होगी। बनारस में पांच विश्वविद्यालय हैं। कई महाविद्यालय हैं। अत: रोजगार परक शिक्षा पर हमें विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

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पूर्वांचल का युवा वर्ग शिक्षा ग्रहण करने बाद यहां रहना नहीं चाहता है। यहां की शिक्षा को अन्य जगह उद्यम का रूप दे देते हैं। इससे पूर्वांचल का यह समृद्ध इलाका पीछे होता जा रहा है। जरूरत इन युवाओं के कदम को बाहर जाने से रोकने की है। शिक्षा ग्रहण के बाद युवा यहीं रहे और अपनी मिट्टी से जुड़े रहे। बनारस में रोजगार के अवसर को विकसित करना होगा। यहां संसाधन भरपूर है। सुविधाएं भी खूब उपलब्ध है। जरूरत बस नियोजन की है।

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बनारस देश के हर कोने से सभी माध्यमों से जुड़ा है। यहां सड़क मार्ग, रेल मार्ग, वायु मार्ग के साथ ही जल मार्ग से आवाजाही होती है। बुनियादी सुविधाएं मिलने लगी है। सरकार की ओर से निरंतर प्रयास रोजगार के लिए हो रहे है। उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। जरूरत पहल की है। सरकार की योजनाओं और अनुदान का लाभ लेना होगा। खुद बदलेंगे तो देश बदलेगा।

काशी तीर्थ-पर्यटन की नगरी है और यहां अब उद्योग को पुष्पित करना होगा। साल भर काशी में प्रतिदिन कुछ न कुछ तीज-त्योहार होते हैं, कई उत्सव के रंग हैं। इन रंगों में रंगने के लिए देश-विदेश से लोगों का आगमन नियमित तौर पर होता है। ऐसे में उत्पादन और रोजगार की अपार संभावनाएं बनती हैं। इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए हमें सोच बदलनी होगी।

काशी के अर्थतंत्र को विकसित करने के लिए युवाओं को पहल करने की आवश्यकता है। 1964 में डीरेका और फिर भेल की यूनिट लगी, लेकिन बड़ी यूनिट नहीं आई। रामनगर, चांदपुर और करखियांव का विकास हो रहा है। यूनिटें लग रही हैं, लेकिन व्यापक बदलाव की तस्वीर सामने नहीं आ रही है। बड़े उद्योग लगने से कई आर्थिक लाभ मिलते हैं। लोग एक दूसरे से जुड़ते हैं और रोजगार के मौके मिलते रहते हैं।

महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को रोजगार परक शिक्षा के लिए ध्यान देना होगा। छात्रों को नौकरी ही नहीं कारोबार के फायदे से अवगत करना होगा। युवाओं की सोच को बदलने की जरूरत है। पढ़ाई के दौरान उनको अपनी माटी से जुड़ने और यहां विकास करने की सोच विकसित करने की आवश्यकता है। स्वरोजगार करने से अपने साथ ही कई लोगों को जोड़ने का मौका मिलता है।

प्रो. अजीत कुमार शुक्ला

(लेखक महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में वाणिज्य एवं प्रबंध अध्ययन संकाय के अध्यक्ष एवं प्रबंध शास्त्र अध्ययन संस्थान के निदेशक हैं।)

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