बनारस के मोतियों को पहुंचाया 70 देशों तक
बनारस बीड्स आज की तारीख में पूरे विश्व में अपनी खास पहचान बनाई हुई। सत्तर देशों में इसका जलवा है।
इच्छा शक्ति, लगन और निष्ठा के साथ लक्ष्य हासिल करना आसान होता है। कोशिशें होती रहनी चाहिए सफलता मिलनी तय है। कुछ इसी अंदाज के साथ कारोबारी शिखर तक पहुंचे युवा उद्यमी सिद्धार्थ गुप्ता। दादा-पिता के कारोबारी विरासत को एक मुकाम तक पहुंचाया। बनारस बीड्स आज की तारीख में पूरे विश्व में अपनी खास पहचान बनाई हुई। सत्तर देशों में इसका जलवा है। प्रमुख चेन स्टोर इसको ग्राहकों तक पहुंचाने में परहेज नहीं करते। विश्व में करीब दस हजार ब्रांडेड स्टोरों में बनारसी बीड्स की चमक फैली हुई है।
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बात 1938 की जब बीएचयू में आए एक अंग्रेज कारोबारी हेनरिक ने सिद्धार्थ के दादा कन्हैया लाल गुप्त व दादी रेशम देवी को बीड्स की बारीकियों से अवगत कराया। इसके बाद 1940 को कारोबार शुरू हुआ जो अशोक गुप्ता के बाद सिद्धार्थ गुप्ता जारी रखे हुए है। ग्लास टेक्नोलॉजी की पढ़ाई इंग्लैंड से करने के बाद अपने कारोबार को 2004 से लगातार विस्तार दे रहे है। सिर्फ बिजनेस ही नहीं बढ़ रहे बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़ा रहे हैं। प्रत्यक्ष रूप से चांदपुर स्थित कारखाने में करीब पांच सौ लोग कार्यरत है। साथ ही चार गांवों में मोती की माला को गूथने के लिए कारीगर निरंतर जुटे हुए है। कारोबार बढ़े इसके लिए विदेशी तकनीक को समय-समय पर लागू किया जाता है। जर्मनी, जापान, चीन जैसे देशों का भ्रमण कर नई तकनीक को कंपनी में लागू किया जाता है। नई मशीनों को लगाकर उत्पाद को बढ़ाया जा रहा है। वैसे मशीन की तुलना में जो हस्तनिर्मित बीड्स बनता है उसकी मांग सबसे ज्यादा है। कारीगरी तो हस्तनिर्मित में ही उभरता है। लोग इसको ज्यादा पसंद करते हैं।
भारत सरकार एमएसएमई को प्रोत्साहित करने के लिए योजनाएं तो लागू करती है लेकिन सुविधाओं के लिए चक्कर कम नहीं हो रहा। विभागीय उलझन काफी ज्यादा है। बुनियादी दिक्कतें तो बहुत ज्यादा है इस पर सरकार ध्यान दे तो उद्योग-कारोबार को चार-चांद लग जाएगा। बनारस से मुंबई ट्रक से माल भेजने में छह से सात दिन का वक्त लगता है जबकि चीन में इतनी दूरी का सफर दो दिन में आसानी से पूरी होती है। बीड्स कारोबार में चीन को कोई जवाब नहीं है। चीन के पास तमाम सुविधाओं के साथ ही उम्मदा कारीगरों की कमी नहीं है। मेहनत व लगन के कारण कारीगर उत्पादन ज्यादा करते हैं और ज्यादा कमाते है। आलस्य के कारण हमारे देश के कारीगर पीछे रहते है।
कारोबारी परिदृश्य भी बदल रहा
बदलते बनारस के क्रम में कारोबार व रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। लोगों को मौका मिल रहा है। युवा वर्ग स्वरोजगार पर ध्यान देने लगे है। कारोबारी परिदृश्य भी बदल रहा है। आगे बढ़ कर विकास के रथ पर हमें चढ़ होगा। कारोबार-रोजगार बढ़ेगा तो देश आगे बढ़ेगा। सरकारी योजनाओं को समझने की जरूरत है और इसका लाभ उठाने की आवश्यकता है। सरोकारों को भी ध्यान रखा गया। सोलर ऊर्जा के माध्यम से कारखाने में बिजली का कार्य होता है। रविवार को अवकाश के दिन सोलर ऊर्जा ग्रिड में चली जाती है। इसी तरह महिला कारीगरों को प्रमुखता दी जाती है। इनकी औसत करीब 70 फीसद है। जल सरंक्षण का भी ध्यान रखा गया। इस्तेमाल किए गए पानी को शोधित कर कई बार प्रयोग में लाया जाता है।
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