संसाधनों के नियोजन से बुलंदी पर पहुंचेगा ब्रांड बनारस
इस प्राचीन नगरी में हमेशा से ही कारोबार पर बल रहा। समय बदला तो तौर तरीका भी बदला। डॉ. राजेंद्र प्रसाद घाट कभी घोड़ा घाट के नाम से जाना जाता था।
बदलते बनारस और बढ़ते अवसर को लेकर एक उम्मीद सभी में जगी है। बदलाव की प्रक्रिया सिलसिलेवार हो रही है। इसको नियोजित करने की आवश्यकता है। संसाधन हर स्तर पर उपलब्ध है। मानव संसाधन की तो कोई कमी ही नहीं है। उपभोक्ता बाजार व्यापक है। परिवहन के सभी माध्यम का इस्तेमाल तेजी से किया जा रहा है। यहां रोजाना पर्यटकों व तीर्थयात्रियों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है। उनके लिए ब्रांड बनारस के तमाम उत्पाद काफी लोकप्रिय हैं। लोग याद के तौर पर या उपहार के लिए बनारसी साड़ी, खिलौने, हस्तकला के उत्पाद, मिठाई आदि साथ ले जाना चाहते हैं। विश्व बाजार में बनारस के उत्पादों की काफी मांग है। जरूरत बस नियोजन और मार्केटिंग की है।
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बाबा विश्वनाथ की इस प्राचीन नगरी में हमेशा से ही कारोबार पर बल रहा। समय बदला तो तौर तरीका भी बदला। आज का डॉ. राजेंद्र प्रसाद घाट एक समय में घोड़ा घाट के नाम से जाना जाता था। यहां से अफगानी घोड़े व अन्य उत्पाद गंगा के मार्ग से विभिन्न देशों के लिए भेजे जाते थे। निर्यात के मामले में बनारस राजे-रजवाड़े के काल से ही एक खास मुकाम पर रहा है। दशाश्वमेध इलाके में बंगाल के पाल शासकों ने बहुत बड़ा बाजार विकसित किए थे। अंग्रेजों ने भी यहां पर कारोबार को खूब जमाया। वक्त के बदलते क्रम में इन दिनों बनारसी वस्तुओं की खूब मांग है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ब्रांड बनारस पर जोर दिया है। ऐसे में बनारस के प्रमुख उत्पादों को विश्व पटल पर लाने की आवश्यकता है। बनारस में फूल-माला, नाव संचालन भी एक छोटा उद्यम हैं। बनारसी साड़ी, लकड़ी के खिलौने, मेटल रिपोजी, ग्लास बीड्स, कारपेट, गुलाबी मीनाकारी, सॉफ्ट स्टोन जाली वर्क, पॉटरी, दरी, वॉल हैंगिंग, हैंड ब्लॉक प्रिंट, वुड कार्विंग, जरी जरदोजी आदि कुटीर उद्योग फल-फूल रहा।
इसके साथ ही बनारसी खान-पान की बात ही अलग है, कचौड़ी, जलेबी, लौंगलता, मलइयो, मलाई पुड़ी, ठंड़ाई, लालपेड़ा, पान, लंगड़ा आम को बेहतर ढंग से कारोबार के तौर पर स्थापित किया गया है। इन सभी चीजों को नियोजित तरीके से ब्रांड के तौर पर स्थापित किया जाए। पूरे विश्व में बनारसी ब्रांड की धमक हो इस पर सभी के कदम बढ़े और समृद्धि हो।
उद्यमियों को बेहतर सुविधाएं मिले तो बने बात
बनारस में औद्योगिक नीति का असर पड़ा और रामनगर, चांदपुर में औद्योगिक क्षेत्र का विकास हुआ। उद्योग लगे और विकास के पथ पर है। उधर, करखियांव में फूड एग्रो पार्क में कई खाद्य उत्पादों की फैक्टरियां लग चुकी हैं। हां, सुविधाओं का अभाव जरूर है। उद्यमियों के मामले और त्वरित गति निस्तारित करने की जरूरत है। जिला उद्योग बंधुओं व मंडलीय उद्योग बंधुओं की बैठकों पर सिर्फ चर्चा ही न हो बल्कि मुद्दों पर अमल भी किया जाए तो सही लाभ मिलेगा। बेहतर सुविधाएं दी जाए तो उद्यमियों का पलायन थमेगा। करीब 35-36 उद्यमी उत्तराखंड, बिहार और मध्य प्रदेश में रोजगार लगाने के लिए चले गए।
युवा उद्यमियों में उत्साह
बनारस के युवा उद्यमियों में उत्साह देखने लायक है। रोजगार के अवसर बढ़ने के साथ ही स्वरोजगार पर भी काफी बल दे रहे हैं। उद्यम की नई तकनीक को विकसित करते हुए सफलता के आयाम लिख रहे हैं। यहां का युवा बाहर न जाए इस पर ज्यादा जो है। स्किल्ड लोगों की जरूरत है जो प्रशिक्षण के माध्यम से ही मिल सकता है। रोजगार के लिए शिक्षण व्यवस्था को प्रायोगिक करने की आवश्यकता है।
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