Maqbool Fida Hussain Death Anniversary काशी के घाटों को देखकर हो गए थे फिदा
Maqbool Fida Hussain Death Anniversary हुसैन कई बार बनारस आए और यहां घाटों के सौंदर्य से इस कदर सम्मोहित हुए कि उसे कैनवास पर उकेर दिया।
वाराणसी, जेएनएन। Maqbool Fida Hussain (जन्म सितंबर 17, 1915, निधन 9 जून, 2011) काशी की महिमा को कला जगत से बेहतर भला कौन जानेगा। गायन हो या वादन, नृत्य हो या रंगमच हर विधा के हुनरमंद यहां मौजूद हैं और बाहर के भी मर्मज्ञ यहां आने को आतुर रहते हैं। ऐसे में भला दृश्यकला कैसे काशी से अछूता रह सकता है। यहां इस विधा के बहुत मर्मज्ञ भलेे नहीं रहे हो, या यह विधा यहां उतनी धूम नहीं मचा पाई हो लेकिन, बाहर के धुरंधर चित्रकार यहां के घाटों का सम्मोहन नहींं छोड़ पाए हैं। इन्हीं में शुमार हैं भारत के पिकासो के नाम से मशहूर मकबूल फिदा हुसैन। फिदा का यहां जिक्र इसलिए किया जा रहा है कि उनकी आज पुण्यतिथि है।
हुसैन कई बार बनारस आए और यहां घाटों के सौंदर्य से इस कदर सम्मोहित हुए कि उसे कैनवास पर उकेर दिया। मकबूल फिदा हुसैन पहली बार 1960 में जब काशी आए तो उनके साथ तत्कालीन मशहूर चित्रकार रामकुमार भी थे। फिर क्या दोनों कलाकार कुछ स्थानीय कलाकारों की मदद से सीधे घाट पर जा पहुंचे। कलाकार फिदा हुसैन की पारखी नजर घाटों के सम्मोहन में इस कदर डूबी कि कैनवास पर घाट व बनारस की पूरी शृंखला ही तैयाार कर डाली। रंगों व रेखाओं के समन्वय का हुनर उनकी कला के शुरुआती चरण में आ चुका था। यह अलग बात है कि रामकुमार की घाट शृंखला में जहां अमूर्तन है तो वहीं हुसैन के चित्रों मे बिम्ब, आकार व रेखाओं का स्वरूप भिन्न है। ये दो महान कला साधक अलग-अलग घाटों भ्रमण कर अनेकों स्केच बनाते रहे। रामकुमार की घाट शृंखला ने काफी प्रसिद्धि पायी तो हुसैन के चित्रों क्रमश: द थ्री मैसेज, माया सीरीज, सेरीग्राफ आफ बनारस, त्रिभंग ने अपनी अलग ही पहचान बनाई। द बाथर शीर्षक से बने चित्र में हुसैन ने बोल्ड लाइन्स और अनूठे रंग-संयोजन के साथ कहीं उदास तो कही चटक रंगों में बनारस के उल्लास को व्यक्त किया है। शांत नीला, धूसर, तथा चटक भूरे रंगों में बनारस और उसकी आध्यामिकता को अपनी तूलिका से जीवंत कर दिया है। कृतियों में स्नान, ध्यान व पूजा व पवित्रता प्रेरणा बनीं।
बीएचयू, चित्रकला विभाग, दृश्य कला संकाय की एसोसिएट प्रोफेसर डाक्टर उत्तमा दीक्षित के अनुसार त्रिभंग नामक शीषर्क से बने चित्र तीन शहरों, दिल्ली ,बनारस और कोलकाता को दर्शाते हैं। ऊपर व नीचे क्रमश: दिल्ली व बनारस हैं। इस चित्र के जरिए उन्होंने राष्ट्रवाद, आध्यात्म और सक्रियता को दर्शाया है। चित्र में एक तरफ विवेकानंद का वैदिक दर्शन, ऊपर हनुमान घाट के मंदिर व गहरे लाल आसमान में उड़ते हुए हनुमान चित्रित हैं। बीच मे गंगा की अविरल बहती धारा, जिसमे कुछ महिलाएं पवित्र डुबकी लगा रहीं हैं तो कुछ नीचे घाट पर छतरियों के नीचे बैठे पंडा बैठे हैं। सबसे नीचे भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां शहनाई बजाते हुए चित्रित हैं।
डाक्टर दीक्षित ने कहा कि दरअसल मकबूल फिदा हुसैनन और रामकुमार बनारस शहर की गहराइयों से प्रभावित थे। इसीलिए वह दोबारा 1974 व 2002 में भी काशी की यात्रा की। हुसैन की बनारस यात्रा ने उन्हेंं यह निर्णय लेने का अधिकार दिया कि वह जैसा वह चित्रण करना चाहते थे, इस बात पर बिना ध्यान दिए कि दूसरे लोग क्या सोचेंगे या क्या अनुभव करेंगे और उनके बारे में क्या धारणा बनाएंगे को दरकिनार कर दिया। हुसैन को तरह तरह के आलोचनाओ का सामना करने की ताकत भी बनारस शहर से मिली। कहते है ना जो कही न मिले वो शिव नगरी बनारस में मिल जाती है।