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Maharani Ahilyabai Holkar Birth Anniversary ढाई सौ साल बाद काशी कहेगी अहिल्याबाई को 'धन्यवाद'

Maharani Ahilyabai Holkar Birth Anniversary महारानी अहिल्याबाई होल्कर की प्रतिमा स्थापित कर बाबा की नगरी काशी ढाई सौ वर्ष बाद उनका आभार जताएगी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sun, 31 May 2020 05:00 AM (IST)Updated: Sun, 31 May 2020 08:34 AM (IST)
Maharani Ahilyabai Holkar Birth Anniversary ढाई सौ साल बाद काशी कहेगी अहिल्याबाई को 'धन्यवाद'
Maharani Ahilyabai Holkar Birth Anniversary ढाई सौ साल बाद काशी कहेगी अहिल्याबाई को 'धन्यवाद'

वाराणसी [प्रमोद यादव]। Maharani Ahilyabai Holkar Birth Anniversary (31 May 1725 – 13 August 1795) बाबा विश्वनाथ दरबार के वर्तमान स्वरूप की सर्जक इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर की प्रतिमा स्थापित कर बाबा की नगरी ढाई सौ वर्ष बाद उनका आभार जताएगी। बाबा विश्वनाथ मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1777 से 1780 के बीच का माना जाता है। बनारस के सांसद पीएम नरेंद्र मोदी के संकल्पों के तहत विश्वनाथ धाम कॉरिडोर को आकार दिया जा रहा। आस्था को सम्मान और काशी के पुनर्निर्माण में अहिल्याबाई के योगदान को देखते हुए कॉरिडोर में उनकी प्रतिमा लगाई जाएगी। योगदान को शिलापट पर उकेर सम्मान दिया जाएगा। इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन को निर्देश दे चुके हैैं। इस दिशा में प्रयास शुरू हो चुका है। खास यह कि काशी की साज-संवार व सांस्कृतिक थाती सहेजने में अतुलनीय योगदान के बाद भी अब तक अहिल्याबाई होल्कर की प्रतिमा लगाने की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। उनके बाद जब बाबा दरबार गंगा तट तक विस्तार पा रहा तो उनकी स्मृतियों का रंग भी चटख होता जा रहा है।

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दुनिया के लिए प्राचीन धर्म नगरी काशी सदा आकर्षण का केंद्र रही है। देश-विदेश से जिज्ञासुओं, ज्ञान पिपासुओं व सैलानियों का यहां आना लगा रहा। नगर की मिट्टी की तासीर ही रही कि जो भी यहां आया, यहीं का होकर रह गया। इस विशिष्टता ने इस नगर को लघु भारत का रूप दिया तो इसे सजाने-संवारने में देशभर के राजघरानों ने योगदान दिया। इसमें इंदौर की महारानी अहिल्याबाई का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। शिवभक्त महारानी ने काशी प्रवास के दौरान द्वादश ज्योतिर्लिंग आदि विश्वेश्वर बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप को आकार देकर काशीवासियों का दिल जीत लिया था।

उन्होंने वर्ष 1785 में गंगा किनारे घाट, महल और दो मंदिर भी बनवाए जो आज अहिल्याबाई घाट के नाम से जाना जाता है। उन्होंने मणिकर्णिकाघाट पर बाबा तारकेश्वर महादेव के मंदिर निर्माण के साथ लोलार्क कुंड का जीर्णोद्धार कराया। पंचगंगा घाट पर बनवाया गया हजारा देव दीपावली पर उनकी कीर्ति का प्रतीक बन जाता है।

कॉरिडोर निर्माण के बाद महारानी अहिल्याबाई की प्रतिमा को भी स्थान दिया जाएगा

कॉरिडोर निर्माण के बाद महारानी अहिल्याबाई की प्रतिमा को भी स्थान दिया जाएगा। आर्किटेक्ट को स्थल चयन के लिए निर्देश दिया जा चुका है।

- विशाल सिंह, मुख्य कार्यपालक अधिकारी, श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर।


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