Jagran Forum 2020 : गंगा सफाई से संतुष्ट नहीं संकटमोचन के महंत, सीधे गिर रहा 350 एमएलडी मलजल
गंगा की स्वच्छता को लेकर जागरण फोरम के चौथे सत्र में विशेषज्ञों संग मंथन किया गया।
वाराणसी, जेएनएन। गंगा की स्वच्छता को लेकर जागरण फोरम के चौथे सत्र में विशेषज्ञों संग मंथन किया गया। इस दौरान मंथन में यह बात सामने आई कि गंगा प्रयासों के बाद भी साफ नहीं हुई हैं। गंगा की सफाई से संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र भी संतुष्ट नहीं हैं। इतना ही नहीं वह पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काशी आगमन के दौरान गंगा पूरी तरह से स्वच्छ हो गईं के बयान से भी संतुष्ट नहीं। कहा हमने जांच कराया तो स्थिति सामने आई वह गंगा जल को बद से बदतर बताती है। आज भी 350 एमएलडी मलजल सीधे गिर रहा है।
प्रो. मिश्र जागरण फोरम जागरण के चौथे सत्र 'कितनी साफ हुई गंगा' विषय पर पैनलिस्टों के रूप में अपने विचार रख रहे थे। छह मार्च को तीन स्थानों नगवां, तुलसीघाट, वरुणा-गंगा के संगम पर गंगा जल की जांच की गई। इसमें डीओ जो पांच मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक होना चाहिए लेकिन वह नगवा में 3.6, तुलसीघाट पर सात तो वरुणा संगम पर 1.2 है। इसी प्रकार बीओडी जो तीन मिग्रा प्रति लीटर से कम होना चाहिए वह क्रमश: 42, 6.8 व 74 तथा एफसीसी 500 प्रति 500 एमएल से कम होना वह भी बहुत खराब स्थिति में है जबकि अभी पानी अधिक है। कहा सोच बदल कर नई तकनीक अपनानी चाहिए।
इसके पूर्व गंगा महासभा के राष्ट्रीय महासचिव गोविंद शर्मा ने मॉडरेटर के रूप में शुरुआत करते हुए कहा कि हमें पिछले छह वर्ष से शुरू नमामि गंगे और उसके पहले 28 वर्ष तक गंगा सफाई योजना के परिप्रेक्ष्य में विचार करना होगा। काशी विद्यापीठ स्थित मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान के निदेशक प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि गंगा में बैक्टिरियोफास की वजह से जल प्रदूषित हो ही नहीं सकता। गंगा के बैक्टिरियोफास से रोगों मुक्त करने का टीका तैयार हो रहा है। संतोष व्यक्त किया कि नमामि गंगे के बाद नए बांध का प्रस्ताव नहीं हुए।
गंगा विज्ञानी प्रो. यूके चौधरी ने कहा कि नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ जैसे कर्मयोगियों की सरकार है। राम मंदिर बन सकता है तो अग्रेंजों के नरौरा व भीमगौड़ा जैसी भूल सुधर सकती है। ग्राउंड वाटर और सरफेस वाटर में सामंजस्य हो। गंगा मामलों के कानूनी विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण गुप्त ने कहा कि गंगा के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति की वजह से न्यायालय के फैसले लागू हो रहे हैं। नदियों के कानून का मसौदा सरकार को सौंप दिया गया है। इस दौरान सवाल कर लोगों ने अपनी जिज्ञासा शांत की।