महामारी से आजादी :बलिया में कैंसर से लड़कर डटे रहे कर्तव्य पथ पर, सीएचसी सोनबरसा में तैनात हैं फार्मासिस्ट निर्भय नारायण
आपदा की घड़ी में सेवा ही सबकुछ है। जब तक जीवन है यह भाव हर किसी के मन में रहना चाहिए। कहा कि मैं 2018 से लीवर में कैंसर से पीड़ित हूं। मन में किसी भी तरह का कोई डर नहीं है। जब तक जीवन है अपना कर्तव्य निभाता रहूंगा।
जागरण संवाददाता, बलिया। कोरोना काल में बहुत से स्थानों पर देखा गया कि भयावह हालात के समय अपने भी साथ छोड़ दिए। ऐसी घड़ी में चिकित्सा कर्मचारी सैनिकों की तरह लोगों के स्वास्थ्य की डोर भी संभाले रखा। सीएचसी सोनबरसा पर तैनात फार्मासिस्ट निर्भय नारायण शुक्ल खुद कैंसर रोगी हैं, लेकिन उन्होंने अपनी जान से ज्यादा कोरोना मरीजों की चिंता की। उनके उपचार में जुटे रहे।
किसी भी आदमी को कैंसर रोग होने की जानकारी हाेने पर उसके स्वजन तक परेशान हो जाते हैं। मन में कई तरह का डर समाहित हो जाता है लेकिन इन हालातों का सामना करते हुए जो इंसान अपने दूसरों के लिए कर्तव्य पथ पर डटा रहे, उसके जज्बे को सभी सलाम करते हैं। कोरोना काल में सीएचसी सोनबरसा में तैनात फार्मासिस्ट निर्भय नारायण शुक्ल का किरदार भी कुछ ऐसा ही रहा। लॉकडाउन में लोग अपने घरों में कैद हो गए। उस घड़ी में भी ये कोरोना योद्धा के रूप में अस्पताल पर मरीजों की सेवा में जुटे रहे। बाहर से लौट रहे लोगों की जांच करनी हो या किसी कोरोना मरीज को इंजेक्शन लगाना हो, ये कभी अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटे। घर में पत्नी, बच्चे तक इनके स्वास्थ्य को लेकर डरे हाल में थे। इसके बावजूद उन्होंने डर को किनारे कर मरीजों के लिए खुद को समर्पित कर दिया। वह आज भी उसी अंदाज में इस अस्पताल पर कार्य कर रहे हैं। विभाग से अलग बाहरी लोग भी उनके इस कुशल व्यवहार के मुरीद हैं।
आपदा की घड़ी में सेवा ही सबकुछ
श्री शुक्ल ने बताया कि आपदा की घड़ी में सेवा ही सबकुछ है। जब तक जीवन है यह भाव हर किसी के मन में रहना चाहिए। कहा कि मैं 2018 से लीवर में कैंसर से पीड़ित हूं। मन में किसी भी तरह का कोई डर नहीं है। जब तक जीवन है अपना कर्तव्य निभाता रहूंगा। मैं जिस दिन अस्पताल नहीं पहुंचता, ऐसा लगता है कि कुछ गुम हो गया है।