लोलार्क कुंड स्नान : अमृत योग में लगेगी आस्थावानों की संतति कामना की डुबकी
संतति कामना से भाद्रपद शुक्ल षष्ठी तिथि को स्नान-दान, व्रत विधान का मान है इसे लोलार्क षष्ठी के रूप में मनाया जाता है, यह व्रत पर्व 15 सितंबर को पड़ रहा है।
वाराणसी [प्रमोद यादव] : संतति कामना से भाद्रपद शुक्ल षष्ठी तिथि को स्नान-दान, व्रत विधान का मान है। इसे सूर्य षष्ठी (लोलार्क षष्ठी) के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत पर्व इस बार 15 सितंबर को पड़ रहा है। इस बार लोलार्क षष्ठी के साथ अमृत योग का संयोग बन रहा है जो अपने आप में मनोकामना पूर्ण करने वाला माना जाता है। षष्ठी तिथि 14 सितंबर को शाम 5.26 बजे लग रही है जो 15 सितंबर को 5.36 बजे तक रहेगी।
गिरा था सूर्य का चक्र
ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार सूर्य षष्ठी पर लोलार्क कुंड (भदैनी) में स्नान व लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन पूजन का विधान है। मान्यता है कि इस दिन लोलार्क कुंड में स्नान-दान, फल त्याग व लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन से व्रतियों की गोद भगवान सूर्य की कृपा से अवश्य भरती है। काशी खंड के 32वें अध्याय में वर्णन है कि कुंड स्थित मंदिर में माता पार्वती ने शिवलिंग की पूजा की था। धारित मान्यता है कि भगवान सूर्य की पहली लाल किरण इस स्थल पर पड़ी थी, इसे सूर्य लोल कहा गया। सूर्य का चक्र भी इसी कुंड में गिरा था।
पुत्र कामना का मान
ज्योतिषीय दृष्टि से 12 भाव में से पंचम पुत्र कामना के लिए प्रमुख माना जाता है। काल पुरुष की पांचवी राशि सिंह का इस भाव पर पूर्ण प्रभाव होता है जिसका स्वामी ग्रहराज भगवान सूर्य को माना गया है इसीलिए सनातन धम में पुत्र कामना के लिए भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए इनका व्रत विशेष फलदायी होता है। जैसे लोलार्क षष्ठी, ललही छठ, डाला छठ, सूर्य षष्ठी में सूर्य की उपासना होती है। वहीं सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए हरिवंश पुराण का वाचन या श्रवण किया जाता है। कार्तिकेय दर्शन का भी महत्व है, भाद्र शुक्ल षष्ठी को ही भगवान कार्तिकेय का दर्शन-पूजन वंदन करने से सभी तरह के कष्टों के साथ ही ब्रह्म हत्या तक से मुक्ति मिल जाती है।