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मृत्यु दावों का भुगतान करने के लिए जाैनपुर में दर-दर पहुंचकर एलआइसी ने खटखटाया दरवाजा

भयावहता के इस दौर में जब तमाम प्राइवेट कंपनियां एश्योरेंस होने पर भी लोगों को क्लेम देने से कतरा रही थीं वहीं देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआइसी मृत्यु दावों के भुगतान के लिए मृतकों के स्वजनों का दरवाजा खटखटाया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 22 Sep 2021 08:20 PM (IST)Updated: Wed, 22 Sep 2021 08:20 PM (IST)
मृत्यु दावों का भुगतान करने के लिए जाैनपुर में दर-दर पहुंचकर एलआइसी ने खटखटाया दरवाजा
एलआइसी मृत्यु दावों के भुगतान के लिए मृतकों के स्वजनों का दरवाजा खटखटाया।

जागरण संवाददाता, जौनपुर। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर मानव जीव के लिए त्रासदी साबित हुई। इसमें बड़ी संख्या में लोगों ने जान गंवाई। इसने ऐसा दर्द दिया, जिसकी पूॢत शायद ही कभी हो सके। भयावहता के इस दौर में जब तमाम प्राइवेट कंपनियां एश्योरेंस होने पर भी लोगों को क्लेम देने से कतरा रही थीं वहीं देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआइसी मृत्यु दावों के भुगतान के लिए मृतकों के स्वजनों का दरवाजा खटखटाया। उमरपुर स्थित एलआइसी कार्यालय के प्रबंधक शरद श्रीवास्तव ने दावों के भुगतान के लिए कार्यालय में बकायदा अलग सेल की स्थापना कर दी थी, जिससे जरूरतमंदों को किसी प्रकार की दिक्कत न हो। संक्रमण की भेंट चढ़े कुछ के घरवालों को तो पता भी नहीं था कि उनके स्वजनों का कोई बीमा भी है। हालांकि कर्मशील कर्मचारी पालिसी के पेपरों के सहारे 250 मृतकों के स्वजनों को दावों का भुगतान कराया।

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तीन कर्मचारियों की लगाई गई थी ड्यूटी

सेल को प्रभावी बनाने के लिए प्रशासकीय अधिकारी विनय सिंह, इंद्र कुमार चौहान व देवी यादव को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। शाखा प्रबंधक के निर्देश पर कर्मचारियों ने उन लोगों का डाटा निकाला, जिनकी संक्रमण काल में मौत हो गई। कर्मचारियों ने दिए हुए पते व मोबाइल नंबरों पर संपर्क कर ऐसे लोगों के घरवालों का न सिर्फ पता लगाया, बल्कि दावों को भुगतान भी कराया। हालांकि यहां तक का सफर किसी चुनौतियों से कम नहीं रहा। संक्रमण काल में कर्मचारियों ने छुट्टी के दिन कार्यालय पहुंचकर संबंधित दस्तावेजों को तलाशा, जिससे कार्य भी सामान्य रूप से चला और स्वजनों को मदद भी मिली।

अभी भी कार्य कर रहा अलग काउंटर

ऐसे जरूतमंदों को किसी परेशानी से बचाने के लिए अभी भी कार्यालय में अलग बनाया गया काउंटर चल रहा है। यहां पहुंचने वालों को सिर्फ इतना बताना होता है कि उन्होंने कोरोना संक्रमण में अपने को खोया है। इसके बाद काउंटर पर तैनात कर्मचारी उन्हेंं एक स्थान पर बैठाकर कागजी कार्रवाई स्वत: पूर्ण कर उन्हेंं शाखा प्रबंधक के पास लेकर जाते हैं।

नियमित किस्त जमा करने वालों का समय से भुगतान न करने पर जाचं-पड़ताल में पता चला कि वे कोरोना संक्रमण की वजह से अब इस दुनिया में नहीं रहे। इसकी जानकारी वरिष्ठ मंडल प्रबंधक विनोद कुमार को दिया। उन्होंने निर्देश दिया कि संकट के इस दौर में आस सभी घर-घर जाकर ऐसे लोगों के स्वजनों के दावों का भुगतान किया जाय। जिसका हम सभी ने आत्मसात किया और मदद पहुंचाई।

-शरद श्रीवास्तव, शाखा प्रबंधक एलआइसी।

केस-एक....

मेरे पति दुर्गेश कुमार सिंह का कोरोना संक्रमण की वजह से मौत हो गई। वे मर्चेंट नेवी में थे। मेरे ऊपर तो मानों दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा। मुझे तो कुछ याद ही नहीं रहा। उन्होंने एलआइसी में बीमा करा रखा था। जब एलआइसी के लोग घर पहुंच और बताए कि आपके पति का बीमा है। जरूरी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद मुझे 58 लाख रुपये का भुगतान किया। जो अब मेरे काम आ रहा है।

-गरिमा सिंह, तारापुर कालोनी।

केस-दो...

मेरे पति रतन लाल शर्मा की कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमण की वजह से मौत हो गई। मेरे लिए यह किसी गहरे सदमे से कम नहीं था। हालांकि उन्होंने जीवन बीमा करा रखा था। एलआइसी वालों ने एक माह बाद घर पहुंचकर दस लाख रुपये का भुगतान किया। जो आज मेरे परिवार के लिए

परिवार का सहारा बन गया है।

-लक्ष्मी शर्मा, गोधना कचगांव।

केस-तीन...

मेरे पति पुष्पराज कोरोना की दूसरी लहर में दुनिया छोड़कर चले गए। उनकी मौत के बाद तो हमारे ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। कैसे परिवार को पालूंगी इसकी चिंता सताने लगी। मुझे तो पता ही नहीं था कि उनकी कोई पालिसी भी है। एलआइसी कर्मी खुद मेरे घर पहुंचे और जरूरी औपचारिकताओं को पूरा कराकर दस लाख रुपये का दावा भुृगतान किया। जो मेरे लिए सहारा बन गया।

-फूल कुमारी, सिपाह।


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