Move to Jagran APP

‘सबके राम, सबमें राम’ मंत्र के साथ वाराणसी में रामपंथ में दीक्षित हुए समाज के अंतिम लोग

राम काज के विस्तार के लिये राम मंदिरों की गांव–गांव में स्थापना के लिये अंतिम व्यक्ति तक राम नाम पहुंचाने और राम मंदिरों में पुजारी बनाने के लिये रामपंथ ने दीक्षा संस्कार का आयोजन वाराणसी के लमही स्थित श्रीराम आश्रम में किया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 26 Jan 2022 10:43 PM (IST)Updated: Wed, 26 Jan 2022 10:43 PM (IST)
‘सबके राम, सबमें राम’ मंत्र के साथ वाराणसी में रामपंथ में दीक्षित हुए समाज के अंतिम लोग
रामपंथ ने दीक्षा संस्कार का आयोजन वाराणसी के लमही स्थित श्रीराम आश्रम में किया।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। राम काज के विस्तार के लिये, राम मंदिरों की गांव–गांव में स्थापना के लिये, अंतिम व्यक्ति तक राम नाम पहुंचाने और राम मंदिरों में पुजारी बनाने के लिये रामपंथ ने दीक्षा संस्कार का आयोजन लमही स्थित श्रीराम आश्रम में किया। पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आये मुसहर और आदिवासी समाज के लोगों के चेहरे पर प्रसन्नता और संतोष के भाव थे। आज उन्हें वो सम्मान मिलने वाला था जो कोई सरकार नहीं दे सकती थी। सनातन धर्म में सर्वोच्च सम्मान संतों, महात्माओं और पुजारियों को है। रामपंथ ने सनातन धर्म को व्यवहारिक रूप से समावेशी बनाने के लिये सूत्र दिया ‘सबके राम, सबमें राम’। रामपंथ ने तय किया कि देशभर में राम संस्कृति का विस्तार, पारिवारिक एकता जातियों में समरसता की भावना विकसित करने हेतु गांव–गांव में श्रीराम परिवार का मंदिर बनाया जायेगा। जहां भगवान श्रीराम–माता जानकी, भगवान भरत–माता माण्डवी, भगवान लक्ष्मण–माता उर्मिला, भगवान शत्रुघ्न–माता श्रुतकीर्ति एवं संकट मोचन हनुमान जी की मूर्ति स्थापित होगी। 9 अंक भक्ति, शक्ति, ग्रहों का होता है। इस मंदिर से भारतीय संस्कृति और पारिवारिक एकता स्थापित होगी। लोग देखेंगे कि सब से बड़े भगवान श्रीराम जब अपने चारों भाइयों के साथ रहकर स्नेह रख सकते हैं तो हम क्यों नहीं ǃ

loksabha election banner

रामपंथ ने अपनी स्थापना के साथ ही सबको पूजा करने और पुजारी बनने का अधिकार दिया है। जिनके पूर्वज कभी भगवान श्रीराम के वनवास और लंका चढ़ाई के दौरान उनके साथ रहे, उनकी सेना में रहे और रावण जैसे दुरात्मा को खत्म करके धर्म की स्थापना में अपना सहयोग दिये, समय बदलने के साथ भगवान श्रीराम के साथियों के वंशज समाज के सबसे उपेक्षति और तिरस्कृत हो गये, अपने राम से दूर कर दिये गये, लेकिन आज उनके वंशजों को ससम्मान रामपंथ में दीक्षित कर पुजारी बनने का अधिकार दिया गया।

काशी के पुरोहित पंडित श्रीराम तिवारी ने वैदिक मंत्रों के साथ सभी दीक्षा लेने वाले राम प्रेमियों से हवन कराया, तिलक लगाया और गंगा जल से आचमन कराने के बाद गुरूमंत्र लेने के लिये संकल्पित कराया।

रामपंथ के संस्थापक गुरुदेव इन्द्रेश कुमार ने सभी मुसहर समाज के लोगों के गले में तुलसी की कंठी डाली, रामनामी यंत्र दिया और कान में राम नाम का गुरूमंत्र दिया। गुरू मंत्र लेने के बाद सभी रामपंथियों के चेहरे खिल उठे। चेहरे पर गर्व और सम्मान के भाव थे। सभी रामपंथियों को राम काज के विस्तार की जिम्मेदारी दी गयी। गांव–गांव में राम परिवार का मंदिर बनाने की योजना बनी। सभी रामपंथियों ने काशी विश्वनाथ मंदिर और अयोध्या में श्रीराम मंदिर का दर्शन करने का शपथ लिया।

इस अवसर पर रामपंथ के पंथाचार्य डाक्‍टर राजीव श्रीगुरु ने नये रामपंथियों को शॉल ओढ़ाकर, तिलक लगाकर एवं माला पहनाकर सम्मानित किया। इस अवसर पर इन्द्रेश कुमार ने कहा कि अब भगवान श्रीराम के साथ धर्म की स्थापना करने वाले उनके साथियों के वंशजों को राम काज करने की जिम्मेदारी देकर सर्वोच्च समान दिया गया। अब ये न अछूत हैं और न ही उपेक्षित। इनके सम्मान से ही भारतीय संस्कृति का सम्मान बढ़ेगा। अब राम संस्कृति के विस्तार की जिम्मेदारी भगवान श्रीराम के साथियों के वंशजों के कंधे पर है, जिन्हें हम आज मुहसर और आदिवासी कहते हैं।

रामपंथ के पंथाचार्य डाक्‍टर राजीव  ने कहा कि दुनिया में शांति स्थापना हेतु रामपंथ का विस्तार जरूरी है। रामपंथी सभी धर्मों के बीच समन्वय और सेतु का काम करेगा। सभी धर्मों के बीच समन्वय हेतु रामपंथ ने ‘रामसेतु योजना’ का प्रारम्भ किया है।

दीक्षित होने वालों में सानभद्र के द्वारिका प्रसाद खरवार, तुलाराम खरवार, बबई खरवार, राजमन खरवार, श्रवण कुमार सिंह गोंड, जौनपुर के किशन, दूधनाथ, प्रियंका, सुधेसरा, भिरगू, अनिल, बृजलाल, रामआसरे, मंगल, सुनील, दिनेश, अखिलेश, शिवपूजन, कल्याण, कन्हैया, जितेन्द्र, चन्द्रावती, दुर्गावती, जिलेदार, नन्दलाल, सरिता, सीमा, अमरावती, सोनी, उषा बिन्द्रा, लखनऊ से ठाकुर राजा रईस, काशी से राजेश कुमार पाण्डेय रहे।

दीक्षा संस्कार कार्यक्रम का संयोजन जौनपुर के प्रमुख समाजसेवी दिनेश चौधरी ने किया। संचालन अर्चना भारतवंशी ने किया।इस अवसर पर दिलीप सिंह, नजमा परवीन, नाजनीन अंसारी, डाक्‍टर मृदुला जायसवाल, इली भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, दक्षिता भारतवंशी ने सहयोग किया।

हिंदू और मुसलमान समाज में प्रचलित बहुत सी परम्पराओं में आज भी समानताएं कायम

विशाल भारत संस्थान, मुस्लिम महिला फाउण्डेशन एवं मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संयुक्त तत्वावधान में परम्परों एवं पूर्वजों से एक : हम भारत के लोग विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन लमही स्थित इन्द्रेश नगर के सुभाष भवन में किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि राष्ट्रवादी विचारक इन्द्रेश कुमार एवं मुस्लिम महिला फाउण्डेशन की नेशनल सदर नाजनीन अंसारी ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति पर माल्यार्पण एवं दीपोज्वलन कर संगोष्ठी का शुभारम्भ किया। संगोष्ठी में काशी प्रांत के वाराणसी सहित आजमगढ़, गाजीपुर, चन्दौली, मिर्जापुर, जौनपुर, सोनभद्र आदि विभिन्न जनपदों के मुसलमानों ने भाग लिया।

मुख्य अतिथि इन्द्रेश कुमार ने कहा कि पूरी दुनिया में यूरोप के देशों में दुल्हा दुल्हन के जोड़े सफेद होते हैं। वहीं एशियाई देशों सहित भारत में लाल जोड़ा पहनने की परम्परा है, जोकि लाल रंग प्रेम का प्रतीक है। यह जोड़ा हिन्दू–मुसलमान दोनों में प्रचलित है। अन्य बहुत सी परम्पराओं में आज भी समानताएं देखी जाती हैं। बहुत सारे धर्म परिवर्तित मुस्लिम आज भी आपनी पुरानी परम्पराओं का निर्वहन करते हैं, जिनके पूर्वज खून खानदान से एक हैं। भारत के हिन्दु-मुस्लिम अगर अपने पूर्वजों का इतिहास पढ़ें तो सांझा सांस्कृतिक विरासत और मजबूत होगी। कुंअर नवल सिंह उर्फ दीनदार खां का इतिहास सांझा विरासत का एक प्रमाण है। दीनदार ख़ां सांझा इतिहास के नायक हैं जिनके बारे में जानना सबको आवश्यक है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.