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Azamgarh में निर्मित गाय के गोबर के लक्ष्मी- गणेश मूर्तियों से चीन को पटखनी, कई प्रांतों में भारी मांग

अबकी दीपावली बाजार में चाइनीज उत्पादों का दम निकल रहा है। प्रधानमंत्री की लोकल फार वोकल मुहिम हथियार बनकर उभरी है। गाय के गोबर से बनी भगवान गणेश व मां लक्ष्मी की मूर्तियों को गरीब अमीर सभी तवज्जो दे रहे हैं।

By saurabh chakravartiEdited By: Published: Thu, 12 Nov 2020 06:30 AM (IST)Updated: Thu, 12 Nov 2020 09:32 AM (IST)
Azamgarh में निर्मित गाय के गोबर के लक्ष्मी- गणेश मूर्तियों से चीन को पटखनी, कई प्रांतों में भारी मांग
गो गोबर से लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बनातीं साज फाउंडेशन से जुड़ीं हस्तशिल्पी ।

आजमगढ़ [राकेश श्रीवास्तव]। अबकी दीपावली बाजार में चाइनीज उत्पादों का दम निकल रहा है। प्रधानमंत्री की लोकल फार वोकल मुहिम हथियार बनकर उभरी है। गाय के गोबर से बनी भगवान गणेश व मां लक्ष्मी की मूर्तियों को गरीब, अमीर सभी तवज्जो दे रहे हैं। ऐसा कि 150 महिलाएं बच्चे रात-दिन मेहनत करके भी मांग पूरी नहीं कर पा रहे हैं। यह स्थिति तब है, जब साज फाउंडेशन ने एलएसी के गलवान घाटी की घटना के बाद जून माह में ही चीन को सबक सिखाने के लिए गोबर व आर्गेनिग रंगों वाली मूर्तियां बनाने की ठानी तो डेढ़ सौ महिलाओं की फौज खड़ी हो गई।

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गमले में विसर्जन से आंगन में उगेंगी तुलसी 

मूर्तियों के निर्माण में तुलसी का बीज, तीसी (अलसी), लोहबान का प्रयोग हो रहा है। पर्यावरण अनुकूल मूर्तियों को गमले में विसर्जित करने से तुलसी का पौध अंकुरित होगा। कीमत भी चीनी मूर्तियों के मुकाबिल कम होने से खूब पसंद किया जा रहा। पांडुचेरी, महाराष्ट्र, नागपुर समेत कई प्रांतों जबरदस्त डिमांड है। 80 फीसद की आपूर्ति भी की जा चुकी है।

इन्होंने मूर्तियों में दिखाई रुचि

मध्य प्रदेश के सार्थक गुप्ता, चंद्रकांत, जनार्दन धाकड़े, इलाहाबाद की स्मृति त्रिपाठी, गाजियाबाद के विभूषित गुप्ता, वाराणसी खादिम्स की कविता मालवीय, नागपुर के विवेक गुप्ता, झांसी के सुधाकर धाकड़े ने मूर्तियां मंगाई हैं। 20 हजार मूर्तियां आपूर्ति की जा चुकी हैं। वाराणसी में आरएसएस के लोगों ने भी मूर्तियों मंगाईं हैं। डीसीएसके कालेज (मऊ) के शिक्षकों व स्टाफ ने यूट््यूब और फेसबुक पर देखकर आर्डर किए हैं।

रोजगार का सृजन

पीएम की सोच से रोजगार का सृजन हुआ है। मूर्तियों को बनाने में देशी व गायों के गोबर दो रुपये किलो खरीदा जा रहा है। 150 महिलाएं भी रोजगार पाकर समृद्ध हो रहीं हैं।

कच्चे माल की किल्लत नहीं, दूसरों को भी करना चाहिए

प्रकृति में संभावनाओं का भंडार है। हमने उसे ढूंढ़ा, कदम बढ़ाया तो सफलता मिली। हमारे उत्पादों से चीन को पटखनी मिली है। यूट्यूब, फेसबुक पर लोग  डिजाइन पंसद कर आर्डर दे रहे हैं। कच्चे माल की किल्लत नहीं, दूसरों को भी करना चाहिए। आर्थिक समृद्धि संग देश के काम भी आ सकेंगे।

-डा. संतोष सिंह, निदेशक, साज फाउंडेशन।


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