मशरूम गरीबी के साथ ही कुपोषण से जंग में भी अचूक हथियार बनेगा, बीएचयू से शुरू हुई पहल Varanasi news
मशरूम अभी तक किसानों की आय ही बढ़ाता था लेकिन अब कुपोषण से जंग में अचूक हथियार भी बनेगा।
वाराणसी, जेएनएन। मशरूम अभी तक किसानों की आय ही बढ़ाता था लेकिन अब कुपोषण से जंग में अचूक हथियार भी बनेगा। पूर्व में हुए शोध में साबित हो चुका है कि ताजे मशरूम में 3.7 फीसद प्रोटीन, 0.4 फीसद कार्बोहाड्रेट व 0.6 फीसद पोषक तत्व व 91 फीसद तक पानी होता है। कुपोषण दूर करने व आय बढ़ाने के लिए अब किसानों को इसकी खेती के लिए लगातार जागरूक किया जा रहा है। कृषि विज्ञान संस्थान, बीएचयू के कवक व पादप रोग विज्ञान के प्रो. राम चंद्र का कहना है कि मशरूम की श्वेत बटन, ओइस्टर व मिल्की प्रजाति की खेती करके किसान अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं।
मशरूम में विटामिन बी, सी, डी, कैल्शियम, फास्फोरस व लौह तत्व की प्रचुरता होती है। मशरूम में पाये जाने वाले फोलिक एसिड का महत्वपूर्ण अंश रक्त वृद्धि के लिए अत्यंत उपयोगी है। प्रोटीन और एमिनो एसिड की उपलब्धता के कारण मशरूम की पौष्टिकता सब्जियों से अधिक एवं मांस व दूध के बराबर पाई गई है, जो कुपोषण की रोकथाम का माध्यम बन सकता है।
कम लागत में अधिक मुनाफा - मशरूम की खेती के लिए ज्यादा लागत की आवश्यकता नहीं होती। थोड़े लागत में इसे शुरू किया जा सकता है। इसकी खेती करने के लिए खेत की जरूरत नहीं पड़ती है बल्कि कच्चे, पक्के घरों या छप्परों में किया जाता है। इसे उगाने के लिए भूसे व फसल के अपशिष्ट का उपयोग किया जाता है। इसकी खेती प्राय: जाड़े व बरसात में की जाती है जो बहुत कम समय में तैयार होती है।
एक वर्ग मीटर में 80 किग्रा उत्पादन - वैज्ञानिक आकड़ों के अनुसार एक वर्गमीटर क्षेत्रफल में 80 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है। वहीं इतने ही क्षेत्र में धान या गेहूं की उपज महज 15-20 किग्रा हो पाती है। इसका बाजार मूल्य भी अच्छा मिलता है।
पोषक खाद्य के रूप में हो रहा प्रयोग - प्रो. राम चंद्र ने बताया कि दुनिया भर में मशरूम की 2000 प्रजातियां हैं। इनमें से खाने लायक महज 80 हैं, जिनमें से 40 प्रजातियों की व्यवसायिक खेती होती है। ये पोषक खाद्य के रूप में दुनिया के तमाम देशों में प्रयोग किए जा रहे हैं।
तीन गुना होता लाभ - मशरूम की खेती में लागत का करीब तीन गुना तक लाभ होता है। वर्तमान में कम होती कृषि भूमि क्षेत्रफल, घटते खाद्यान्न, बढ़ती बेरोजगारी, गरीबी व कुपोषण की समस्या को देखते हुए मशरूम की खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है।