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जानें स्किन रोग के होते हैं कितने प्रकार और त्वचा रोगों में हानिरहित आयुर्वेदिक उपचार

बदलते मौसम में त्वचा रोगो में एक्जिमा, कुष्‍ठ, एलर्जी, कालापन और लाइकोडर्मा जैसी बहुत सी बीमारियां आती हैं जो गलत इलाज से जल्दी से ठीक भी नही होती हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 29 Jan 2019 01:37 PM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2019 07:05 AM (IST)
जानें स्किन रोग के होते हैं कितने प्रकार और त्वचा रोगों में हानिरहित आयुर्वेदिक उपचार

वाराणसी [कृष्‍ण बहादुर रावत] । बदलते मौसम और गलत खान पान के कारण शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो त्वचा रोगों से परेशान ना हो। त्वचा रोगो में एक्जिमा, कुष्‍ठ, एलर्जी, कालापन और लाइकोडर्मा जैसी बहुत सी बीमारियां आती हैं जो जल्दी से ठीक नही होती हैं। रोगी परेशान होकर स्टेरॉयड आदि दवाएं लेना शुरू कर देते हैं। शुरुआत में तो सब ठीक रहता है लेकिन कुछ समय बाद स्टेराइड से समस्याएं होने लगती हैं। ऐसी स्थिति में आयुर्वेद के पास बेहतर विकल्प मौजूद हैं जो लंबे समय तक त्वचा रोगों से सुरक्षा प्रदान करती हैं वह भी बिना किसी नुकसान के। आजकल त्वचा रोगों में अधिकांश एक्जिमा से पीड़ित आते है। एक प्रकार का चर्म रोग है। इस रोग में त्वचा शुष्क हो जाती है और बार-बार खुजली करने का मन करता है क्योंकि त्वचा की ऊपरी सतह पर नमी की कमी हो जाती है। एक्जिमा के गंभीर मामलों में त्वचा के ग्रसित जगहों से में पस और रक्त का स्राव भी होने लगता है। यह रोग डर्माटाईटिस के नाम से भी जाना जाता है।

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इस बीमारी के इलाज के बारे में बता रहे हैं चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डॉ अजय कुमार-

आयुर्वेद में सभी त्वचा रोगों को कुष्ठ के अंतर्गत कहा गया है। आयुर्वेद में 18 प्रकार के कुष्ठ रोग है। जिसमें आठ महाकुष्ठ और 11 क्षुद्रकुष्ठ हैं। एक्जिमा को आयुर्वेद में विचर्चिका नामक क्षुद्रकुष्ठ से तुलना की जा सकती है। मुख्य रूप से यह रोग पित्त और रक्त की दुष्टि के कारण होता है और चिकित्सा न कराने पर तेजी से शरीर में फैलता है। 

एक्जिमा के क्या कारण है : आयुर्वेद में खान पान से साथ साथ रहन सहन भी रोगों के उत्पन्न होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। यह हम दोनो कारणों को बात रहे है-

आहार संबंधित कारण - 

1. विरूद्ध आहारों का सेवन करना। जैसे- दूध के साथ नमक का प्रयोग, दूध के साथ खट्टे पदार्थों का सेवन, मूली और लहसुन को दूध के साथ खाना। 

2. हरी सब्ज़ियों को ज्यादातर दूध के साथ लेना। 

3. अत्यधिक शराब का सेवन।

4. पित्तवर्द्धक आहार का अत्यधिक सेवन आदि।

जीवन शैली जन्य कारण - 

1. भोजन के बाद व्यायाम करना या धूप में जाना।

2. धूप से आकर तुरंत ठंडे पानी से नहाना।

3. नियमित रूप से दिन में सोना।

4. मल-मूत्र के वेगों को रोकना आदि।

5. अत्यधिक क्रोध करना।

6. बड़े बुजुर्गों और गुरुजनों का आदर न करना। 

क्या है इससे बचने के उपाय-

1. कपडे धोने का पाउडर को नंगे हाथों से बिलकुल भी ना छुएं, छूना भी पड़े तो दस्तानों का प्रयोग करें।

2. एक्जिमा से ग्रसित जगह पर तंग कपडे ना पहनें जिससे त्वचा पर रगड़ हो

3. सिंथेटिक कपड़ों का भी बिलकुल प्रयोग ना करे, क्योंकि इससे पसीने सूखते नही है।

4. त्वचा पर किसी प्रकार के केमिकल, रंग आदि का इस्तेमाल नही करे।

5. बालो को रंगने के लिए डाई का इस्तेमाल नही करे।

6. चेहरे पर अनावश्यक क्रीम का इस्तेमाल नही करे।

7. धूल मिट्टी के कणों के कारण एलर्जी का खतरा रहता हसि। इससे बचे

8. टैटू का त्वचा पर बुरा प्रभाव

आयुर्वेद में क्या है इलाज़ : यह त्रिदोषज विकार है जिसमे प्रधान रूप से रक्त की दुष्टि होती है इसलिए इसमे ज्यादातर रक्त शोधक औषधियों का प्रयोग किया जाता है। इलाज़ केवल योग्य वैद्य की निगरानी में ही करना चाहिए। आयुर्वेद में बहुत से औषधि योग कहें गए है जो इस रोग में पूर्णत: काम करते हैं जैसे - खदिरारिष्ट, महामंजिष्ठादि क्वाथ, कैशोर गुग्गुलु, त्रिफला गुग्गुलु, गंधकादि मलहर, मरीच्यादि तैल, करंज तैल आदि ।

इसके अलावा आयुर्वेद में इसकी पंचकर्म चिकित्सा भी बताई गयी है जिसमें- वमन, विरेचन और रक्तमोक्षण ये तीनों क्रियाए मुख्य रूप से कराई जाती हैं।


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