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महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में पिशाचमोचन पर किन्‍नरों ने किया त्रिपिंडी श्राद्ध

पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके मोक्ष की प्राप्ति के लिए सारे किन्नरों ने बुधवार को पूरे विधि-विधान के साथ काशी में तर्पण किया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 16 Sep 2020 03:29 PM (IST)Updated: Wed, 16 Sep 2020 06:07 PM (IST)
महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में पिशाचमोचन पर किन्‍नरों ने किया त्रिपिंडी श्राद्ध
महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में पिशाचमोचन पर किन्‍नरों ने किया त्रिपिंडी श्राद्ध

वाराणसी, जेएनएन। मोक्षदायिनी काशी में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी देशभर के किन्नरों ने कोरोना काल के बीच किन्नर अखाड़ा के नेतृत्व में बुधवार दोपहर पिशाच मोचन स्थित घाट पर ज्ञात- अज्ञात पितरों सहित किन्नर गुरुओं के आत्मा की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया। इस दौरान करीब दो घंटे तक चले इस विशेष पूजन अनुष्‍ठान को मुन्ना लाल पंडा ने विधि-विधान से पूर्ण कराया। इससे पूर्व आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, देवी पवित्रा, कामिनी माई के साथ किन्नरों का बनारस आगमन हुआ।

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इतिहास में पहली बार महाभारत काल के शिखंडी द्वारा पिंडदान किए जाने के सैकड़ों वर्षों के बाद किन्नरों ने अपने पूर्वजों का पिंडदान कर एक नई परम्परा की शुरुआत की थी। अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके मोक्ष की प्राप्ति के लिए सारे किन्नरों ने बुधवार को पूरे विधि-विधान के साथ काशी में तर्पण किया। साथ ही साथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना भी की। किन्नर गुरु एकता जोशी की हत्या के बाद उनकी आत्‍मा की शा‍ंति के लिए भी विशेष पूजन-अर्चन किया गया।

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, अश्विन माह के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक अपने पितरों के श्राद्ध की परम्परा है। ये श्राद्ध या महालया पक्ष के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म और वैदिक मान्यताओं में पितृ योनि की स्वीकृति और आस्था के कारण श्राद्ध का प्रचलन है। पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। पूजन के दौरान मुख्य आचार्य नीरज पांडेय व सहयोगीजन की उपस्थिति रही। कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य पंडा पिशाच मोचन आनंद पांडेय, श्री मणिकर्णिका तीर्थ पुरोहित गौरव द्विवेदी व गंगा महासभा के राष्ट्रीय मंत्री मयंक कुमार आदि लोगों का सहयोग रहा।


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