काशी के ठाठ ये गंगा के घाट : संकठा देवी को समर्पित यह घाट
वाराणसी : हिमालय से लेकर गंगा सागर तक घाटों की कई ऐतिहासिक तो कई पौराणिक श्रृंखला में संकठा घाट है।
वाराणसी : हिमालय से लेकर गंगा सागर तक घाटों की कई ऐतिहासिक तो कई पौराणिक श्रृंखला मौजूद है। इसी कड़ी में काशी के चौरासी प्रमुख घाटों की अलग अलग कथाएं हैं जो इसे पौराणिक महत्व के साथ वैश्रि्वक ¨हदू सभ्यता के काल खंड में अमरता प्रदान किए हुए है।
दैनिक जागरण पाठकों के लिए इसी कड़ी में प्रमुख घाटों की कथाएं पेश कर रहा है। आज की कड़ी में शामिल है वह संकठा घाट जिसे शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा से पहचान मिली। मान्यता है कि संकठा देवी यानिमां कात्यायनी देवी दुर्गा का इस घाट पर ख्यात मंदिर बना हुआ है। जिसके कारण कालांतर में घाट का नामकरण उन्हीं के नाम पर हुआ। इससे पूर्व घाट का विस्तार गंगामहल तक था अठ्ठारहवीं सदी के मध्य में गंगामहल घाट पक्का होने के बाद घाट के दो हिस्से हो गए।
घाट के इतिहास को जानने वाले बताते हैं कि शक्ति के बड़े उपासक माने जाने वाले विश्वम्भर दयाल की पत्नी ने घाट का निर्माण 1825 में कराया। काशीखण्ड के अनुसार मान्यता है कि संकठाघाट प्राचीन समय में श्मशान घाट ही था क्योंकि घाट क्षेत्र में यमेश्वर शिव एवं हरिश्चन्द्रेश्वर मंदिर की स्थापना है। प्राचीन काल में जम द्वितीया को घाट बड़ा स्नान मेला होने की किंवदंती आज भी लोग सुनाते हैं। आज भी जम द्वितीया पर घाट पर स्नान करने जानकार लोग आते हैं। स्थानीय तीर्थ पुरोहितों के मतानुसार घाट के सम्मुख वीर व चन्द्र आदि तीर्थ की मान्यता है। घाट पर चिन्तामणि विनायक मंदिर, बैकुण्ठमाधव, वशिष्ठेश्वर शिव आदि मंदिरों की भी स्थापना है। घाट पर ही बड़ौदा के राजा का महल बना हुआ है जिसे उनकी महारानी ने बनवाया था। समीपवर्ती क्षेत्रों में गुजराती, मराठी समाज की बहुतायत आबादी रहती है। वर्ष 1965 में सिंचाई विभाग की ओर से घाट को पुन: नया स्वरूप दिया गया था। घाट पर चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्र पर काफी श्रद्धालुओं का आगमन होता है। दर्शन पूजन के अतिरिक्त भी घाट की विशेष मान्यता होने की वजह से गंगा दशहरा व दीपावली पर भी घाट पर विशेष आयोजन होते हैं।