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हिंदी गजल और सामयिक चेतना का सृजन करती रही काशी, नागरी प्रचारिणी सभा में बोले प्रख्यात गजलकार कमलेश भट्ट

सोच विचार के संयोजन में आज नागरी प्रचारिणी सभा में आयोजित हिन्दी गजल और सामयिक चेतना विषयक विमर्श के मुख्य अतिथि दिल्ली से पधारे प्रख्यात गजलकार कमलेश भट्ट कमल ने कहा कि हिन्दी गजल ने स्वयं को समकालीन कविता के मुहावरे से जोड़कर प्रासंगिक एवं चेतना सम्पन्न बनाया है ।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 27 Oct 2021 05:40 PM (IST)Updated: Wed, 27 Oct 2021 05:40 PM (IST)
हिंदी गजल और सामयिक चेतना का सृजन करती रही काशी, नागरी प्रचारिणी सभा में बोले प्रख्यात गजलकार कमलेश भट्ट
हिन्दी गजल और सामयिक चेतना विषयक विमर्श के मुख्य अतिथि दिल्ली से पधारे प्रख्यात गजलकार कमलेश भट्ट कमल

जागरण संवाददाता, वाराणसी। साहित्यिक संघ वाराणसी द्वारा सोच विचार के संयोजन में आज नागरी प्रचारिणी सभा में आयोजित हिन्दी गजल और सामयिक चेतना विषयक विमर्श के मुख्य अतिथि दिल्ली से पधारे प्रख्यात गजलकार कमलेश भट्ट कमल ने कहा कि हिन्दी गजल ने स्वयं को समकालीन कविता के मुहावरे से जोड़कर प्रासंगिक एवं चेतना सम्पन्न बनाया है । हर विसंगति एवं विडम्बना पर हिन्दी गजल की नजर है तथा वह हर टूटन एवं बिखराव को रोकने के लिए बेचैन दिखलाई पड़ती है ।

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सामाजिक सरोकारों की कोख से जन्मी हिन्दी गजल सामयिक सरोकारों से कभी मुख नहीं मोड़ सकती है । लेकिन इसमें कितनी गहराई और व्याप्ति आई है तथा इसके रंग कितने चटख हुए हैं, समय - समय पर इसकी पहचान जरूरी है । संगोष्ठी के अध्यक्ष प्रतिष्ठित रचनाकार डॉ . चंद्रभाल सुकुमार ने कहा कि सामयिक चेतना की प्रखर अभिव्यक्ति ही हिन्दी गजल के मूल में है । आपातकाल में जब सभी विधाएं मौन हो गई थीं, दुष्यंत के माध्यम से हिन्दी गजल की मुखरता ने संसद से सड़क तक अपनी पहचान बनाई, उस काल से आज तक हिन्दी गजल की भाषा तेवर , शिल्प एवं स्वर कभी मद्धिम नहीं पड़ा ।

सामयिक चुनौतियों से जूझते रहना ही इसकी चेतनता और जीवंतता का प्रमाण है । संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रो. वशिष्ठ अनूप ने कहा कि हिन्दी गज़ल हमारे समय के बहुआयामी यथार्थ और अनेक प्रकार की चुनौतियों से रूबरू होकर उनसे सीधी मुठभेड़ कर रही है । इनमें किसानों, मजदूरों और मध्यवर्ग का जीवन संघर्ष तो है ही, शिक्षा , चिकित्सा , सुरक्षा और रोजी रोटी की समस्याओं के साथ साथ प्रेम और सौन्दर्य की छवियाँ भी हैं । समकालीन जीवन का कोई आयाम इससे अछूता नहीं रह गया है । इसी कारण हिन्दी गजल आज हिंदी कविता की सबसे लोकप्रिय विधा के रूप में प्रतिष्ठित है । विमर्श में सहभागिता करते हुए चर्चित कवि एवं गजलकार शिवकुमार पराग ने हिन्दी के समर्थ आलोचकों द्वारा गजल की उपेक्षा का प्रश्न उठाया ।

काशी के प्रतिनिधि गजलकार धर्मेंद्र गुप्त साहिल ने इस बात को रेखांकित किया कि समय के साथ होना ठीक है किंतु गजल के रूप विधान एवं स्तरीयता के प्रति भी सजगता जरूरी है । आकाशवाणी की सेवा से सम्बद्ध गजलकार अभिनव अरूण ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि हिन्दी गजल ने हिंदी साहित्य की समृद्धि में नया अध्याय जोड़ा है तथा समय की नब्ज पर मजबूती के हाथ रखते हुए समय के पार भी अपनी दृष्टि का फैलाव किया है । साथ के के पूर्व हुए राजन संध्या में मास्थ्य अतिथियों सहित सिटसाथ कामी , मरोत्तम शिक्षण शम्भुनाथ श्रीवास्तव, डॉ राम औतार पांडे, आदि थे।


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