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आक्षेपों की तपिश के दौर से गुजर रहा रंगकर्म, हरिश्चंद्र की विवशता पर फिर रोई काशी

आक्षेपों की तपिश के दौर से गुजर रहे रंगकर्म के लिए रविवार की शाम बारिश की बूंदों से कम न रही।

By Edited By: Published: Mon, 03 Jun 2019 01:01 AM (IST)Updated: Mon, 03 Jun 2019 03:38 PM (IST)
आक्षेपों की तपिश के दौर से गुजर रहा रंगकर्म, हरिश्चंद्र की विवशता पर फिर रोई काशी

वाराणसी, जेएनएन। आक्षेपों की तपिश के दौर से गुजर रहे रंगकर्म के लिए रविवार की शाम बारिश की बूंदों से कम न रही। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के युवा रंगकर्मियों ने उत्तर प्रदेश की लोक नाट्य शैली नौटंकी में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की विवशता और सत्य के प्रति दृढ़ता को पिरोया।

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नेशनल स्‍कूल आफ ड्रामा (एनएसडी) वाराणसी केंद्र के पहले दीक्षांत रंग काशी के दीक्षांत समारोह के तहत आयोजित समारोह के तीसरे दिन कलाकारों ने नागरी नाटक मंडली के मंच पर इसका मंचन ही नहीं किया बल्कि इसे खुद जी लेने का अहसास दिया। सदियों पहले महाश्मशान पर घटित प्रसंग के जरिए नौटंकी के बिसर जाने की धारणा को भी धोया।

संस्कारों के शहर बनारस में मणिकर्णिकाघाट पर पुत्र के दाह संस्कार के बदले पत्नी तारामती से समय के आगे विवश हरिश्चंद्र ने कर के प्रति दृढ़ता से पलकों की कोरों को भी गीला कर दिया। 'तज कर रोना-पीटना, मन में धीरज धार। मरघट के कर का टका, दे मत करे अबार।।' के साथ ही 'पति कर मांगो कौन पर मन में करो विचार। ये बेटा है आपका, ये रोहित प्राणधार।।' समेत हरिश्चंद्र-तारामती के विभिन्न संवादों के दौरान दर्शकों की जेब से निकल आंखों पर फिरती रुमालों ने नाट्य-विधा व अभिनय की प्रभाविता का आभास कराया। लोक नाट्य के जरिए कलाकारों ने अपनी सत्य सनातन संस्कृति से रूबरू कराया और गर्व की अनुभूति भी कराया। नौटंकी के साज भले ढोलक-हारमोनियम के सिवा सितार- बांसुरी समेत अन्य रहे हों लेकिन साजिंदों ने इनका विधा और प्रसंग के अनुकूल ढालते हुए हरिश्चंद्र की जीवटता को जीवंत कर दिया।

पं. रामदयाल शर्मा के निर्देशन में निखिल ठाकुर-मनीष दुबे (हरिश्चंद्र), करिश्मा देस्ले (तारामती), पूजा सेन (रोहिताश्व), प्राजुल नामदेव (इंद्र), रवि कुमार-अंकुर सिंह (विश्वामित्र), लल्लन (माली), अंकित शर्मा (पंडित), हेमंत गुप्ता (कल्लू डोम), कीर्ति गुप्ता (जोहरा) के साथ ही अभिषेक, अश्विन, सिद्धार्थ, नैंसी, शाजिया, शिल्पी, शेखर ने अभिनय किया। प्रवीण मडके व पुनीत सिंह सूत्रधार थे। स्वागत केंद्र निदेशक रामजी बाली ने किया। संस्कृति के गुलदस्ते को एनएसडी ने दी पूर्णता नाट्य देखने के लिए नगर के विशिष्टजनों के साथ ही जिलाधिकारी सुरेंद्र सिंह व मुख्य विकास अधिकारी गौरांग राठी भी पहुंचे।

डीएम ने कहा कि संस्कृति के शहर बनारस में संगीत घराने हैं, कमी थी तो नाट्य की जो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के जरिए पूरी हो गई। बनारस की धरती पर घटी घटना को उत्तर प्रदेश के लोक नाट्य नौटंकी में पिरोना खास रहा। इसमें राजा हरिश्चंद्र का पुत्र के दाह संस्कार के बदले कर वसूलना सबसे प्रभावी अंश रहा जिसने विभोर किया।

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