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कारगिल विजय दिवस : गाजीपुर जिले के छह जवानों ने दी थी कारगिल युद्ध में सर्वोच्‍च शहादत

जिस दिन कारगिल विजय की घोषण हुई तो सभी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। सैनिक पुनर्वास कार्यालय में 26 जुलाई को जहां कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है वहीं वीरगति को प्राप्त होने वाले अलग-अलग दिनों में संबंधितों का शहीद दिवस भी मनता है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 07:00 AM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 07:00 AM (IST)
कारगिल विजय दिवस : गाजीपुर जिले के छह जवानों ने दी थी कारगिल युद्ध में सर्वोच्‍च शहादत
जिस दिन कारगिल विजय की घोषण हुई तो सभी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।

गाजीपुर [सर्वेश कुमार मिश्र]। वीरों और शहीदों की धरती गाजीपुर ने कारगिल की लड़ाई में भी न सिर्फ अपना लोहा मनवाया बल्कि अपनी शहादत से जीत की पटकथा लिखी। इसमें भैरोपुर के कमलेश सिंह, फखनपुरा के इस्तियाक अहमद, पंडितपुरा के जयप्रकाश सिंह यादव, पड़ैनिया के रामदुलार यादव, बाघी के शेषनाथ सिंह यादव व धनईपुर के संजय यादव शामिल हैं। इस युद्ध में सुहागिनों ने अपना सुहाग खो दिया तो मां-बाप ने बेटा। किसी ने भाई खोया तो किसी के सिर से पिता का साया उठ गया, लेकिन जिस दिन कारगिल विजय की घोषण हुई तो सभी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। सैनिक पुनर्वास कार्यालय में 26 जुलाई को जहां कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है वहीं वीरगति को प्राप्त होने वाले अलग-अलग दिनों में संबंधितों का शहीद दिवस भी मनता है।

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1. लड़ाई शुरू होने से कमलेश सिंह को नहीं मिली छुट्टी

गाजीपुर : बिरनो ब्लाक के भैरोपुर गांव निवासी कारगिल शहीद कमलेश सिंह का जन्म 15 मई 1967 को हुआ था। कमलेश की तैनाती 457 एफआरआई भटिंडा में लांस नायक पद पर हुई थी। ऑपरेशन विजय में उनके अदम्य साहस के फलस्वरूप उन्हें सेना मेडल नवाजा गया था। कमलेश सिंह 15 जून 1999 को कारगिल युद्ध में शहीद हो गए। कमलेश सिंह सात जून 1999 को वह छुट्टी आने वाले थे, लेकिन लड़ाई शुरू होने पर उन्हें छुट्टी नहीं मिल पाई। परिवार के लोगों ने बताया कि बेटे की शहादत के बाद सरकार की तरफ से पत्नी के नाम पेट्रोल पंप और सहायता के रूप में ठीकठाक राशि उपलब्ध कराई गई थी लेकिन कुछ समय बाद कमलेश की पत्नी रंजना अपने मायके वालों के साथ लखनऊ रहने लगी। शहीद कमलेश सिंह की कोई संतान नहीं है। सरकार की तरफ से सहायता मिलने के बाद शहीद की पत्नी के परिवार से अलग होने के बाद शहीद के स्वजन दुखी हैं।

उन्होंने कहा कि देश की सेवा में शहीद होने वाले जवानों की पत्नियों को सरकार सहायता उपलब्ध कराती है लेकिन वह यह नहीं सोचती है कि शहीद के बूढ़े मां-बाप कैसे अपना जीवनयापन करेंगे। कमलेश सिंह की शहादत के बाद केंद्रीय मंत्री डा. महेंद्रनाथ पांडेय के प्रयास से बिरनो थाना के सामने तिराहे पर उनकी प्रतिमा का निर्माण हुआ। शहीद कमलेश सिंह की शहादत पर क्षेत्र के लोगों को गर्व है, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के घोषणा के बाद भी आज तक शहीद के गांव भैरोपुर को शहीद गांव का दर्जा नहीं मिला।

2- कारगिल युद्ध में दोनों भाइयों ने दुश्मनों का किया मुकाबला

गाजीपुर : अपने देश की आन मान व शान की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अमर शहीदों में कारगिल शहीद फखनपुरा निवासी इस्तियाक खां का नाम सम्मान के साथ बड़े गर्व से लिया जाता है। कारगिल युद्ध के दौरान अपने प्राणों की बलि देने वाले इस्तियाक खां अपने अपने चार भाइयों युसूफ, इम्तियाज के बाद तीसरे नंबर पर थे। गांव के बहादुर इस्तियाक खां वर्ष 1996 में भारतीय सेना के 22 ग्रिनेडियर में भर्ती हुए। इश्तियाक की शादी 10 अप्रैल 1999 में शाहबाजकुली गांव निवासी नजरुल्लाहपुर खां की बेटी रसीदा खान से हुई। इस्तियाक शादी कार्यक्रम के लिए ही अवकाश पर अपने घर आए हुए थे कि उसी दौरान कारगिल का युद्ध छिड़ गया। शादी के बाद बिना समय गंवाए इस्तियाक खां अपने देश सेवा के लिए कूच कर गये। वहां से इश्तियाक ने अपने बचपन के जिगरी दोस्त मोहम्मद आजम को एक मार्मिक पत्र लिखा कि मौत से जिस दिन हम सब डरने लगेंगे तो फिर भारत माता की रक्षा कैसे होगा। संयोग यह था कि इश्तियाक के बड़े भाई लांस नायक इम्तियाज भी सैन्य कार्रवाई में उनके साथ थे। 30 जून 1999 को बटालिक सेक्टर में सेना की 22वीं ग्रेनेडियर की चार्ली कंपनी के जवानों को टास्क फोर्स में रहकर हमला करने का आदेश मिला। इस कंपनी में कुल 40 सैनिक थे जिसमें से इश्तियाक व उनके बड़े भाई इम्तियाज के अलावा दो और जवान बखतार खान व शहाबुद्दीन खां फखनपुरा गांव के ही थे।

ऊपर से दुश्मन फायरिंग कर रहे थे। भारतीय सेना के अधिकारी उनको घेरने की योजना बना रहे थे कि इश्तियाक ने सुझाव दिया कि पहाड़ी पर घूम कर जाने से बेहतर है हम रस्सी के सहारे सीधे पहाड़ी पर चढ़ जाएं। उनकी सलाह अफसरों क इश्तियाक अपने साथियों के साथ रस्सी से पहाड़ी पर चढ़ने लगे, लेकिन आधी दूरी तय करने के बाद ही दुश्मन ऊपर से फायरिंग करने लगे। किसी तरह इश्तियाक ऊपर पहुंच गए और दुश्मनों से भिड़ गए लेकिन वह वीरगति को प्राप्त हुए। युद्ध में उनके बड़े भाई इम्तियाज खां भी पैर में बर्फ लगने से चोटिल हो गये थे।

3- पढ़ाई कर रहा है शहीद का बेटा

मुहम्मदाबाद : आपरेशन कारगिल में क्षेत्र के पड़ैनिया गांव के लांस नायक रामदुलार यादव ने शहादत देकर इलाके के गौरव को बढ़ाने का कार्य किया। रामनगीना यादव व सुरजी देवी के पांच पुत्रों में तीसरे नंबर के रामदुलार यादव का जन्म एक जुलाई 1974 को हुआ था। वर्ष 1990 में कुंमाऊ रेजिमेंट भर्ती हुए थे। कारगिल युद्ध के दौरान उन्होंने देश की सीमा की रक्षा करते हुए उन्होंने 21 अगस्त 1999 को अपने प्राण का न्यौछावर कर दिया। शहीद के परिवार में पत्नी परमिला यादव के अलावा पुत्र अमित कुमार यादव व पुत्री प्रियंका यादव हैं। अमित इलाहाबाद में बीएससी के साथ साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे हैं। बिटिया प्रियंका की शादी हो चुकी है। परिवार को शासन की ओर से पेट्रोल पंप व दिल्ली में मकान मुहैया कराया गया है। शहीद रामदुलार की याद में परिवार की ओर से गांव स्थित मैदान के पास शहीद की प्रतिमा लगाई गई है। वहां पर प्रत्येक वर्ष 21 अगस्त को शहादत दिवस का आयोजन किया जाता है।

4- कभी न भूलेगी संजय की शहादत

गाजीपुर : देवकली ब्लाक सें सात किमी पूर्व व दक्षिण दिशा में स्थित धनईपुर में जन्मे शहीद संजय सिंह यादव ने देश की रक्षा करते हुए यह वीर जवान एक सितंबर 1999 को मातृभमि की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति दे दी। शहीद संजय सिंह यादव कुमाउं बटालियन कॆ 11 वी रेजीमेंट में कार्यरत थे। शहादत के बाद सरकार ने उनके परिवार को सहायता स्वरूप एक पेट्रोल पंप दिया जिससे उनका भरण-पोषण होता है। शहीद संजय यादव की पत्नी राधिका यादव अपने बच्चों गौरव व सौरभ यादव के साथ वाराणसी में रहती हैं। परिवार को एक पेट्रोल पंप तो दिया गया, लेकिन इसके अलावा और बहुत से ही सुविधाएं आज तक मुहैया नहीं कराई गईं।

5. शादी के बाद सीधे पहुंच कर संभाल लिया मोर्चा

गाजीपुर : भारत मां की रक्षा के खातिर कारगिल युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर सपूतों में भेलमपुर उर्फ पंडितपुरा के होनहार जयप्रकाश यादव का नाम भी शामिल है। पिता विजयशंकर यादव तथा माता ललिता देवी के तीन पुत्रों जयप्रकाश, ओमप्रकाश व रामप्रकाश तथा दो पुत्रियों सरोज व मनोज में सबसे बड़े थे। वर्ष 1996 में जयप्रकाश भारतीय सेना के 22 ग्रिनेडियर में भर्ती हुए। इनकी शादी 12 मई 1999 को मालती के साथ हुई। वह शादी समारोह को संपन्न कराने के लिए अवकाश पर अपने घर आए हुए थे। उसी दौरान दुश्मनों ने कारगिल पर चढ़ाई कर दी। सूचना मिलते ही वह अपने देश की रक्षा के लिए शादी के बाद बिना समय गंवाए सीमा के लिए प्रस्थान कर गए और कारगिल में अदम्य साहस का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। जयप्रकाश यादव को कोई संतान नहीं थी। उनके शहीद होने के दो वर्ष बाद पत्नी मालती ने दूसरी शादी कर ली। इसके बाद सरकार ने शहीद के परिवार को सहायता रूवरूप दिया जाने वाला पेट्रोल पंप जयप्रकाश सिंह यादव के मां के नाम आवंटित कर दिया।

6-शेषनाथ की वीरता पर नाज है सभी को

गाजीपुर : नंदगंन क्षेत्र के बाघी निवासी शेषनाथ यादव भी 15 जून 1999 को दुश्मनों से लोहा लेते समय वीर गति को प्राप्त हो गए। इनके पिता बलदेव यादव किसान और मां नौरंगी देवी गृहणी थीं। अपने चार भाइयों काशी यादव, शेषनाथ यादव, हरिहर यादव, पशुपतिनाथ यादव में दूसरे नंबर थे। पत्नी सरोज यादव आज भी अपने ससुराल में ही रहती हैं। शहीद के नाम से मिले गैस एजेंसी को परिवार के साथ चलाती हैं। पत्नी सरोज यादव हर वर्ष अपने शहीद पति की पुण्यतिथि पर कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें याद करती हैं। शेषनाथ यादव भटिंडा में लांस नायक पद पर तैनात थे। कारगिल युद्ध में उनकी वीरता पर पूरा देश गर्व करता है। इनके एक पुत्र शिवा यादव (30) और दो पुत्री सीमा यादव (24) व सपना यादव (19) हैं। शिवा यादव गैस एजेंसी को संभालते हैं, जो धरवां कला में है। अब यहीं अपना आवास बनाकर परिवार उनका रहता भी है।


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