Sonbhadra में 44 साल पहले 28.64 करोड़ की लागत से शुरू हुई कनहर सिंचाई परियोजना अभी तक अधूरा
सोनभद्र में करीब 44 साल से निर्माणाधीन कनहर सिंचाई परियोजना का लाभ क्षेत्रवासियों को कब मिलेगा कहा नहीं जा सकता है। परियोजना का कार्य शुरू होते अस्सी के दशक तक लागत पचास करोड़ पार करते हुए सौ के आंकड़े को छूने लगी।
सोनभद्र, जेएनएन। उत्तर प्रदेश, झारखंड व छत्तीसगढ़ के सीमांत पर विकास क्रांति की धूरी के रूप में करीब 44 साल से निर्माणाधीन कनहर सिंचाई परियोजना का लाभ क्षेत्रवासियों को कब मिलेगा। यह सवाल साढ़े चार दशक से हरियाली का सब्जबाग देख रहे तीनों प्रांत के लाखों लोगों के जेहन में है। इससे उत्तर प्रदेश के साथ झारखंड के 108 गांवों में सिंचाई का मुकम्मल इंतजाम होने का खाका तैयार सत्तर के दशक में किया गया था। उस वक्त परियोजना की लागत महज 28.64 करोड़ आकी गई थी। जैसे-जैसे परियोजना निर्माण में विलंब हो रहा है, उसकी लागत बढ़ती जा रही है। इस परियोजना में अब तक 2200 करोड़ से अधिक व्यय होने के बावजूद मुख्य बांध का कार्य लगभग अस्सी फीसद ही पूरा हो पाई है। अब इस परियोजना को पूरा होने मे अनुमानित लागत 3571.88 करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना सूत्रों द्वारा जताई जा रही है। इसके साथ परियोजना में मुख्य अभियंता द्वारा तय समय सीमा (जून 2021) में पूरा होने पर भी संशय दिख रही है।
परियोजना की लागत कब और कितनी बढ़ी
कनहर-पांगन नदी के संगम तट पर कनहर सिंचाई परियोजना की आधारशिला रखने के वक्त इसकी अनुमानित लागत 28.64 करोड़ रुपये आकी गई थी। परियोजना का कार्य शुरू होते अस्सी के दशक तक लागत पचास करोड़ पार करते हुए सौ के आंकड़े को छूने लगी। विस्थापित मद में हुए खर्चे को जोड़ते हुए नब्बे की दशक तक परियोजना की लागत सौ करोड़ के आंकड़े को पार कर गई थी। इसके बाद राज्य में सत्ता परिवर्तन होने के बाद तत्कालीन सरकार का ध्यान बाढ़ सागर परियोजना पर केंद्रित हो गया। इस परियोजना के लिए आवंटित बजट के साथ ही मानव शक्ति को बाण सागर में डायवर्ट कर दिया गया। राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव में दबी इस परियोजना को लेकर सुगबुगाहट 2007 के विधान सभा चुनाव में हुई। परियोजना पूरा कराने के वायदे के साथ चुनाव मैदान में सफलता हासिल करने वाले तत्कालीन विधायक सीएम प्रसाद ने मृत पड़ी परियोजना को न सिर्फ संजीवनी दिलाया, बल्कि उसे बसपा सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट में शुमार कराया। सन 2008-09 में इसकी अनुमानित लागत बढ़कर 850 करोड़ रुपये पहुंच गई, किंतु तकनीकी कारणों एवं विस्थापितों के कड़े विरोध के कारण परियोजना के मुख्य बांध का काम उस वक्त भी शुरू नहीं हो पाया। सन 2012 सत्ता में आई सपा सरकार ने इस महत्वपूर्ण परियोजना को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल कर तत्कालीन विधायक रूबी प्रसाद के जरिये इसे अमली जामा पहनाने में जुट गई। तब तक परियोजना की लागत 1800 सौ करोड़ के आंकड़े को छूने लगी। 2014-15 में परियोजना के प्रति सख्त हुए शासन के रुख को देखते हुए तत्कालीन जिलाधिकारी डीके ङ्क्षसह ने करीब तीन दशक से ठप पड़े परियोजना का न सिर्फ निर्माण कार्य शुरू कराया,बल्कि विस्थापितों के मध्य समझौता भी कराया। इसके तहत 1044 मूल विस्थापित परिवारों के आबाद तीन पीढ़ी के 3719 परिवारों को प्रति परिवार सात लाख ग्यारह हजार रुपये विस्थापन पैकेज देने सहमति के कारण लागत 2239 करोड़ के आंकड़े पर पहुंच गई। अब इस परियोजना को पूरा करने के लिए अब और करीब तेरह सौ करोड़ रुपये व्यय होने की संभावना जताई जा रही है।
परियोजना में आई एवं संभावित अड़चन
साठ के दशक में पड़े भीषण अकाल के बाद अमवार में बांध का निर्माण करने की रूप रेखा तैयार हुई। प्रस्ताव बना कि उत्तर प्रदेश ग्यारह, झारखंड एवं छत्तीसगढ़ के चार-चार गांव इससे प्रभावित होंगे। जबकि इसके बदले 108 गांवों में सिंचाई की मुकम्मल व्यवस्था के साथ समूचे क्षेत्र के जल स्तर बढ़ाने की योजना बनी। अस्सी के दशक तक राज्य के डूब क्षेत्र में आबाद 1044 परिवारों को। सूखे के बाद सत्तर के दशक में शासन एवं विस्थापितों के मध्य हुए समझौते में अस्सी के दशक में मुआवजा ले चुके दिसंबर 2014 से अनवरत चालू इस परियोजना पर सितंबर 2019 तक 1834 करोड़ रुपये व्यय किया जा चुका है। बावजूद इसके 1500 करोड़ की और डिमांड है। अब जब विस्थापन पैकेज को लेकर हो हल्ला मचा है तो इसके पूर्ण होने को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।