श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर की तर्ज पर वाराणसी में विकसित होगा काल भैरव मंदिर, सर्वेक्षण कर रिपोर्ट तैयार
वाराणसी में पर्यटन विभाग ने श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर की तर्ज पर काल भैरव मंदिर क्षेत्र को भी विकसित करने की योजना बनाई है।
वाराणसी [जेपी पांडेय]। काशी में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु परंपरा अनुसार श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर जाने से पहले काल भैरव मंदिर में मत्था टेकते हैं। प्रतिदिन भक्तों की यहां भीड़ रहती है। साफ-सफाई का मुकम्मल प्रबंध नहीं होने और संकरी गलियों में आवाजाही से पर्यटकों को काफी परेशानी होती है। ऐसे में पर्यटन विभाग ने श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर की तर्ज पर काल भैरव मंदिर क्षेत्र को भी विकसित करने की योजना बनाई है। अब शासन से हरी झंडी मिलने का इंतजार है।
पिछले दिनों नगर निगम और पर्यटन विभाग ने संयुक्त रूप से क्षेत्र का सर्वेक्षण कर रिपोर्ट तैयार की है। इसमें मंदिर परिक्षेत्र के आसपास के कुछ मकानों का अधिग्रहण करने, सड़कों के चौड़ीकरण समेत अन्य कार्य कराने की आवश्यकता बताई गई है। दरअसल, पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिछले दिनों बनारस दौरे पर पर्यटन विभाग के अधिकारियों की टीम आई थी। टीम ने काल भैरव मंदिर के आसपास निरीक्षण कर विभागीय अधिकारियों को सर्वेक्षण कराने का निर्देश भी दिया था।
अनुमति मिली तो यह होगा काम
शासन से हरी झंडी मिलने पर काल भैरव मंदिर के 100 मीटर दायरे में मकानों को चिह्नित किया जाएगा। आकलन के बाद तय किया जाएगा कि अधिग्रहण में कितना पैसा व्यय होगा। मैदागिन-विश्वेश्वरगंज रोड से मंदिर तक व काल भैरव मंदिर से पराड़कर भवन तक की सड़क चौड़ी होगी, जिससे एक तरफ से वाहन प्रवेश करें और दूसरी तरफ से निकासी व दोनों मार्गों पर प्रवेश द्वार बनाने की भी योजना है।
गंगा घाट तक मार्ग का निर्माण
काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर की तरह काल भैरव मंदिर का विस्तार गंगा तक करना मुश्किल है। इसलिए गंगा घाट तक जाने के लिए व्यवस्थित रास्ता निर्माण को भी सर्वेक्षण रिपोर्ट में शामिल किया गया है।
वाराणसी के काल भैरव मंदिर की अपनी विशिष्ट महत्ता
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यहां पर भगवान काल भैरव को मदिरा प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है और साथ ही यहां भक्तों को प्रसाद में भी मदिरा दी जाती है। काशी तीर्थ में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक एक से बढ़कर एक मान्यता प्राप्त पौराणिक देवालय हैं पर इनकी कुल संख्या कितनी है यह गहन शोध का विषय है। पर इन सभी के मध्य वाराणसी के काल भैरव मंदिर की अपनी विशिष्ट महत्ता है, जिसे देश के ख्याति प्राप्त भैरव तीर्थों में प्रथम स्थान पर परिगणित किया जाता है। काशी तीर्थ के भैरव नाथ मुहल्ले में विराजमान काल भैरव को काशी तीर्थ का क्षेत्रपाल कहा जाता है और काशी के कोतवाल के नाम से इनकी प्रसिद्धि संपूर्ण जंबूद्वीप में है। यहां स्थल मार्ग (काशी विश्वनाथ से आगे) व जलमार्ग (गंगा के रास्ते नाव से होकर) दोनों से आना सहज है। भारतीय वांगमय में विवरण मिलता है कि ब्रह्मा और कृतु के विवाद के समय ज्योतिर्निगात्मक शिव का जगत् प्रादुर्भाव हुआ। जब ब्रह्मा जी ने अहंकारवश अपने पांचवें मुख से शिवजी का अपमान किया तब उनको दंड देने के लिए उसी समय भगवान शिव की आज्ञा से भैरव की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव ने भैरव जी को वरदान देकर उन्हें ब्रह्मा जी को दंड देने का आदेश दिया। सदाशिव ने भैरव का नामकरण करते हुए स्पष्ट किया कि आपसे काल भी डरेगा।