संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में नौकरी की आस में खेत भी बिक गया फिर भी नहीं मिली नौकरी
जालसाजों ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में नौकरी दिलाने के नाम पर बेरोजगार युवकों से छह से दस लाख रुपये तक की वसूली की है।
वाराणसी, जेएनएन। जालसाजों ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में नौकरी दिलाने के नाम पर बेरोजगार युवकों से छह से दस लाख रुपये तक की वसूली की है। किसी ने खेत बेचकर तो किसी ने ब्याज पर पैसा लेकर दिया था। इसके बावजूद उन्हें नौकरी भी नहीं मिली और पैसा भी डूब गया। लाखों रुपये फंस जाने के कारण कई भुक्तभोगी कई युवक डिप्रेशन में चल रहे हैं। वह फोन से बात करते-करते रो पड़े हैं। वहीं, परिवार वालों को समझ में नहीं आ रहा है की क्या करें।
ठगी के शिकार युवकों में एक उदौली-सीतापुर निवासी दिनेश कुमार पटेल भी हैं। पटेल का कहना है कि हम लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हैं। वर्षों पहले पिता का सिर से छाया उठ गया था। मेहनत-मजदूरी करने किसी तरह से जीवन यापन करता था। इस बीच मेरी मुलाकात एक युवक से हुई। उन्होंने संस्कृत विश्वविद्यालय में नौकरी दिलाने का आश्वासन दिया। कहा कि दस लाख रुपये देने होंंगे। मैंने अपने दादा खंडेश्वर प्रसाद से कहा। पहले तो उन्होंने इंकार कर दिया। बोले इतना पैसा हम कहां जुटाएंगे। हालांकि बाद में ब्याज पर पैसा लेकर देने के लिए तैयार हो गए। जालसााजों ने संस्कृत विवि के नाम पर एक फर्जी वेबसाइट बनाई थी। इसी वेबसाइट के माध्यम से आवेदन मांगा। यही नहीं ऑनलाइन परीक्षा भी कराई। विश्वविद्यालय के सामने आयुर्वेंद कालेज में पांच हजार रुपये लेकर मेडिकल भी कराया। यहीं नहीं विश्वविद्यालय के लेटर पैड पर बकायादा नियुक्ति पत्र भी दिया। कुलसचिव के हस्ताक्षर से जारी परिचय पत्र भी हम लोगों के पास है। हमलोगों से परिसर स्थित पाणिनी भवन में तीन माह तक काम भी लिया गया। परिसर स्थित इलाहाबाद बैंक (अब इंडियन बैंक) खाता भी खोलवाया गया। उपस्थिति पंजिका पर लगातार तीन माह तक हस्ताक्षर कराने केे बाद भी वेतन के नाम पर एक रुपया नहीं दिया गया। दबाव बनाने पर पता चला कि नियुक्ति फर्जी है। बताते-बताते दिनेश रोने लगे। बोले मेरे दादा सदमा बर्दाश्त नहीं कर सके। उन्होंने आत्महत्या कर लिया। वहीं उसके जाने के बाद ब्याज का पैसा चुकाने के लिए ढाई बीघा खेल बेचना पड़ा। यह तो एक बनाई है। जालसाजों से ऐसे 23 बेरोजगार युवकों को फंसाया था। 15 युवकों को लिपिक पद पर व आठ युवकोंं को परिचारक पद नियुक्ति पत्र बांटा था।
विश्वविद्यालय के कर्मचारी भी लिप्त
संस्कृत विश्वविद्यालय में फर्जी नियुक्ति के मामले में किसी बड़े रैकेट के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है। वहीं, विश्वविद्यालय के कुछ कर्मचारियों की भी संलिप्तता बताई जा रही है। इस खेल में विश्वविद्यालय के दो कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध है। जालसाजों ने कर्मचारियों को मिलाकर फर्जी नियुक्ति का पूरा खेल रचा है।
कार्रवाई के नाम पर हीलाहवाली
ठगी के शिकार युवकोंं का दावा कि कुलसचिव व कुलसचिव में अप्रैल में ही वाट््स-एप के माध्यम से पूरी जानकारी दे दी गई है। इसके बावजूद विश्वविद्यालय कार्रवाई के नाम पर हीलाहवाली करता रहा। काफी दबाव बनाने पर चेतगंज थाने में तहरीर देकर कोरम पूरा किया गया।
''फर्जी नियुक्तियों के बारे में अब तक मुझे कोई जानकारी नहीं हैं। हालांकि इसके बारे में चीफ प्रॉक्टर से जानकारी मांगी गई है ताकि इसका अध्ययन कर आगे की कार्रवाई की जा सके। दो-तीन दिन के भीतर इस प्रकरण में कोई न कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा। - प्रो. राजा राम शुक्ल, कुलपति
''फर्जी नियुक्ति के प्रकरण में विश्वविद्यालय अपने स्तर से जांच कर रहा है। इस मामले में काफी हद तक पता लगाया जा चुका है। विश्वविद्यालय जालसाजों के करीब पहुंचने के प्रयास में जुटी हुई है। ऐसे में इस प्रकरण का फर्दाफास जल्द होने की संभावना है। - प्रो. आशुतोष मिश्र, चीफ प्रॉक्टर
समझौते के लिए बना रहे दबाव
फर्जी नियुक्ति के खेल में जालसाज अब स्वयं फंस गए हैं। उन्हें जेल जाने का भय सता रहा है। जालसाज अब नियुक्ति बांटने वाले युवकों से समझौते के लिए दबाव बना रहे हैं। इस क्रम में जानसाजों ने मंगलवार को तीन युवकों को एक-एक लाख रुपये लौटाया है। यही नहीं दो दिनों के भीतर तीन लाख रुपये और वापस करने का भरोसा दिलाया है। साथ ही धमकी भी दी है कि यदि पुलिस को सूचना दी तो शेष पैसा हम नहीं लौटाएंगे। इससे लेकर युवक दुविधा में पड़े हुए हैं।
''संस्कृत विश्वविद्यालय में फर्जी नियुक्ति का प्रकरण चेतगंज पुलिस के संज्ञान में हैं। मोबाइल फोन के माध्यम से पीडि़त से पक्ष से मेरी बात भी हो चुकी है। प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पीडि़त से पक्ष की ओर से तहरीर का इंतजार है। इस मामले में विश्वविद्यालय की ओर से मुझे कोई तहरीर नहीं मिली है। हालांकि फर्जी विश्वविद्यालय की ओर से तहरीर का कोई मतलब भी नहीं हैं। कारण फर्जी नियुक्ति के मामले में विश्वविद्यालय की भूमिका संदिग्ध है। -प्रवीण कुमार राय, इंस्पेक्टर थाना-चेतगंज