बनारसी ब्रोकेड का महत्वूपर्ण बाजार बना जापान, धर्म-संस्कृति में समन्वय संग व्यापार और तकनीक में सहयोग को नया आयाम
बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार बढऩे के बाद जापान बनारसी ब्रोकेड का महत्वूपर्ण बाजार बना। धर्म से जुड़े होने के चलते यहां के ब्रोकेड सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी जरिया बने क्योंकि इस पर बौद्ध धर्म से जुड़े प्रसंग रंग-बिरंगे रेशमी धागों के माध्यम से बारीकी से उकेरे जाते थे।
वाराणसी [मुहम्मद रईस]। बौद्ध काल से पहले ही बनारसी रेशमी वस्त्र जापान के लोगों को भारत से परिचित करा चुके थे। वहीं बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार बढऩे के बाद जापान बनारसी ब्रोकेड का महत्वूपर्ण बाजार बना। धर्म से जुड़े होने के चलते यहां के ब्रोकेड सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी जरिया बने, क्योंकि इस पर बौद्ध धर्म से जुड़े प्रसंग रंग-बिरंगे रेशमी धागों के माध्यम से बारीकी से उकेरे जाते थे। महात्मा बुद्ध और यहां के बुनकरों के बाद अब 'रुद्राक्ष अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर दोनों देशों के बीच संबंधों की प्रगाढ़ता का आधुनिक सेतु बनकर सांस्कृतिक एवं तकनीकी विकास को नया आयाम देगा।
ज्ञान प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध ने दुनिया की प्राचीनतम नगरी में से एक काशी को उपदेश स्थली के रूप में चुना। यहीं उन्होंने धम्मचक-प्रवर्तन की शुरुआत की। उस दौर में भी बनारस में वस्त्र बुनाई के संकेत मिलते हैं, जिनका बौद्ध ग्रंथों में 'काशिकेय के नाम से उल्लेख मिलता है। मुगलकाल में साड़ी बुनाई में नवीन प्रयोग किए गए। रेशम की ताने-बाने के बीच सोने-चांदी की जरी का प्रयोग कर बनारसी साड़ी बुनाई शुरू हुई, जो न सिर्फ दुनिया भर में ख्यात है, बल्कि पूर्वांचल में रोजगार का सबसे बड़ा माध्यम है। वर्तमान में करीब 1500 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार है।
हैंडलूम पर बुने जाते हैं बौद्ध धर्म से जुड़े ब्रोकेड
किंखाब, ज्ञासर, ज्ञांटा, थंका, पेमाचंदी, बादलचंदी, दोर्जे आदि बौद्ध धर्म से जुड़े ब्रोकेड हैं। जापान इनके लिए सबसे बड़ा बाजार है। जीआइ विशेषज्ञ डा. रजनीकांत के मुताबिक ये सभी बनारसी ब्रोकेड पूर्ण रूप से हैंडलूम पर ही तैयार किए जाते हैं। इसके बुनकर भी विशिष्ट होते हैं, जो सामान्य बनारसी साड़ी की बुनाई नहीं करते। कटेहर, लल्लापुरा, मदनपुरा, लोहता आदि बुनकर बहुल क्षेत्रों में कई बुनकर पीढिय़ों से इस काम को करते आ रहे हैं।
धर्म-संस्कृति का है रिश्ता, अब तकनीक का भी
छठवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म में जिज्ञासा के चलते निचिरिंग नामक व्यक्ति भारत आया। महात्मा बुद्ध के ज्ञान को समझने के लिए बाद में उन्होंने चीन का रुख किया और बहुत प्रभावित हुए। वहीं उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया, जिसके बाद उनका नाम निचिरिंग बोधिसत्व हो गया। सारनाथ स्थित जापानी मंदिर के प्रभारी कालसंग नोरबू के मुताबिक शुरू में उन्हें खूब परेशान किया गया, लेकिन बाद में वहां के लोगों ने धर्म को समझा और अपनाया। दोनों देशों के बीच धर्म-संस्कृति का रिश्ता तो सदियों पुराना है ही, अब तकनीक व शिक्षा में एक-दूसरे के सहयोग को लेकर प्रतिबद्धता देखने को मिली है।