गंगा और घाटों को निहारना अच्छा लगता था इरफान को, बनारसी लस्सी, बनारस की साड़ी और किनखाब के थे मुरीद
गंगा और घाटों को निहारना अच्छा लगता था इरफान को बनारसी लस्सी बनारस की साड़ी और किनखाब के थे मुरीद।
वाराणसी [वंदना सिंह]। गंगा की लहरों को बस यूं ही निहारता रहूं, दिल करता है इसमें खो जाऊं। ये शब्द थे अभिनेता इरफान खान के, जब वह अपनी फिल्म 'पीकू ' की शूटिंग के लिए वर्ष 2014 में बनारस आए थे। इरफान और अभिनेत्री दीपिका पादुकोण पर यहां चेत सिंह घाट पर कुछ दृश्य फिल्माए गए थे। इस दौरान जब शूटिंग खत्म हुई तो उसके बाद भी इरफान काफी देर तक घाट की सीढ़ियों पर बैठे रहे और चुपचाप गंगा को निहारते रहे। फिर अचानक बोल पड़ते की मुझे तो बनारस आने का मौका चाहिए। दरअसल यहां के मस्त मिजाज और माहौल से वह बहुत प्रभावित थे।
बनारस में जिस समय इस फिल्म की शूटिंग हो रही थी यहां पर रंगकर्मी रति शंकर त्रिपाठी फिल्म की व्यवस्था में लगे थे। रतिशंकर त्रिपाठी और इरफान खान में अच्छी दोस्ती भी रही है। असमय इरफ़ान खान के निधन से आहत रति शंकर त्रिपाठी ने बताया मुझे आज भी इरफान के साथ बिताए वह दिन अच्छी तरह से याद है। बनारस से जुड़ी एक एक चीज उन्हें भाती थी। वह मीठा कम खाते थे लेकिन बनारसी लस्सी तो उनके जुबान पर चढ़ जाती थी। बनारसी साड़ी, किंगखाब उन्हें बहुत पसंद था। उनकी पत्नी को भी बनारसी साड़ियां बहुत पसंद थी।
रतिशंकर ने बताया कि इरफान खान ने अपनी योग्यता के बल पर अभिनय का झंडा गाड़ा। उनकी फिल्म पान सिंह तोमर ने तो धमाल मचा कर रख दिया था। इरफान यारों के यार थे। उन्हें तो बस बनारस आने का मौका चाहिए था। गैंग्स ऑफ वासेपुर की शूटिंग जब यहां चल रही थी उस दौरान भी वह बनारस आने वाले थे। मगर किसी कारण से नहीं आ पाए। इसका उन्हें मलाल था। छात्र जीवन से ही वह थिएटर से जुड़े थे। रामनगर की प्रसिद्ध रामलीला को लेकर वह काफी प्रभावित थे। जब भी उनसे मुलाकात होती बनारस की चर्चा करते और अक्सर कहते प्राचीन थिएटर का जीता जाता स्वरूप काशी की प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला है। उन्होंने इसे देखा तो नहीं था लेकिन इसके बारे में वह चर्चा करते नहीं थकते थे। वह कहते थे थिएटर अभिनय का बेस होता है।
निर्देशक तिग्मांशु धूलिया की फिल्म बुलेट राजा की शूटिंग लखनऊ में चल रही थी। इस दौरान इरफान सपरिवार वहां उनसे मिलने आए थे। वह बेमिसाल व्यक्तित्व, बेहतरीन कलाकार थे। उनका जाना बहुत खल रहा है।
चितरंजन गिरी जो कि बनारस के भैरवनाथ निवासी हैं और लंबे समय से मुंबई में फिल्मों से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया इरफान खान जैसे कलाकारों ने थिएटर के कलाकारों के लिए जमीन तैयार की थी जिसके बाद थिएटर आर्टिस्टो की काफी इज्जत होने लगी। जब मुम्बई मे अभिनय को शुरुआत की थी तो कई सालों पहले एक फिल्म 'काली सलवार'' को शूटिंग के दौरान उनसे मुलाकात हुई थी। कुल मिलाकर तीन बार मेरी उनसे मुलाकात हुई और उन्होंने मेरे जीवन पर गहरी छाप छोड़ी। वह काफी सहज और सामाजिक सरोकारों से भी जुड़े हुए थे। फिल्म कसूर के दौरान उनके साथ 10 दिन तक शूटिंग की थी। वह अनुभव खास है। उनके जाने के बाद अभिनय का एक मजबूत फ्रेम खाली हो गया।