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अपराध से निकलकर आध्यात्म की ओर बढ़ रहे बंदी, हर दिन करते हैं गीता व यथार्थ गीता का पाठ

जिला कारागार में मौजूद दो हजार किताबों वाली लाइब्रेरी में सवा सौ बंदी धार्मिक किताबों को पढ़कर अपराध से आध्यात्म की तरफ बढ़ रहे हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 04 Sep 2019 08:47 PM (IST)Updated: Thu, 05 Sep 2019 08:45 AM (IST)
अपराध से निकलकर आध्यात्म की ओर बढ़ रहे बंदी, हर दिन करते हैं गीता व यथार्थ गीता का पाठ
अपराध से निकलकर आध्यात्म की ओर बढ़ रहे बंदी, हर दिन करते हैं गीता व यथार्थ गीता का पाठ

सोनभद्र, जेएनएन। आदिवासी बाहुल्य जनपद में अपराध के दल-दल में फंसने के बाद सजायाफ्ता बंदियों को सुधारने के लिए तमाम जुगत किए जा रहे हैं। स्वरोजगार अपनाने का प्रशिक्षण दिए जाने के साथ ही उन्हें आध्यात्म से भी जोड़ा जा रहा है। इससे जिला कारागार गुरमा में सुधार की एक सुखद तस्वीर सामने आ रही है। जिसे देख व सुनकर लोगों को राहत मिल रही है। दरअसल, जिला कारागार में मौजूद दो हजार किताबों वाली लाइब्रेरी में सवा सौ बंदी धार्मिक किताबों को पढ़कर अपराध से आध्यात्म की तरफ बढ़ रहे हैं। इन बंदियों में कई गीता का पाठ हर दिन कर रहे हैं तो कुछ सक्तेशगढ़ के अडग़ड़ानंद की यथार्थ गीता से जीवन शैली को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। 

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 सोनभद्र में जिला कारागार गुरमा का संचालन अक्टूबर 2017 में शुरू हुआ। इसके पहले इस जिले के बंदियों को मीरजापुर के जिला कारागार में रखा जाता था। शुरुआत में इस कारागार में बंदियों की संख्या महज 30-35 थी लेकिन धीरे-धीरे महिला बंदियों को छोड़ जनपद के पुरुष बंदियों को कारागार गुरमा में स्थानांतरित कर दिया गया और मौजूदा समय में उनकी संख्या 725 हो गई है। जिला कारागार के संचालन के कुछ माह बाद पुस्तकालय का शुभारंभ हो गया। इस पुस्तकालय में किस्सा-कहानियों की किताबों के साथ ही सेहत बनाने के नुस्खों से संबंधित किताबें तो हैं ही, सामाजिक परिवेश की किताबों की भी भरमार है। अहम बात तो यह है कि धार्मिक किताबों की विशेष शृंखला भी है। जिसमें गीता व यथार्थ गीता अहम है। कारागार के 125 बंदी ऐसे हैं जो इन पुस्तकों का हर दिन वाचन कर अपराध से आध्यात्म की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। सुबह से शाम तक की दिनचर्या में उनका ज्यादातर समय सामाजिक परिवेश व धार्मिक किताबों को पढऩे में व्यतीत होता है।

बैरक में होता है गीता का पाठ

धार्मिक किताबों को लाइब्रेरी में पढऩे के साथ ही कई बंदी पुस्तक को बैरक में भी ले जा सकते हैं। एक बंदी एक किताब को अपने पास सात दिन तक रख सकता है। बंदियों को लाइब्रेरी से किताबें लिखित रूप में जारी की जाती हैं। उन्हें इस बात के प्रति ताकीद किया जाता है कि किताब फटने या गुम न होने पाए। कई बंदी किताबों को बैरक में ले जाकर उसका सामूहिक पाठ भी करते हैं। जिससे कारागार का माहौल भक्तिमय हो जाता है।

क्या कहते हैं जिम्मेदार

बंदियों की संख्या बढऩे के साथ ही लाइब्रेरी में पुस्तकों की शृंखला भी बढ़ाई गई है। कोई भी बंदी लाइब्रेरी में जाकर अपनी मनपसंद किताबों को पढ़ सकता है। इसका नतीजा यह हुआ कि कारागार के 125 बंदी धार्मिक किताबों को पढऩे में रूचि दिखाने लगे हैं। इससे उनके आचरण को बदलने में मदद मिल रही है। इन बंदियों को देख अन्य बंदी भी सामाजिक व धार्मिक किताबों को पढऩे की तरफ झुक रहे हैं।

-मिजाजी लाल, अधीक्षक, जिला कारागार, गुरमा।


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