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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी वीर सावरकर को जयंती पर किया याद, भारत रत्‍न देने की उठी मांग

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता वीर विनायक दामोदर सावरकर की जयंती वाराणसी में गुरुवार को मनाई गई।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 28 May 2020 08:23 PM (IST)Updated: Thu, 28 May 2020 08:23 PM (IST)
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी वीर सावरकर को जयंती पर किया याद, भारत रत्‍न देने की उठी मांग
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी वीर सावरकर को जयंती पर किया याद, भारत रत्‍न देने की उठी मांग

वाराणसी, जेएनएन। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता वीर विनायक दामोदर सावरकर  की जयंती गुरुवार को मनाई गई। इस दौरान उनके योगदान को याद करते हुए भारत रत्‍न देने की मांग भारत रक्षा मंच की ओर से की गई।

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गायत्री नगर, रमना में भारत रक्षा मंच के प्रांत अध्यक्ष सत्येंद्र कुमार पाठक के आवास पर वीर सावरकर की जयन्ती मनायी गयी। प्रांत अध्यक्ष सत्येंद्र कुमार पाठक ने कहा कि सावरकर जैसा स्वतंत्रता सेनानी कोई न हुआ था न होगा। हम उन्हें उनकी बहादुरी, स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान और हजारों लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए नमन करते हैं। वीर सावरकर भारत माता के ऐसे सपूत थे जिन्होंने अदभुत जीवट और राष्ट्रप्रेम का परिचय देते हुए इस देश को आजाद कराने में बड़ी भूमिका निभाई। एक भारत और मजबूत भारत की कल्पना की जिसे साकार करने का संकल्प हर भारतीय के मन में है। सावरकर पीढ़ी दर पीढ़ी प्रेरणा देते रहेंगे। वीर सावरकर की जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन। भारत रक्षा मंच की ओर से सेनानी वीर सावरकर को भारत रत्‍न देने की मांग की है। इसमें महानगर महामंत्री आशुतोष पांडेय, सांस्कृतिक मंत्री परमानन्द, शुभम, आनंद, कृष्णन्द, प्रांत सदस्य नरेंद्र उपस्थित रहे।

राष्ट्रध्वज में सफेद पट्टी के बीच चक्र को लगाने का सुझाव सबसे पहले वीर सावरकर ने ही दिया था

वीर सावरकर की पहचान एक क्रान्तिकारी, वकील, कवि और नाटककार, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता के रूप में होती है। इसके अलावा वे भारत की आजादी के अग्रिम पंक्ति के सेनानी थे। इसके अलावा वे देश में हिंदुत्‍व की राजनीति का झंडा बुलंद करने वालों में भी शीर्ष पर थे। उनके द्वारा लिखी गई 'The Indian War of Independence-1957 से ब्रिटिश शासन बुरी तरह से हिल गया था। उनकी इस कृति को कुछ देशों ने अपने यहां पर प्रतिबंधित कर दिया था। आपको यहां पर ये भी बता दें कि भारत के राष्ट्रध्वज में सफेद पट्टी के बीच मौजूद चक्र को लगाने का सुझाव सबसे पहले वीर सावरकर ने ही दिया जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने तुरंत मान भी लिया था। उन्‍होंने ही सबसे पहले भारत की पूर्ण आजादी को स्‍वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्‍य बनाया और घोषित किया। उन्‍हें फ्रांस में राजनीतिक बंदी बनाया गया था और इसके खिलाफ मामला हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पहुंचा था। इस तरह का ये पहला मामला था। सावरकर ही देश के पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का चिंतन किया। उन्‍होंने ही देश में धर्म की आड़ में फैली कई तरह की कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चलाया। इसके लिए उन्‍होंने कई किमी की यात्रा की और लोगों से बातचीत कर उन्‍हें इन कुरीतियों के प्रति जागरुक ने किया।

सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र में नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था

सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र में नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदर पन्त सावरकर और माता का राधाबाई था। महज 9 वर्ष की आयु में उनकी मां का हैजे से निधन हो गया। इसके सात वर्ष बाद उनके पिता का भी निधन हो गया। सावरकर का पालन पोषण उनके बड़े भाई गणेश ने किया। उन्‍होंने स्‍नातक की डिग्री हासिल की लेकिन चूंकि उन्‍होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़चढ़कर हिस्‍सा लिया था इसलिए अंग्रेजी हुकूमत ने इसको वापस ले लिया था। उन्‍होंने वकालत की डिग्री भी हासिल की थी। लेकिन इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना करने पर उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया। महात्‍मा गांधी की हत्या में सावरकर पर सहयोगी होने का आरोप लगा था। लेकिन अदालत में ये आरोप सिद्ध नहीं हो सका और वे बाइज्‍जत बरी हुए। 26 फरवरी 1966 उन्‍होंने अंतिम सांस ली थी।


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