नदियों में फेंके जाने वाले सिक्कों से बढ़ रहा जल प्रदूषण
अब जो सिक्के बन रहे हैं उनमें 83 प्रतिशत लोहा और 17 प्रतिशत क्रोमियम होता है। क्रोमियम जहरीली धातु है। प्रति लीटर पानी में 0.05 मिलीग्राम क्रोमियम अत्यंत हानिकारक होता है।
वाराणसी [कृष्ण बहादुर रावत]। गंगा हो या यमुना, ताप्ती हो या गोदावरी, सरयू और साबरमती, सबमें एक समानता है। पुल से गुजरते वक्त अधिकतर श्रद्धालु इन नदियों में श्रद्धावश सिक्के जरूर फेंकते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि इससे मन की मुरादें पूरी होती हैं। पर क्या आपको पता है कि नदियों में सिक्के फेंकने से जाने-अनजाने हम जल प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं। अब जो सिक्के बन रहे हैं उनमें 83 प्रतिशत लोहा और 17 प्रतिशत क्रोमियम होता है। क्रोमियम जहरीली धातु है। प्रति लीटर पानी में 0.05 मिलीग्राम क्रोमियम मनुष्यों और जलचरों के लिए अत्यंत हानिकारक होता है।
काशी में गंगा में सिक्के फेंकने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। जानकारों की मानें तो गंगा में सिक्के फेकने का चलन तांबे के सिक्के से प्रारंभ हुआ था। आज से पांच सौ साल पहले दूषित पानी से बीमारियां फैली थीं, तब तत्कालीन बादशाह ने हर व्यक्ति के लिए अपने आसपास की नदियों और तालाबों में तांबे के सिक्कों को फेंकना जरूरी कर दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि तांबा जल को शुद्ध करने वाली सबसे अच्छी धातु होती है। वर्तमान समय में जो सिक्के देश में प्रचलन में हैं, वे नदियों में जाकर जल प्रदूषण और बीमारियों को बढ़ावा दे रहे हैं।
इस संबंध में आइआइटी बीएचयू के धातुकीय विभाग के प्रोफेसर आरके मंडल बताते हैं कि मानव और जलचरों के शरीर को बहुत ही हल्की मात्रा में क्रोमियम आहार में आवश्यक होता है पर अधिक मात्रा में यह विष की तरह काम करता है। इनकी ज्यादा मात्रा से जल में मछलियां मरने लगती हैं। राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय के प्रवक्ता डा. अजय कुमार का कहना है कि जब सिक्का अधिक दिन तक नदी में रह जाता है तो क्रोमियम और अधिक जहरीला हो जाता है। इसके लिए लोगों को जागरूक करना चाहिए कि वे गंगा में सिक्के न फेंके और जल प्रदूषण को रोकें।