नए साल में वाराणसी के तिब्बती चिकित्सालय की सौगात, जड़ी-बूटियों से किया जाएगा इलाज
काशी में अब हिमालयी जड़ी-बूटियों से हृदय रोग मानसिक और मनो-शारीरिक रोग के साथ ही कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का मुकम्मल इलाज संभव होगा। इसके लिए सारनाथ स्थित केंद्रीय तिब्बती उच्च शिक्षा संस्थान में 60 बेड का सोवा रिग्पा हास्पिटल व मेडिकल कालेज स्थापित किया जा रहा है।
वाराणसी, जेएनएन। देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में अब हिमालयी जड़ी-बूटियों से हृदय रोग, मानसिक और मनो-शारीरिक रोग के साथ ही कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का मुकम्मल इलाज संभव होगा। इसके लिए सारनाथ स्थित केंद्रीय तिब्बती उच्च शिक्षा संस्थान में 60 बेड का सोवा रिग्पा हास्पिटल व मेडिकल कालेज स्थापित किया जा रहा है। पहले चरण का 70 फीसद कार्य पूरा हो चुका है, शेष मार्च 2021 तक पूर कर लिए जाएंगे। वहीं दूसरे चरण में कर्मियों की नियुक्ति, संसाधन आदि का प्रबंध किया जाएगा। इसके बाद यहां प्राचीन तिब्बती चिकित्सा पद्धति की पढ़ाई तो होगी ही इलाज-जांच व भर्ती की प्रक्रिया भी शुरू कर दी जाएगी।
दरअसल, सोवा रिग्पा अस्पताल व कालेज का निर्माण कार्य अगस्त 2020 में पूरा कर लिया जाना था, मगर लाकडाउन में तकरीबन दो माह तक निर्माण कार्य बंद रहा और अनलाक-1 में काम शुरू हुआ। चारमंजिला भवन का अभी तक 70 फीसद कार्य हुआ है।
केंद्रीय तिब्बती उच्च शिक्षा संस्थान के निदेशक प्रो. नवांग समतेन के मुताबिक मार्च 2021 तक पहले चरण का काम पूरा हो जाएगा। इसके बाद कर्मचारियों की नियुक्ति व संसाधनों का प्रबंध कर हास्पिटल शुरू कर दिया जाएगा। ज्ञात हो कि संस्थान ने तकरीबन चार साल पहले सोवा रिग्पा हास्पिटल के लिए सांस्कृतिक मंत्रालय-नई दिल्ली को प्रस्ताव भेजा था। इसके लिए 47 करोड़ रुपये स्वीकृत करने के साथ निर्माण कार्य की जिम्मेदारी राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम (एनबीसीसी) को दे दी गई थी।
पैथालाजी-रेडियोलाजी तैयार
भूतल में जड़ी-बूटियां रखने के लिए स्टोर बनाया जा रहा है, तो वहीं पहले तल पर पैथोलाजी, रेडियोलाजी द्वितीय तल पर रिसेप्शन व ओपीडी वहीं तृतीय तल पर वार्ड का निर्माण हो चुका है। चौथे तल का काम अभी जारी है। संस्थान में फिलहाल बीएसआरएमएस, एमडी व एमएस के पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं। प्राचीन चिकित्सा विधा पर शोध कार्य भी किया जा रहा है। अस्पताल शुरू हो जाने से इस प्राचीन पद्धति को नई पहचान मिलेगी।
छह एकड़ में है हर्बल प्लांट
सोवा रिग्पा केंद्र के लिए दवा की व्यवस्था करने के क्रम में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हिमालयी औषधीय पौधों के लिए लगभग छह एकड़ में हर्बल गार्डेन बनाया गया है। इसमें हर तरह के औषधीय पौधों की खेती की जाती है। जिनसे संस्थान में दवाइयां बनाई जाती हैं। समुद्र तल से 15 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थापित गार्डेन में इस पद्धति की शिक्षा ले रहे छात्रों को ले जाकर औषधीय पौधों की पहचान संग उपयोग की जानकारी दी जाती है।
तिब्बती भोट भाषा का शब्द है सोवा रिग्पा
संस्थान में सोवा रिग्पा केंद्र प्रभारी डा. ताशी दावा के मुताबिक यह तिब्बती भोट भाषा का शब्द है। इसमें सोवा का अर्थ स्वास्थ्य एवं रिग्पा का अर्थ विज्ञान है। यह तिब्बती चिकित्सा पद्धति है। इसकी मूल पुस्तक ग्यूड बजी है, जिसके लिए कहा जाता है कि इसे स्वयं महात्मा गौतम बुद्ध ने पढ़ाया था। इसी वजह से यह बौद्ध दर्शन के काफी निकट है। भारत में हिमालय के निकट रहने वाले समुदायों में यह अत्यंत लोकप्रिय है। सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, लद्दाख व हिमाचल प्रदेश में यह सदियों से उपयोग में आती रही है। सोवा रिग्पा के जरिए रक्तचाप, मधुमेह, गठिया, हृदय रोग, मानसिक व मनो-शारीरिक रोग संग कैंसर का समुचित इलाज संभव है।