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सोनभद्र के नगवां गांव में कुल्हाड़ी से पेड़ों को चोट पहुंचने पर ग्रामीण करते हैैं उनका इलाज

सोनभद्र के दुद्धी क्षेत्र में कनहर नदी के किनारे बसे आदिवासी बहुल गांव नगवां के लोगों के लिए जंगल और पेड़ परिवार हैं। गलती से भी किसी ने दरख्तों को चोट पहुंचाई तो टीस के गांव के हर बाशिंदे को महसूस होती है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sun, 12 Sep 2021 06:44 PM (IST)Updated: Sun, 12 Sep 2021 06:44 PM (IST)
सोनभद्र के नगवां गांव में कुल्हाड़ी से पेड़ों को चोट पहुंचने पर ग्रामीण करते हैैं उनका इलाज
सोनभद्र के दुद्धी क्षेत्र के नगवां गांव में पेड़ पर कुल्हाड़ी से किए गए वार का उपचार करते ग्रामीण।

सोनभद्र, विष्णु अग्रहरि। दुद्धी क्षेत्र में कनहर नदी के किनारे बसे आदिवासी बहुल गांव नगवां के लोगों के लिए जंगल और पेड़ परिवार हैं। गलती से भी किसी ने दरख्तों को चोट पहुंचाई तो टीस के गांव के हर बाशिंदे को महसूस होती है। पेड़ के जख्म पर काली मिट्टïी में गोबर व औषधीय गुणों वाली जंगली घास चकवड़ का लेप बनाकर बाकायदा मरहम-पट्टïी करते हैं। साथ ही 'जादू की झप्पी देकर अहसास दिलाते हैं कि वह भी उसके दर्द में सहभागी हैं।

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आदमी और जंगल का यह अद्भुत और अनोखा रिश्ता शुरू से ही ऐसा नहीं था। करीब दो दशक पहले की बात है। कैमूर पर्वत श्रेणी की हरी-भरी चोटियों की हरीतिमा वन माफिया की लालच की भेंट चढ़ती जा रही थी। हरियाली बिखेरते पहाड़ लगभग उजाड़ से हो गए थे। इन्हें बचाने की नीयत से तत्कालीन ग्राम प्रधान स्व. ईश्वरी प्रसाद खरवार ने 'जनता-जल-जंगल समिति बनाई और एक अनूठी मुहिम शुरू की। अब पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वालों के लिए पंचायत में सजा मुकर्रर की जाने लगी। उनका सामाजिक बहिष्कार तक किया जाने लगा। साथ ही जख्मी पेड़ों का उपचार शुरू हुआ। हालांकि नवंबर, 2019 में खरवार के निधन के बाद समिति की सक्रियता में कमी आई, लेकिन कोविड महामारी के दौरान लोगों को एक बार फिर पर्यावरण संरक्षण की याद आई तो गांव के ही हरिकिशुन खरवार ने मुहिम को नए सिरे से धार दी। 'जनता-जल-जंगल समिति को सक्रिय किया और परिणाम यह हुआ कि नगवां गांव पर्यावरण संरक्षण के लिए नजीर बन गया है।

चार बीटों में बांटकर होती है रखवाली

करीब पांच हजार आबादी वाले नगवां गांव में 97 फीसद लोग आदिवासी जनजातियों के हैं। जल-जंगल की सुरक्षा के लिए समिति बनाकर समूचे गांव को चार बीट में बांटा गया है। समिति के सदस्यों की यह जिम्मेदारी है कि वे अपनी-अपनी बीट में वन विभाग द्वारा लगाए गए पौधों की देखभाल करें। परिणाम यह हुआ है कि साखू, सिद्धा, पलाश, हल्दू, शीशम आदि के पेड़ आकाश चूमने लगे हैं। समिति द्वारा नियुक्त गांव के वन रक्षक राजकेश्वर ने बताया कि बीते दिनों बीट संख्या चार से जुड़े कुछ लोगों ने कुछ जंगली पेड़ों को चोट पहुंचाई। उन पेड़ों का उपचार किया जा रहा है और जख्म काफी हद तक भर चुके हैं।

पेड़ काटने वालों पर तय होता है आरोप

ग्रामीणों ने बताया कि बीते साल कुछ लोगों ने इर्द-गिर्द सिद्धा (जंगली वृक्ष) के दर्जन भर से अधिक पेड़ चोरी-छिपे काट दिए थे। उस वक्त गांव में पंचायत बुलाकर आरोपितों का सामाजिक बहिष्कार किया गया। साथ ही, वन विभाग को सूचित कर कानूनी कार्रवाई भी कराई गई।

वन विभाग भी करता है सहयोग 

वन क्षेत्राधिकारी बघाडू रूप सिंह ने बताया कि नगवां गांव वास्तव में एक नजीर है। विभागीय कर्मी गांव वालों के संपर्क में रहते हैं। किसी भी जरूरत के लिए वनकर्मियों को तत्काल मौके पर भेजा जाता है। ग्रामीणों की मदद और उन्हें प्रेरित करने का हर संभव प्रयास किया जाता है।


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