मीरजापुर की रामलीला में रावण का पुतला दहन नहीं बल्कि सरेआम किया जाता है 'सिर कलम'
र जगह विजयादशमी के दिन राम-रावण के युद्ध में रावण के पुतले का दहन होता है मगर मीरजापुर में एक ऐसा स्थान है जहां दशहरा पर्व पर रावण के पुतला दहन के बजाय सरेआम उसके सिर को कलम किया जाता है। परंपरा आजादी के पहले से चली आ रही है।
मीरजापुर, जेएनएन। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाने वाला दशहरा देश-प्रदेश में हर जगह, गांव-गांव मनाया जाता है। रावण के पुतले को जलाकर रामजी की जय-जयकार कर हर वर्ग प्रफुल्लित हो उठता है। कई जगहों पर रामलीला का भी मंचन किया जाता है। इसमें अहंकारी रावण और भगवान राम के युद्ध के बाद लंका दहन आदि प्रस्तुत किया जाता है। हर जगह विजयादशमी के दिन राम-रावण के युद्ध में रावण के पुतले का दहन होता है मगर मीरजापुर में एक ऐसा स्थान है जहां दशहरा पर्व पर रावण के पुतला दहन के बजाय सरेआम उसके सिर को कलम किया जाता है। यह परंपरा आजादी के पहले से चली आ रही है।
हलिया ब्लाक के ड्रमंडगंज स्थित रामलीला मैदान करीब डेढ़ सौ वर्षों से चल रहे रामलीला का आगाज हो चुका है। कलाकार बाजार के चारों ओर घूम-घूम कर जब अपने किरदार निभाएंगे तो हजारों दर्शक उनमें डूबते नजर अाएंगे। यह रामलीला श्रीराम की भूमिका की कहानी आज भी बयां कर रही है। विजयादशमी के दिन विशाल मेले में राम और रावण का युद्ध चलता है। भीषण युद्ध के दौरान राम अपने बाणों से रावण का सिर काटकर युद्ध पर विजय हासिल करते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग के पास स्थित रामलीला मैदान पर सुबह से रात्रि नौ बजे तक मेला लगता है। रामलीला कमेटी के अनुसार राम ने रावण का दसों सिर काटा था। इसलिए ड्रमंडगंज में दशहरा पर्व पर रावण का सिर कलम करने की परंपरा चली आ रही है। रावण का सिर कलम हो जाने के बाद रामलीला कमेटी के सदस्य पुतले को ले आकर रामलीला भवन में अगले वर्ष के लिए सुरक्षित रख देते हैं। बताया जाता है कि रामायण में कहीं भी रावण के पुतला दहन करने की बात नहीं लिखी होने के कारण यहां पर रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता।
और कहीं देखने को नहीं मिलता ऐसा रावण का पुतला
ड्रमंडगंज की रामलीला काफी प्रसिद्ध है। यहां राम-रावण युद्ध को देखने के लिए अासपास के अलावा दूर-दूर से लोग आते हैं। इसी भारी भीड़ के बीच रावण का सिर कलम किया जाता है। लगभग बाइस फीट ऊंचे रावण के लोहे के पुतले को रामलीला कमेटी और स्थानीय कारीगर मिलकर अपने हाथों से तैयार करते हैं। लोगों का कहना है कि ड्रमंडगंज की तरह रावण का पुतला और कहीं देखने को नहीं मिलता। युद्ध के दौरान जैसे ही राम के बाणों से रावण का सिर कलम होता है। इसके बाद उसके सिर का भाग धड़ से पीछे की ओर लटक जाता है।
रावण का सिर कलम होते ही गूंजने लगते हैं जय श्रीराम के नारे
आदर्श रामलीला कमेटी की ओर से आयोजित होने वाले 150 वर्ष पुरानी प्राचीन रामलीला में रावण का सिर कलम कमेटी नहीं करती बल्कि रामलीला मैदान से ड्रमंडगंज वन रेंज बैरियर बाजार तक घुमाने के बाद भगवान श्रीराम करते हैं। आसपास के गांव के साथ ही मध्य प्रदेश के लोग भी रावण के पुतले को देखने आते हैं। रावण के पुतले को जब ट्रैक्टर ट्राली पर लादकर बाजार में घुमाया जाता है तब देखने वालों की लंबी भीड़ लग जाती है। भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिसकर्मियों व पीएसी की ड्यूटी लगाई जाती है। जैसे ही भगवान श्रीराम रावण का सिर कलम करते हैं, जय श्रीराम के नारे से बाजार गूंज उठता है।
छटंकी मिस्त्री ने किया था पुतले का निर्माण
लोहे के पुतले का निर्माण सबसे पहले छटंकी नामक एक मिस्त्री ने किया था। बाद में दिन दुल्ली चंद पुतले का निर्माण करने लगे। कमेटी के अध्यक्ष ओमकार केशरी ने बताया कि दशहरा पर्व के लिए रावण के पुतले को तैयार कर लिया गया है और सभी व्यवस्थाएं पूरी कर ली गई है जिससे किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो।