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मऊ में डीएम ने छह घंटे तक अफसरों को कलेक्ट्रेट में रखा बंद, भूखे-प्यासे शासनादेश को उतारते रहे अफसर

मऊ जिला कलेक्ट्रेट सभागार में रविवार में आयोजित बैठक में जिला कृषि अधिकारी द्वारा शासनादेश का जवाब न दे पाने का खामियाजा सारे अफसरों को भुगतना पड़ गया। इससे नाराज जिलाधिकारी अमित सिंह बंसल ने छह घंटे तक अफसरों को कलेक्ट्रेट में बंद रखा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 06:40 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 06:40 PM (IST)
शासनादेश का जवाब न दे पाने का खामियाजा सारे अफसरों को भुगतना पड़ गया।

मऊ, जागरण संवाददाता। जिला कलेक्ट्रेट सभागार में रविवार में आयोजित बैठक में जिला कृषि अधिकारी द्वारा शासनादेश का जवाब न दे पाने का खामियाजा सारे अफसरों को भुगतना पड़ गया। इससे नाराज जिलाधिकारी अमित सिंह बंसल ने छह घंटे तक अफसरों को कलेक्ट्रेट में बंद रखा। छह घंटे तक अफसर भूख प्यास व पसीने से तर-ब-तर शासनादेश उतारते रहे। फिर भी तमाम अफसर शासनादेश नहीं उतार पाए। दूसरे दिन कलेक्ट्रेट में बैठ कर कई अफसर शासनादेश उतारते रहे। इसके बाद कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में ही इसको जमा कराया जा रहा था।

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हुआ यूं, कलेक्ट्रेट सभागार में रविवार को दोपहर में जनपद स्तरीय अधिकारियों की आयोजित बैठक होनी थी। इसमें उत्तर प्रदेश विधान परिषद की विशेषाधिकार समिति के कार्य सभापति व भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष विजय बहादुर पाठक को शामिल होना था। निर्धारित समय पर बैठक शुरू भी हो गई। इस दौरान सारे अफसरों से प्रदेश उपाध्यक्ष जानकारी ले रहे थे। सारे अफसरों के पास शासनादेश की प्रति थी केवल जिला कृषि अधिकारी के पास यह नहीं थी। इस बीच सभापति ने जिला कृषि अधिकारी से ही शासनादेश के बारे में पूछा लिया तो वह तर्कसंगत जवाब नहीं दे पाए। यही नहीं वह शासनादेश की कापी भी लेकर वह नहीं बैठे थे। इस पर सभापति ने प्रशासनिक अफसरों पर नाराजगी जताई। दोपहर दो बजे के बाद बैठक समाप्त हो गई और सभापति चले गए। इसके बाद खार खाए जिलाधिकारी बैठक में शामिल सारे अफसरों को कलेक्ट्रेट में बंद कर शासनादेश उतारने का फरमान जारी कर दिया। किसी अफसर का 20 पेज तो किसी का तीस पेज का शासनादेश था।

अब शासनादेश उतारने में सारे अफसरों के माथे पर पसीना आने लगा। हालात यह रही कि सारे अफसर छह घंटे तक कलेक्ट्रेट सभागार में ही शासनादेश उतारते रहे। रात करीब आठ बजे डीएम के निर्देश पर अफसरों को वहां से जाने दिया गया। इस दौरान कुछ अफसर तो शासनादेश उतार लिए थे और इसकी कापी जमा कर दिए। तमाम अफसर शासनादेश उतार ही नहीं पाए। सभी को डीएम ने शासनादेश उतारने के बाद याद कर जमा करने के लिए कहा। दूसरे दिन सोमवार को तमाम अफसर कलेक्ट्रेट में बैठकर शासनादेश उतारते रहे। इसके बाद फिर जमा किए। कलेक्ट्रेट में दिनभर यह चर्चा गूंजती रही लेकिन कोई भी अफसर कुछ बोलने को तैयार नहीं था।

अधिकारियों का काम जनता की सेवा करना है। ऐसे में जिस अधिकारी को शासनादेश के बारे में ही जानकारी नहीं रहेगी तो वह जनता की सेवा क्या करेगा। यह लापरवाही का द्योतक है। इस तरह की लापरवाही किसी भी कीमत पर क्षम्य नहीं होगी। वैसे अफसरों को बंद नहीं किया गया था बल्कि शासनादेश उतारने को कहा गया था।

- अमित सिंह बंसल, जिलाधिकारी मऊ।


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