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मकर संक्रांति के योग में बाबा को खिचड़ी का भोग, सुबह से शाम तक श्रद्धालुओं में प्रसाद स्वरूप किया गया वितरण

काशीपुराधिपति बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ के मंदिर में मकर संक्रांति पर बुधवार को खिचड़ी उत्सव सा नजारा रहा। पर्व विशेष पर मध्याह्न भोग आरती में बाबा को पांच क्विंटल खिचड़ी अर्पित की गई।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 15 Jan 2020 06:22 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jan 2020 09:04 PM (IST)
मकर संक्रांति के योग में बाबा को खिचड़ी का भोग, सुबह से शाम तक श्रद्धालुओं में प्रसाद स्वरूप किया गया वितरण
मकर संक्रांति के योग में बाबा को खिचड़ी का भोग, सुबह से शाम तक श्रद्धालुओं में प्रसाद स्वरूप किया गया वितरण

वाराणसी, जेएनएन। काशीपुराधिपति बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ के मंदिर में मकर संक्रांति पर बुधवार को खिचड़ी उत्सव सा नजारा रहा। पर्व विशेष पर मध्याह्न भोग आरती में बाबा को पांच क्विंटल खिचड़ी अर्पित की गई। इसे दोपहर से देर रात तक भक्तों में वितरित किया गया। मकर संक्रांति पर दर्शन-पूजन के लिए उमड़े भक्तगण बाबा का प्रसाद पाकर निहाल रहे। दर्शन -पूजन के बाद प्रसाद के लिए दोबारा कतार मेें लगे और खिचड़ी प्रसाद का सौभाग्य प्राप्त किया।

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गत वर्ष से शुरू हुई खिचड़ी प्रसाद वितरण की परंपरा

श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में मकर संक्रांति पर्व पर बाबा को खिचड़ी का भोग तो सदियों से लगाया जाता रहा है लेकिन इसे सिर्फ संन्यासियों या खास लोगों को प्रसाद रूप मे चखाया जाता था। पिछले साल खिचड़ी का भोग प्रसाद स्वरूप श्रद्धालुओं में वितरित करने की परंपरा शुरू की गई। इसके लिए परिसर में भंडारे की व्यवस्था की गई। रसोइए लगाकर खिचड़ी पकाई गई। मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विशाल सिंह ने भोग अर्पित कर प्रसाद वितरण का शुभारंभ किया।

अन्नपूर्णेश्वरी व अन्य देवालयों में लगा खिचड़ी भोग

इसके अलावा अन्नपूर्णा मठ मंदिर में भी अन्नपूर्णेश्वरी को खिचड़ी का भोग लगा कर ललिता घाट पर महंत रामेश्वर पुरी के सानिध्य में प्रसाद वितरित किया गया। इसमें खिचड़ी के साथ ही पूड़ी-सब्जी भी खिलाई गई। गांव से लेकर शहर तक अन्य मंदिरों में भी देवालयों में खिचड़ी और ढूंढा-पट्टïी का भोग लगाया गया।

गंगा में पुण्य स्नान संग पतंगों की उड़ान

सूर्य देव के धनु से मकर राशि पर संक्रमण के पर्व मकर संक्रांति पर बुधवार को धर्मानुरागियों ने बुधवार भोर से ही गंगा में डुबकी लगाई। उत्तरायण भगवान सूर्य को प्रणाम किया। आराध्य देवों की दर पर मत्था टेका और पुण्य कामना से दान किया। देशज पकवानों का जमकर लुत्फ उठाया और आसमान में मस्ती की डोर ढील दी। सवेरे से ही फिजा में भक्काटा..., ओ काटा.. जैसे जोशीले नारे गूंजते रहे।


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