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इज ऑफ लिविंग में प्रदेश का दूसरे सर्वश्रेष्ठ शहर बनारस को धूल-मिट्टी ने किया बीमार

इज ऑफ लिविंग के मामले में बनारस भले ही उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बेहतर नगर हो मगर यहां बीच शहर की सड़कों पर उड़ रहा धूल - मिट्टी का बवंडर लोगों को बीमार बना रहा है। शहर में निर्माण कार्य बेहद अनियंत्रित तरीके से हो रहा है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 05 Mar 2021 10:24 AM (IST)Updated: Fri, 05 Mar 2021 10:24 AM (IST)
वाराणसी की सड़कों पर उड़ रहा धूल - मिट्टी का बवंडर लोगों को बीमार बना रहा है।

वाराणसी, जेएनएन। इज ऑफ लिविंग के मामले में बनारस भले ही उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बेहतर नगर हो, मगर यहां बीच शहर की सड़कों पर उड़ रहा धूल - मिट्टी का बवंडर लोगों को बीमार बना रहा है। पर्यावरणविदों का मानना है कि शहर में निर्माण कार्य बेहद अनियंत्रित तरीके से हो रहा है। इस निर्माण कार्य में प्रदूषण के मानकों का तनिक भी पालन नहीं हो रहा। दूसरी ओर शहर में मानक से अधिक धुएं उत्सर्जित करने वाले वाहनों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, जिस पर यातायात विभाग चुप्पी साधे हुए है। पर्यावरणविद एकता शेखर का मानना है कि नगर निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और यातायात समेत अन्य विभागों में समन्वय की कमी है जिसके चलते शहर धूल-मिट्टी की चपेट में है।

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वहीं बनारस का वायु गुणवत्‍ता सूचकांक भी झूठे आंकड़े प्रदर्शित कर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की पीठ थपथपाने में लगा है। भले ही सरकार आंकडों में आज का एयर क्वालिटी इंडेक्स 198 हो, मगर यह आंकड़ा सत्‍य से परे हैं। वास्तविक स्थिति इससे कहीं ज्यादा खराब है। इन अधूरे आंकडों से दूर असलियत यह है कि बनारस की सड़कें धूल और मिट्टी का लबादा ओढ़ चुकी हैं। इन धूल-मिट्टी का मापन विगत कई दिनों से बनारस की एयर क्वालिटी इंडेक्स में हो ही नहीं रहा है। वर्तमान इंडेक्स में पीएम 2.5 अधिकतम 332, नाइट्रोजन आक्साइड 125 और ओजोन का स्तर 182 है, मगर पीएम-10 के आंकड़े गायब।

 पीएम-10 प्रदूषकों में मुख्य रूप से धूल कणों का आकलन होता है। पर्यावरणविदों का मानना है कि वास्तव में यह इंडेक्स सच ये परे हैं जो कि काशीवासियों की आंखों में ही धूल झोंक रहा है। पर्यटन और आस्था के लिए दूर-दराज से आने वाले लोग घाट से मंदिर तक प्रचंड धूल व गंदगी से होकर गुजरते हैं। बहरहाल, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के इन आंकड़ों को माने तो बनारस संग कानपुर की हवा पहले से काफी बेहतर हुई है। बनारस ही नहीं कानपुर का भी इंडेक्स 119 है। यहां भी पीएम-10 का मापन नहीं हो रहा है।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार बनारस के प्रदूषण में सबसे 92 फीसद से अधिक हिस्सेदारी धूल कणों का है। जिनके आंकड़ें इन दिनों एयर क्वालिटी इंडेक्स से बाहर हैं। सूत्रों की माने तो शहर में धूल का दबाव बढ़ जाने से पीएम-10 की मानीटरिंग बंद कर दी गई हाेगी, मगर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार मशीन व सेंसर सुधार की अवस्था में है। गड्ढे खोदकर छोड़ दिए गए क्लाइमेट एजेंडा की प्रमुख और पर्यावरणविद एकता शेखर ने बताया कि बनारस के प्रदूषण में धूल कणों की स्थिति भयावह है इसलिए पीएम-10 का मापन बंद है। लकड़ी के चूल्हे, वाहन और कूड़ा जलाने व अन्य कारण से निकले धुएं को मिलाकर आठ फीसद ही प्रदूषण होता है। स्पष्ट है कि शहर में जगह-जगह निर्माण कार्य के लिए जो गड्ढे खोदे गए या तो उन्हें वैसे ही छोड़ दिया गया या फिर उनकी मिट्टी सड़कों पर फैल गईं और प्रदूषण बढ़ा रही है।

रात में ट्रकों की आवाजाही से उड़ रहा धूल का बवंडर अब दिन ही नहीं बल्कि देर रात की सूनी सड़कों पर ट्रकों की आवाजाही से धूल का तांडव मचा हुआ है। नई सड़क से गोदौलिया और चौक, साजन सिनेमा से सिगरा चौराहे, लहरतारा से अंधरापुल, लंका से सामनेघाट, नदेसर से चौकाघाट और तेलियाबाग, आशापुर से पांडेयपुर आदि सडकें इसमें शामिल हैं। जनता कहती है कि क्यों आलाकमान को निर्माण कार्य करने वाले विभागों की लापरवाहियां नहीं दिखती। न तो कहीं पानी का छिड़काव और न ही सड़क के किनारे की मिट्टी ही साफ हो रही है।

डिवाइडर के किनारों पर धूल हटाने के लिए मैकेनाइज्ड डस्ट क्लीनर काम कर रही है

एयर क्वालिटी इंडेक्स में पीएम-10 प्रदूषकों का मापन करने वाला मानिटरिंग सिस्टम मेंटेनेंस के दौर में है। जल्द ही ठीक हो जाएगा, वहीं बनारस में इस विकट परिस्थिति से बचने के लिए जल्द ही तीन और नए परिवेशीय वायु अनुश्रवण केंद्र की सथापना जल्द हो जाएगी। डिवाइडर के किनारों पर धूल हटाने के लिए मैकेनाइज्ड डस्ट क्लीनर काम कर रही है। वहीं चिन्हित इलाकों में पानी का छिड़काव जोरो पर है।

- कालिका सिंह, क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वाराणसी


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