IIT-BHU सिरामिक के लैब में फ्यूल सेल को सस्ता करने की तकनीक पर शोध
आइआइटी-बीएचयू में जले हुए सिरामिक लैब से केवल आइआइटी के चंद छात्रों और शोधार्थियों का ही नहीं अपितु देश का भी बड़ा नुकसान हुआ है। सोमवार तक एक बैठक कर नए जगह लैब को स्थापित करने और छात्रों के शोध आदि की व्यवस्था पर निर्णय लिए जा सकते हैं।
वाराणसी, जेएनएन। आइआइटी-बीएचयू में जले हुए सिरामिक लैब से केवल आइआइटी के चंद छात्रों और शोधार्थियों का ही नहीं अपितु देश का भी बड़ा नुकसान हुआ है। यह भारत का पहला ऐसा लैब था, जहां पर हाइड्रोजन गैस की जगह फ्यूल सेल में मेथेन के उपयोग पर शोध हो रहा था, जो जल्द ही पूरा होने वाला था। इससे बैटरी बनाने की लागत और अन्य खर्च में काफी कमी आती।
इस शोध से फ्यूल सेल के क्षेत्र में भारत दुनिया में काफी क्रांतिकारी भूमिका निभाने को आगे बढ़ रहा था, मगर आग में जलकर सैपंल और मशीनों का खाक हो जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। फ्यूल सेल में इंधन के रूप में प्रयोग में आने वाली हाईड्रोजन की कीमत से मेथेन की कीमत उससे पचास गुना कम है। हाइड्रोजन का मूल्य दो हजार रुपये, जबकि मेथेन महज चालीस रुपये किलो में ही सर्वसुलभ है।
तीन-चौथाई कार्य हो चुका था पूर्ण
सिरामिक इंजीनियरिंग विभाग के इस लैब में पिछले चार - पांच साल से डा. प्रीतम और उनके शोधार्थी इस शोध पर कार्य कर रहे थे, जिसके करीब तीन-चौथाई कार्य पूर्ण हो चुके थे। अब केवल निष्कर्ष पर ही पहुंचना था। हालांकि काफी हद तक डेटा वर्चुअल प्लेटफार्म पर मिल जाएगा, मगर शोध के लिए जुटाए गए आवश्यक उपकरण और मटेरियल अब नहीं बचे हैं। इसके अलावा इस शोध से संबंधित कई पेपर भी अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुए थे। मिली जानकारी के अनुसार सोमवार तक एक बैठक कर नए जगह लैब को स्थापित करने और छात्रों के शोध आदि की व्यवस्था पर निर्णय लिए जा सकते हैं।
एक बैटरी की कीमत थी पचास लाख
डा. प्रीतम लिथियम आयन बैटरी और हाइड्रोजन टेक्नोलाजी पर आधारित फ्यूल सेल पर काम कर रहे थे। रिसर्च एंड डेवलपमेंट के डीन राजीव प्रताप मौके स्थल पर आए थे, जिन्होंने हरसंभव क्षतिपूर्ति की बात कही है। कहा जा रहा है जब से विभाग बना था तब से उसकी वायरिंग भी नहीं बदली गई, जिससे शार्ट सर्किट की आशंका बताई जा रही है। वहीं प्राक्टोरियल बोर्ड ने कुछ दिन पहले ही सुरक्षाकर्मियों की ड्यूटी बदल दी थी, जिससे वहां पर कोई सुरक्षाकर्मी आग लगने के दौरान नहीं था। विभागाध्यक्ष प्रो. वी के सिंह ने बताया कि एक बैटरी की कीमत पचास लाख रुपये थी, जो पूर्णत: जलकर राख बन गई है। एक छात्र ने बताया कि चार जनवरी को स्टाफ ने पत्र लिखकर सुरक्षा की बात कही थी, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया। आग लग गई तो बुझाने का कोई रास्ता या समाधान भी नहीं है संस्थान के पास। सुरक्षागार्ड होता तो यह स्थिति नहीं देखनी पड़ती।