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आइआइए ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों की परिभाषा बदलने के सरकारी विचार पर जताई आपत्ति

इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सदस्य मंथन में इस नतीजे पर पहुंचे एमएसएमई के स्वरूप को सरकार न बदले।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 05:11 PM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 05:11 PM (IST)
आइआइए ने सूक्ष्म, लघु एवं  मध्यम उद्यमों की परिभाषा बदलने के सरकारी विचार पर जताई आपत्ति
आइआइए ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों की परिभाषा बदलने के सरकारी विचार पर जताई आपत्ति

वाराणसी, जेएनएन। इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सदस्य मंथन में इस नतीजे पर पहुंचे एमएसएमई के स्वरूप को सरकार न बदले। उत्तर प्रदेश को उद्योग प्रदेश बनाने के लिए घोषित नीतियों का क्रियान्वयन ही काफी होगा। उद्योग आइसीयू से स्वस्थ्य होकर बाहर निकल आएंगे। ऐसा हुआ तो उद्योग, उद्यमी खुशहाल होंगे, रोजगार का सृजन होने से प्रदेश एवं देश में खुशहाली आएगी।

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वरिष्ठ उद्यमी एवं आइआइए के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आरके चौधरी ने कहा कि सरकार घोषित नीतियों का क्रियान्वयन करे। एमएसएमई को रफ्तार भरने के लिए नई नीति की जरूरत नहीं पड़ेगी। चैप्टर चेयरमैन  दीपक बजाज ने उद्योग के अनुरूप वातारण की सरकार से मांग उठाई। शुभम अग्रवाल ने कहा कि टर्न ओवर के आधार पर एमएसएमई को बांटना उचित नहीं है। राहुल मेहता ने कहा कि पर्यटन को उद्योग का दर्जा मिल चुका है, लेकिन उसका बेनिफिट नहीं मिल पा रहा है। पंकज अग्रवाल ने कहा कि नित नई नीतियां लागू करना उचित नहीं है। यूआर सिंह कहा कि पांच करोड़, 75 करोड़ एवं ढाई सौ करोड़ को सूक्ष्म, लघु एवं मघ्यम उद्योग का पैमाना बनाने की बात सामने आ रही, जिसे जल्दबाजी कहा जा सकता है। राजेश भाटिया ने कहा कि मंथन के निष्कर्ष को ऊपर भेजा जाएगा। वहां से मिले फीडबैक के आधार पर निर्णय होगा। आइआइए ने एमएसएमई को नए तरीके से परिभाषित किया जाना कितना सही और गलत है, इसके लिए विनायक प्लाजा में मंथन कार्यक्रम रखा था। रतन कुमार सिंह, ओपी बदलानी, सुभाष पिपलानी, उमाशंकर अग्रवाल, अनुज डिडवानिया, सर्वेश अग्रवाल,  नीरज पारीख, वशिष्ठ यादव, किशन अग्रवाल, जगदीश झुनझुनवाला समेत उद्योग की रीढ़ कहे जाने वाले उद्यमी मौजूद रहे।

घोषणाएं जो जमीन पर उतर न सकीं

1- नए उद्यमियों को विद्युत बिल में एक रुपये प्रति यूनिट की छूट नहीं मिल पा रही।

2- सरकारी एजेंसियां नियम मुताबिक 45 दिनों में पेमेंट नहीं कर पा रहीं।

3- औद्योगिक क्षेत्र को फ्री-होल्ड करने की मांग को सैद्धांतिक सहमति के बाद भी क्रियान्वयन नहीं।

4- जीएसटी के सरलीकरण नहीं हो पाना।

5- औद्योगिक फोरम प्रभावी नहीं हो पा रहा।


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