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अभिभावकों का मिला साथ तो प्राथमिक स्कूल घोरावल में भरा रंग, बच्चों का निखरेगा भविष्य

कहते हैं एकता में वो ताकत होती है जो बड़ी से बड़ी मुश्किल को भी आसान बना देती है। इसे चरितार्थ किया है घोरावल क्षेत्र के कुछ अभिभावकों ने।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 17 Sep 2019 03:21 PM (IST)Updated: Tue, 17 Sep 2019 10:10 PM (IST)
अभिभावकों का मिला साथ तो प्राथमिक स्कूल घोरावल में भरा रंग, बच्चों का निखरेगा भविष्य
अभिभावकों का मिला साथ तो प्राथमिक स्कूल घोरावल में भरा रंग, बच्चों का निखरेगा भविष्य

सोनभद्र [सुजीत शुक्ल] । कहते हैं एकता में वो ताकत होती है जो बड़ी से बड़ी मुश्किल को भी आसान बना देती है। इसे चरितार्थ किया है घोरावल क्षेत्र के कुछ अभिभावकों ने। यहां के प्राइमरी स्कूल को अभिभावकों ने स्वयं के प्रयास से इस तरह से संवार दिया कि आज अंग्रेजी माध्यम प्राथमिक विद्यालय घोरावल प्रथम कान्वेंट स्कूलों को टक्कर दे रहा है। जिस स्कूल में चार साल पहले तक छात्र संख्या दहाई में थी आज सैकड़ों में है। यहां कान्वेंट स्कूलों की तरह हर विषय का टाइम टेबल बना है और हर घंटी में टन-टन घंटा भी बजता है। गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए हर कक्षा के लिए क्लास टीचर और मॉनीटर बने हैं। प्रभारी प्रधानाध्यापक पूजा गुप्ता सबकी लीडर हैं। स्कूल का संचालन पूरी तरह से स्कूल प्रबंध समिति यानी एसएमसी के हाथ में है।

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घोरावल के प्राथमिक विद्यालय प्रथम को भी चार साल पहले उन्हीं परिषदीय स्कूलों में गिना जाता था जो सामान्य तरीके से संचालित होते थे। लेकिन बदलते समय के साथ इस स्कूल को संवारने के लिए यहां के कुछ अभिभावकों ने संकल्प लिया। फिर क्या एसएमसी के अध्यक्ष लालजी तिवारी के नेतृत्व में इसे संवारने की दिशा में कदम बढ़े। सबसे पहले स्कूल को इन लोगों ने प्रयास करके किसी तरह से अंग्रेजी माध्यम स्कूल की श्रेणी में शामिल करा दिया। फिर अधिकारियों से मिलकर, उनसे व्यक्तिगत अनुरोध करके शिक्षकों की कमी को पूरा कराने के लिए लग गए। उसमें सफलता मिली तो शिक्षकों की संख्या तीन से छह हो गई। कक्षा से एक पांच तक के स्कूल में छह शिक्षकों को किस तरह से पढ़ाना है, क्या पढ़ाना है, बच्चों में शिक्षा के साथ संस्कार भी हो इसलिए किस तरह का माहौल देना है इसके लिए एसएमसी के नेतृत्व में अभिभावक स्वयं आगे आए। फिर क्या स्कूल की तस्वीर बदलते देर नहीं लगी और आज यहीं प्राइमरी स्कूल कान्वेंट स्कूलों को टक्कर दे रहा है। खास बात तो यह कि यहां गरीब अभिभावकों को भी साथ लेकर चला जाता है।

प्रवेश के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा

अंग्रेजी माध्यम प्राइमरी स्कूल में प्रवेश के लिए काफी बच्चे हर साल टेस्ट देते हैं। आलम यह है कि वर्ष 2017 से इसे अंग्रेजी माध्यम में संचालित किया जा रहा है। वर्ष 2018 में जब पहली बार कक्षा एक में प्रवेश कराना हुआ तो स्कूल प्रबंध समिति ने निर्णय लिया कि टेस्ट के आधार पर बच्चों का प्रवेश लिया जाएगा। फिर क्या जब आवेदन मांगे गए तो 250 बच्चों ने आवेदन किया। प्रवेश करीब 60 का हुआ। इसी तरह 2019 में भी यहां 250 से अधिक बच्चों ने टेस्ट दिया लेकिन प्रवेश 70 का हुआ। यानी यहां प्रवेश के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है।

इसी तर्ज पर खोलना पड़ा दूसरा स्कूल

अभिभावकों की एकता के दम पर बुलंदी तक पहुंचने वाले इस स्कूल में जब प्रवेश को लेकर मारामारी मची तो शिक्षा विभाग ने यहां से शेष बचने वाले बच्चों के लिए पास के ही मल्टी स्टोरी बिङ्क्षल्डग घोरावल में दूसरा अंग्रेजी माध्यम का स्कूल खोला। वहां भी इसी तरह का इंतजाम किया गया है। हालांकि वहां अभी काफी बदलाव की जरूरत है। ऐसा इस लिए किया गया क्योंकि जो बच्चे प्रवेश घोरावल प्रथम में नहीं करा पाए वे इसमें करा लें।

कान्वेंट स्कूल जैसी सुविधा

जिस अंग्रेजी माध्यम के प्राइमरी स्कूल को अभिभावकों ने मिलकर संवारा है उसमें अगर आप जाते हैं तो वहां किसी कान्वेंट स्कूल से कम सुविधा नहीं मिलेगी। यहां हर बच्चे को बैठने के लिए बेंच व कुर्सी, स्वच्छ वातावारण, शुद्ध पेयजल का इंतजाम, स्पोर्ट डे के दिन लोवर व टी-शर्ट बाकी दिन दूसरा ड्रेस, हर कक्षा के लिए कक्षाध्यापक, हर घंटी के हिसाब से टाइमटेबल आदि की व्यवस्था की गई है। यहीं वजह है कि यहां लालजी तिवारी जैसे कई लोगों ने अपने बच्चों का नाम नर्सरी विद्यालय से कटवाकर इस स्कूल में कराया।

सोच ने बदली तस्वीर

नजीर बनने के लिए इस स्कूल के अभिभावकों व शिक्षकों ने मिलकर स्कूल की तस्वीर बदली है। स्कूल प्रबंध समिति के अध्यक्ष लालजी तिवारी बताते हैं कि चिराग तले अंधेरा की कहावत को सुनते-सुनते कान पक गया था। क्योंकि यहीं पर बीआरसी है। यहां ब्लाक के शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। अक्सर सुनने को मिलता था कि शिक्षक कहते कि स्कूलों की दशा सुधारने के लिए प्रशिक्षण में कहा जाता है, लेकिन जिस जगह प्रशिक्षण होता है उसी स्कूल की स्थिति खराब है। फिर क्या 2017 में इस धब्बे को मिटाने के लिए तत्कालीन खंड शिक्षा अधिकारी सुनील ङ्क्षसह के साथ मिलकर बैठक की गई। बैठक के आधार पर स्कूल में अभिभावकों द्वारा ही सबकुछ उपलब्ध कराने का निर्णय लिया गया। इसमें अध्यक्ष के साथ ही उपाध्यक्ष डा. हरिशंकर सिंह, सदस्य बृजेश सिंह, राजपति, संतोष कुमार गुप्ता, आनंद मोदनवाल, अवधेश आदि का सकारात्मक सहयोग रहा है।

नामांकन वृद्धि

वर्ष     छात्र संख्या

2016    158

2017    171

2019    233


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