'मैं इस इंतजार में बैठा था कि कोई तो हिंदी में भाषण देगा' गांधी जी ने हिंदी पर भी किया था कटाक्ष
मैं इस इंतजार में बैठा था कि कोई तो हिंदी में भाषण देगा। हिंदी उर्दू न सही कम से कम मराठी या संस्कृत में ही कोई कुछ कहता लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। 'मैं इस इंतजार में बैठा था कि कोई तो हिंदी में भाषण देगा'। हिंदी, उर्दू न सही कम से कम मराठी या संस्कृत में ही कोई कुछ कहता लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इन शब्दों से नाराजगी महात्मा गांधी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 21 जनवरी 1942 को आयोजित रजत जयंती समारोह में वक्ताओं द्वारा हिंदी में भाषण नहीं दिए जाने पर जताई थी। कारण मात्र यह था कि समारोह में सभी लोगों ने अंग्रेजी में भाषण दिया था।
महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती पूरे देश में मनाई जा रही है। पिछले माह ही केंद्रीय गृहमंत्री ने जब राष्ट्र भाषा हिंदी की बात की थी तो जब कुछ नेताओं ने जमकर हो-हल्ला मचाया था। ऐसे लोगों को गांधी जी के उस भाषण को भी याद करने की जरूरत है। जब बापू ने बीएचयू में अंग्रेजी में भाषण देने वालों को कहा था कि अंग्रेजों को हम गालियां देते हैं कि उन्होंने हिंदुस्तान को गुलाम बना रखा है, लेकिन अंग्रेजों के तो हम खुद ही गुलाम बन गए हैं।
कोई दूसरी जगह होती तो शायद बर्दाश्त कर लिया जाता
गांधी जी ने कड़े शब्दों में कहा, कोई दूसरी जगह होती तो शायद यह सब बर्दाश्त कर लिया जाता, मगर यह तो हिंदू विश्वविद्यालय है। जो बातें इसकी तारीफ में अभी कई गई है उनमें सहज ही एक आशा यह भी प्रकट की गई कि यहां के अध्यापक और विद्यार्थी इस देश की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता के जीते-जागते नमूने होंगे। विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए बापू ने जापान का जिक्र किया था। कहा, जापान के लड़कों और लड़कियों ने जो कुछ पाया है, अपनी मातृभाषा के जरिए ही पाया है न कि अंग्रेजी के जरिए।
मालवीय जी ने तो मुंह मांगी तनख्वाहें देकर यहां अच्छे से अच्छे अध्यापक जुटा रहे हैं। लोग छोटी-छोटी बातों के लिए भूख हड़ताल तक कर लेते हैं। अगर ईश्वर उन्हें बुद्धि दें तो वे क्या कह सकते हैं, हमें अपनी मातृभाषा में पढ़ाओ। गांधी जी का यह भाषण गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की पुस्तक 'अंतिम जन' में पांच साल पहले प्रकाशित हुई थी।