सेहतनामा.. शहद का सेवन करें और फिट रहें लंबे समय तक
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में स्वास्थ्य रक्षा में शहद यानी मधु का महत्वपूर्ण स्थान है।
केबी रावत, वाराणसी : आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में स्वास्थ्य रक्षा में शहद यानी मधु का महत्वपूर्ण स्थान है। शहद में ग्लूकोज व अन्य शर्कराएं तथा विटामिन, खनिज और अमीनो अम्ल भी होता है जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और उतकों के बढ़ने में मददगार होते हैं।
प्राचीन काल से ही शहद को जीवाणु-रोधी के रूप में जाना जाता रहा है। आयुर्वेद में शहद को त्वचा और आखों की बीमारियों में इस्तेमाल किया जाता था। इसके अलावा जख्मों पर रोपण के लिए लगाया जाता था।
राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय , वाराणसी के वैद्य अजय कुमार के अनुसार मधु को परम योगवाही माना गया है अर्थात आयुर्वेद की औषधियों को शहद के साथ लेने से इनके गुणों में वृद्धि हो जाती है। शहद किसी औषधि की क्षमता को भी बरकरार रखती है और उसके असर को लंबा करती है। शहद के सेवन करने से पहले वैद्य से परार्मश अवश्य ले, खुद वैद्य बनने की कोशिश नहीं करना चाहिए। त्वचा रोग में शहद का उपयोग किया जाता है। यह एंटीसेप्टिक के रूप में कार्य करता है। यह दर्द को शांत और ठंडा करता है। यह शरीर को ऊर्जा और गर्मी भी देती है। गर्म पानी कप में एक या दो चम्मच शहद मिला कर पीने से वजन कम होता है। एक साल से कम पुराना शहद वृहणकारी होता है यानी वजन बढ़ाता है। ऊष्ण अवस्थाओं में या गर्म करके खाने पर शहद बहुत हानिकारक होता है। वहीं धूप से वापस आकर शहद का सेवन कभी भी नहीं करना चाहिए। यह स्थिति नुकसानदायक साबित हो सकती है।