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वाराणसी मे जयघोष के साथ हुआ होलिका दहन, ढोल-नगाड़े के साथ फाग गीत गाते हुए युवाओं ने मचाया धमाल

होली की पूर्व संध्या पर होलिकोत्सव रविवार को धूमधाम से मनाया गया। जयकारे के साथ शहर चौराहों व ग्रामीण इलाके के खुले मैदानों में होलिका जलाई गई। युवाओं व बच्चों की टोली ने ढोल- नगाड़े की थाप पर फगुआ गीत गाते हुए होलिका के लिए दिनभर चंदा एकत्र किया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sun, 28 Mar 2021 09:30 PM (IST)Updated: Mon, 29 Mar 2021 10:18 AM (IST)
वाराणसी मे जयघोष के साथ हुआ होलिका दहन, ढोल-नगाड़े के साथ फाग गीत गाते हुए युवाओं ने मचाया धमाल
जयकारे के साथ शहर चौराहों व ग्रामीण इलाके के खुले मैदानों में होलिका जलाई गई।

वाराणसी, जेएनएन। रंगों के पर्व होली की पूर्व संध्या पर होलिकोत्सव रविवार को धूमधाम से मनाया गया। जयकारे के साथ शहर चौराहों व ग्रामीण इलाके के खुले मैदानों में होलिका जलाई गई। युवाओं व बच्चों की टोली ने ढोल- नगाड़े की थाप पर फगुआ गीत गाते हुए होलिका के लिए दिनभर चंदा एकत्र किया।देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी रंग पर्व होली से एक दिन पूर्व चटख रंगों से भीगी नजर आई। दोपहर से ही उत्साह और उमंग गलियों-सड़कों से लेकर घरों तक छाया। जात-पात, धर्म-आय की सीमाओं से परे लोग होली के हुल्लड़ में एक रंग नजर आए। होलिका सजाई और कुछ स्थानों पर इसमें कोरोना का पुतला स्थापित किया। उसे धधकती आग में झोंककर दुश्वारियों से मुक्ति की कामना की।

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पुराने गिले-शिकवे को होलिका की आग में झोंका और एक-दूसरे को गले लगाया। हालांकि कोरोना का हवाला देते हुए इस पर कुछ लोगों ने टोका और संक्रमण से बचाव के लिए शारीरिक दूरी महत्वपूर्ण होने का ध्यान दिलाया। दिन भर होलिका को दिया विस्तार, शाम को दहनवसंत पंचमी के दिन से ही लोग टोले-मोहल्ले के नुक्कड़ों पर गाड़ी गई रेड़ को रविवार को उपले से विस्तार दिया। कुछ जगहों पर होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमाएं लगाई गईं थीं तो कुछ जगहों पर कोरोना वायरस का पुतला लगाया था। गोधूलि बेला होते ही टोले मोहल्ले के लोगों की होलिका के इर्द-गिर्द जुटान शुरु हो गई। लोग एक-दूसरे को रंग और अबीर लगाकर एक दूसरे को होली की बधाई दिए। इसके बाद पुरोहितों ने गंगाजल से होलिका की चौहद्दी को पवित्र किया। उसके बाद शाम सात से लेकर मध्यरात्रि के 12:39 मिनट तक होलिका दहन किया गया।

हालांकि रविवार होने के कारण कुछ स्थानों पर रात 12 बजे के बाद होलिका जलाई गई। कोरोना से मुक्ति की लालसा में लोगों ने की परिक्रमामालिस से उतरी खरी उबटन सहित गुझिया और अबीर-गुलाल से पूजन-अर्चन करने के लिए झुंड के झुंड महिला-पुरुष, बच्चे-बूढ़े और युवा सभी इकट्ठा थे। पुरोहित ने जैसे ही मंत्र पढ़ा और पूजा शुरू की। शुभ मुहूर्त में होलिका में आग लगाई तो हर ओर होली है... का शोर रात के सन्नाटे को चीरता रहा। कोरोना महामारी से जीवन की मंगल कामना संग सुख-समृद्धि की प्राप्ति तथा रोग-शोक से मुक्ति की लालस लिए लोगों ने धूं-धूं कर होलिका को जलाती अग्नि की लपटों को नमन करते हुए परिक्रमा किया। परिक्रमा के साथ उबटन को इसमें होम कर दिया। होलिका की राख को बहुतेरे अपने आंचल और कपड़ों में गठिया कर घर भी ले गए। इसके साथ ही अबीर-गुलाल संग रंग उड़ने का सिलसिला शुरू हो गया। ढोल-नगाड़ा बजाते हुए होली की टोलियां त्योहार के हुलास की मुनादी करने लगे। गीत-गवनई पर रातभर झूमे युवाहोली की रंगत पूरी रात छाई रही। बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक पर्व पर लोगों का उमंग और उत्साह देखते ही बन रहा था। कई जगह कालोनियों में लोग डीजे लगाकर होली और फिल्मी गानों के धुनों पर थिरकते रहे।

किवदंती है कि होलिका प्रह्लाद को जलाने के लिए प्रयासरत थी। जिसके चलते होलिका खुद अपने बनाए चक्रव्यूह में फंस गई और वह खुद ही आग से जल गई। यह गलत कर्मों पर जीत को दर्शाता है। कृषि प्रधान देश में इस दिन नव वर्ष की शुरुआत होती है। किसान इस दिन गेहूं के बाल, उबटन को पेड़ों व लकडिय़ों के बीच जलाते हैं। इसी क्रम में जगह-जगह रेड़ का पेड़ गाड़ कर होलिका का रूप दिया गया। अबीर, गुलाल, रोली, रक्षा, बताशा, अगरबत्ती, धूपबत्ती, माला, फूल आदि से होलिका के समक्ष पूजन-अर्चन के बाद मुहूर्त के अनुसार होलिका में आग लगाई गई। साथ ही जोगीरा का दौर शुरू हो गया जो देर रात तक चलता रहा।

मान्यता है कि होली के एक दिन पहले होलिकोत्सव मनाई जाती है जो अनादिकाल की परंपरा है। इस मौके पर जहां लोग होलिका के चारों ओर चक्कर लगाते हुए जोगीरा करते हैं, वहीं ध्वनि विस्तारक यंत्र के माध्यम से बजने वाली फागुनी गीतों पर नृत्य आदि का माहौल होता है। होलिका में आग लगने के बाद से ही रंग खेलने का दौर शुरू हो जाता है जिसका सबसे ज्यादा आनंद छोटे बच्चे एवं युवा लेते हैं। नगर के विभिन्‍न जगहों पर होलिकोत्सव के साथ होली की शुरूआत की गई। होलिका सजाने के लिए युवा व बच्चे एक सप्ताह से झाड़-फूस व लकड़ी एकत्र करने में जुटे थे। सुबह से ही युवाओं ने टोली बनाकर घर-घर जाकर चंदा वसूला। देर रात तक जयकारे के साथ फाग गीत गाते, कबीरा बोलते लोगों ने होलिका जलाई।


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