BHU में हिंदी भाषी छात्रों ने कुलपति के विरोध में देर रात परिसर में चिपकाए सैकड़ों पोस्टर
सुबह पोस्टर सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद हड़कंप मच गया जबकि प्रशासनिक अधिकारियों की देखरेख में सुबह यह पोस्टर भी कई जगहों पर हटाए गए।
वाराणसी, जेएनएन। बीएचयू में एक बार फिर हिंदी आैर अंग्रेजी भाषा की महत्ता को लेकर विवाद की नौबत बनते नजर आ रही है। दरअसल पूर्व में अभ्यर्थियों से अंग्रेजी में इंटरव्यू देने को लेकर विवि प्रशासन के साथ ही कुलपति भी निशाने पर आ गए थे। अब परिसर में कुलपति के खिलाफ मंगलवार की देर रात सैकड़ों पोस्टर चिपकाकर उनका विरोध किया जा रहा है। इस मामले में सुबह पोस्टर सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद हड़कंप मच गया, जबकि प्रशासनिक अधिकारियों की देखरेख में सुबह यह पोस्टर भी कई जगहों पर हटाए गए।
बीएचयू में प्राचीन इतिहास विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए हाल ही में हुए साक्षात्कार में हिंदी भाषी अभ्यर्थियों संग भेदभाव का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। इस मामले की एमएचआरडी, पीएमओ, और राष्ट्रपति से शिकायत के बाद अब परिसर में विरोध स्वरूप पोस्टर वार भी शुरू हो गया है। मंगलवार की देर रात परिसर में दर्जनों स्थानों पर हिंदी भाषी छात्रों ने कुलपति के विरोध में पोस्टर चस्पा किए।
विश्वविद्यालय में चल रही साक्षात्कार प्रक्रिया में अभ्यर्थियों पर अंग्रेजी की अनिवार्यता थोपने को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। मगर इस बार अभ्यर्थियों ने सामने आकर न सिर्फ ट्वीटर के माध्यम से पीएमओ, एमएचआरडी, राष्ट्रपति से इसकी शिकायत की, बल्कि इस संदर्भ में पत्र भी लिखा। वहीं प्रकरण सामने आने के बाद से विवि के हिंदी भाषी छात्रों में भी रोष है। विरोध स्वरूप बीती रात परिसर में जगह-जगह 'कुलपति मुर्दाबाद' 'राजभाषा का अपमान-नहीं सहेगा हिंदुस्तान' आदि नारे लिखे पोस्टर चस्पा कर दिए गए।
विश्वविद्यालय प्रशासन के मुताबिक शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा को देखते हुए अंग्रेजी भाषा को तवज्जो देना वक्त की मांग है। इसी का ध्यान नियुक्तियों में भी दिया जा रहा है, ताकि बीएचयू भी विश्व के शीर्ष शिक्षण संस्थानों में शामिल हो सके। ज्ञात हो कि प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति अौर पुरातत्व विभाग के लिए तीन जनवरी को होलकर भवन में साक्षात्कार प्रक्रिया आयोजित थी। आरोप है कि इसमें हिंदी भाषी अभ्यर्थियों संग न सिर्फ भेदभाव किया गया, बल्कि अपमानजनक व्यवहार भी किया गया।
इंस्टीट्यूट आफ इमिनेंस का हवाला देते हुए बताया गया कि हमें 1000 करोड़ रुपये का अनुदान मिलना है। इसके तहत हमें यह भी अधिकार है कि हम विदेशों से शिक्षक बुला सकते हैं। इसलिए हमें हिन्दी भाषा में साक्षात्कार की आवश्यकता नहीं है। शिकायत के मुताबिक जब इस मुद्दे पर अभ्यर्थी डा. कर्ण कुमार ने आपत्ति जताई तो न सिर्फ अंग्रेजी भाषा में साक्षात्कार के लिए दबाव बनाया गया, बल्कि उन्हें मानसिक रूप से प्रताडि़त भी किया गया। शिकायतकर्ता के मुताबिक इस तरह का व्यवहार न सिर्फ मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि मानवाधिकारों का हनन भी है।