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वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद मामले में पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई टली, अगली तिथि पांच अगस्त को

वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद मामले में पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) आशुतोष तिवारी के आदेश के खिलाफ दाखिल निगरानी याचिका पर मंगलवार को सुनवाई टल गई। सुनवाई हेतु अगली तिथि पांच अगस्त को निर्धारित कर दी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 27 Jul 2021 03:31 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jul 2021 03:31 PM (IST)
वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद मामले में पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई टली

वाराणसी, जागरण संवाददाता। ज्ञानवापी मस्जिद मामले में पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) आशुतोष तिवारी के आदेश के खिलाफ दाखिल निगरानी याचिका पर मंगलवार को सुनवाई टल गई। उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजूमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से इस याचिका पर अपना पक्ष रखने के लिए अदालत से समय मांगा। जिला जज ओमप्रकाश त्रिपाठी ने इन पक्षकारों को सुनवाई हेतु अगली तिथि पांच अगस्त को निर्धारित कर दी। सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ और अंजूमन इंतजामिया कमेटी ने सिविल जज के आदेश के खिलाफ जिला जज की अदालत में निगरानी याचिका दायर किया है।

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इस याचिका पर नौ जुलाई को सुनवाई के दौरान वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने आपत्ति करते हुए याचिका को निरस्त करने की दलील दी थी। वादमित्र की आपत्ति पर अपना पक्ष रखने के लिए सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ के अधिवक्ता अभय नाथ यादव और अंजूमन इंतजामिया मसाजिद के अधिवक्ता रईस अहमद अंसारी व मुमताज अहमद ने समय मांगा था जिसे मंजूर करते हुए अदालत ने 27 जुलाई की तिथि मुकर्रर की थी। इस मामले में आठ अप्रैल को ज्ञानवापी मस्जिद मामले में पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के मामले में वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की अपील (प्रार्थना पत्र) को कोर्ट ने अपने फैसले के दौरान मंजूर कर लिया है। वहीं इस मुकदमे के मामले में सुनवाई के क्षेत्राधिकार को लेकर सुन्‍नी सेंट्रल वक्‍फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने सिविज जज सीनियर डिवीजन फास्‍ट ट्रैक के कोर्ट में सुनवाई करने के लिए अदालत में क्षेत्राधिकार को चुनौती दी थी। बीती 25 फरवरी 2020 को सिविल जज सीनियर डिवीजन ने इस चुनौती को खारिज कर दिया था। विवादित स्थल विश्वनाथ मंदिर का एक अंश है इसलिए एक अंश की धार्मिक स्थिति का निर्धारण नहीं किया जा सकता, बल्कि ज्ञानवापी परिसर का भौतिक साक्ष्य लिया जाना जरूरी है। जिसे पुरातात्त्विक विभाग जांचकर वस्तुस्थिति स्पष्ट कर सकता है कि ढांचा के नीचे कोई मंदिर था अथवा नहीं। तथ्‍यों के आधार पर प्राचीन विश्वनाथ मंदिर के ध्वस्त अवशेष प्राचीन ढांचा के दीवारों में अंदरुनी और बाहरी तौर पर विद्यमान बताए गए हैं। पुराने मंदिर के दीवारों और दरवाजों को चुनकर वर्तमान ढांचा का रुप दिया गया बताया है। कहा गया है क‍ि पुराने विश्वनाथ मंदिर के अलावा पूरे परिसर में अनेक देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर थे जिनमें से कुछ आज भी विद्यमान हैं। वहीं वर्तमान ज्योर्तिलिंग की स्थापना 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। यह भी दलील दी गई कि अयोध्या केस में भी पुरातात्विक विभाग से रिपोर्ट मंगाई गई थी, जिसके बाद ही अंतिम फैसला आया था।


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