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Happy Eid-ul-Fitr 2020: Varanasi के गोविंदपुरा और हुसैनपुरा में सबसे पहले मनी थी ईद

ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक ईद की खुशियां सबसे पहले वाराणसी स्‍िथत दालमंडी के निकट गोविंदपुरा व हुसैनपुरा मोहल्लों में मनाई गई थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 25 May 2020 12:49 PM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 12:49 PM (IST)
Happy Eid-ul-Fitr 2020: Varanasi के गोविंदपुरा और हुसैनपुरा में सबसे पहले मनी थी ईद
Happy Eid-ul-Fitr 2020: Varanasi के गोविंदपुरा और हुसैनपुरा में सबसे पहले मनी थी ईद

वाराणसी, [मुहम्मद रईस]। प्रचीनतम नगरी काशी अपने दामन में इतिहास के कई अनछुए पहलुओं को समेटे हुए है। इन्हीं में शुमार है यहां पहली बार ईद का जश्न मनाने की दास्तान। हिंदुस्तान में मुसलमानों के आगमन से पहले ही बनारस में मुस्लिम बस्तियां बस गई थीं। ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक ईद की खुशियां सबसे पहले दालमंडी के निकट गोविंदपुरा व हुसैनपुरा मोहल्लों में मनाई गई थी।

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12वीं शताब्दी में बनारस व कन्नौज राजपूत शासक गोविंद चंद्र गहरवार के अधीन था। अरबी व तुर्क नस्ल के घोड़ों के तुर्क व्यापारियों को आमंत्रित कर गोविंद चंद्र ने उन्हें दालमंडी के नजदीक बसाया। तमाम सहूलियतें और सुविधाएं दीं। हुसैन अली नामक व्यापारी ने दो बस्तियां बसाईं। एक का नाम गोविंद चंद्र के नाम पर गोविंदपुरा पड़ा तो दूसरे का नाम हुसैनपुरा हो गया।

घोड़ों के घास के लिए पास में एक बस्ती और बसी, जिसे आज भी घसियारी टोला के नाम से जाना जाता है, जबकि आबादी बढऩे पर गोविंदपुरा दो भागों में बंट गया। एक गोविंदपुरा खुर्द और दूसरा गोविंदपुरा कलां। इतिहासकार डा. मोहम्मद आरिफ के मुताबिक 12वीं शताब्दी में मुसलमानों के आगमन के साथ ही ईद मनाने के दृष्टांत मिलते हैं। गोविंद चंद्र के शासन काल में बसाई गई बस्तियों गोविंदपुरा व हुैसनपुरा में सबसे पहले ईद की नमाज पढ़े जाने के संकेत मिलते हैं।

1439 साल पहले मनी थी पहली ईद

-इस्लामिक मामलों के जानकार मौलाना अजहरुल कादरी ने बताया कि सन् 2 हिजरी (लगभग 624 ई.) में सबसे पहले ईद मनाई गई। वो पैगंबर-ए-इस्लाम हरजत मोहम्मद (स.) का दौर था। उन्होंने सन् 2 हिजरी में पहली बार ईद की नमाज पढ़ी और ईद की खुशियां मनाई। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष दुनिया ईद की खुशियों में डूब जाती है।

काशी ने कुतुबुद्दीन को किया था हैरान

इतिहासकार डॉ मोहम्मद आरिफ बताते हैं कि 12वीं शताब्दी के आखिर में बनारस के मुसलमानों की ईद को देखकर तत्कालीन बादशाह कुतुबुद्दीन ऐबक को घोर आश्चर्य हुआ था। क्योंकि ईद की नमाज के बाद बनारस के सौहार्दपूर्ण माहौल में हिंदू-मुसलमान की अलग- अलग पहचान करना मुश्किल था। यह थी बनारसी तहजीब। ईद की खुशियां बनारस में जितने सौहार्दपूर्ण और अमनो-सुकून के साथ मनाई जाती है, उतनी दुनिया के किसी अन्य हिस्से में देखने को नहीं मिलती।


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