ईद-उल-अजहा के लिए वाराणसी में सजा बकरों का बाजार, खरीदारों का हो रहा है इंतजार
ईद-उल-अजहा में कुर्बानी के लिए वाराणसी में सजा बकरों का बाजार खरीदारों का हो रहा है इंतजार।
वाराणसी, जेएनएन। कोरोना महामारी के दौर में ईद-उल-अजहा का त्योहार गाइडलाइन के मुताबिक मनाने को लेकर लोगों को जहां जहनी तौर पर तैयार किया जा रहा है, वहीं कुर्बानी का जानवर बेचने के ऑनलाइन प्लेटफार्म से लेकर मोहल्ले- मोहल्ले बकरा के बाजार सज गए हैं। कुछ लोग जो बकरों को सिर्फ कुर्बानी देने के लिए ही पालते हैं उनके सामने कोई समस्या नहीं है। मुस्लिम बहुल इलाकों में इन दिनों सिर्फ पर्व के लिए कुर्बानी देने के लिए बकरों और दुंबा की ही अधिक चर्चा है। लाकडाउन की वजह से खरीदार भी कम हैं।
बेनियाबाग मैदान में लगने वाला अस्थाई बकरा मार्केट इस बार नहीं लग पाया है। ऐसे में इटावा, मैनपुरी, कानपुर, बहराइच, गोरखपुर, कन्नौज, मऊ, फतेहपुर सहित पश्चिमी यूपी के व्यापारी गली-गली फेरी लगाकर कुर्बानी के जानवर बेचने को विवश हैं। बड़ी बाजार, बकरिया कुंड, लल्लापुरा, पीलीकोठी, सरैंया आदि क्षेत्रों में छोटे-छोटे बाजार भी लगे हैं। गोरखपुर के व्यापारी सोहराब बताते हैं कि वे तीन दिन पहले 30 बकरे लेकर बड़ी बाजार पहुंचे थे। तीन दिन में सिर्फ छह बकरे ही बिक पाए हैं। सोहराब के मुताबिक लोग आ जरूर रहे हैं, लेकिन सिर्फ भाव लगाकर चले जा रहे हैं। इस बार कुर्बानी के जानवर भी वाजिब दाम पर बेचे जा रहे हैं, बावजूद इसके खरीदार कम हैं। बकरे चार हजार से लेकर 20 हजार रुपये तक में मिल रहे हैं। वहीं भेड़ 15 से 35 हजार रुपये तक में उपलब्ध हैं।
कुर्बानी के लिए पालते हैं बकरे : शहर में बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो तीस-चालीस हजार की कीमत वाले बकरे नहीं खरीद सकते। ऐसे लोग अजमेरी व तोतापरी नस्ल के दो से तीन माह के बच्चों को चार से पांच हजार रुपए में खरीद कर पालते हैं। साल भर में ये बच्चे 50 किलो तक के हो जाते हैं। वहीं ऐसे जानवरों की कुर्बानी को इस्लाम में अफजल भी बताया गया है।