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सोनभद्र में नदी की धारा से गुजरें या फिर करें 40 किमी का सफर, जिला विकास की राह में पिछड़ा

पिंडारी गांव के लोग इस बार मतदान का बहिष्कार करने के मूड में हैं। उनका आक्रोश स्वभाविक है। उन्हें वोट देने के लिए सुगम रास्ता तय करना भी हो तो कुल पड़ेगा 40 किलोमीटर। अब जाहिर सी बात है कि ये कठिनाई मामूली नहीं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Fri, 24 Sep 2021 10:25 AM (IST)Updated: Fri, 24 Sep 2021 10:25 AM (IST)
सोनभद्र में नदी की धारा से गुजरें या फिर करें 40 किमी का सफर, जिला विकास की राह में पिछड़ा
नदी पर बना पुल जो अपने निर्माण वर्ष के मात्र दो वर्षों में ही धराशाई हो गया।

सोनभद्र, जागरण संवाददाता। बीजपुर के पिंडारी गांव के लोग इस बार मतदान का बहिष्कार करने के मूड में हैं। उनका आक्रोश स्वभाविक है। उन्हें वोट देने के लिए सुगम रास्ता तय करना भी हो तो कुल पड़ेगा 40 किलोमीटर। अब जाहिर सी बात है कि ये कठिनाई मामूली नहीं। ऐसा इसलिए कि नदी पार करने के लिए बना पुल कब का धराशाई हो गया और उसे सुनने वाला कोई नहीं। ग्रामीण अंचलों में सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे ग्रामीणों में आक्रोश व्याप्त है। ग्रामीण आगामी विधानसभा चुनाव में जोरशोर से मुद्दो को उठाकर चुनाव के बहिष्कार करने का मन बना रहे है।

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म्योरपुर ब्लाक के पिंडारी ग्राम सभा मे बिच्छी नदी पर बना पुल जो अपने निर्माण वर्ष के मात्र दो वर्षों में ही धराशाई हो गया। ग्रामीणों को अपने ही टोलो तक जाने में जान मुसीबत में डालकर नदी पार कर जाना पड़ेगा या फिर लगभग 40 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ रहा है। अजीब विडंबना है देश को आजाद हुए 71 साल हो गए परन्तु ग्रामीण आदिवासी इलाकों में विकास कार्य हुए ही नही, हुए भी तो वो लापरवाही की भेंट चढ़ गए।पिंडारी ग्राम सभा की कुल लगभग दस हजार है। आधी आबादी नदी के इस पार और आधी नदी के उस पार रहती है। ग्रामीण नदी पार कर किसी तरह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे थे। तत्कालीन सरकार ने ग्रामीणों की सुध ली और 2013-14 में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत छ किलोमीटर लंबी सड़क एवं बीच में पड़ने वाली बिच्छी नदी पर एक पुल खड़ा करा दिया।

ग्रामीणों ने कुछ राहत की सांस ली लेकिन 2016 में बरसात में नदी में पानी का बहाव हो जाने से पुल का एक पावा धराशाई हो गया। ग्रामीणों के माथे पर फिर चिंता की लकीरें खिंच गईं। ग्रामीण परेशान हो उठे। बार बार शासन प्रशासन का दरवाजा खटकाते रहे परन्तु अंजाम शून्य रहा। पुल बनना तो दूर कोई देखने तक नही पहुंचा।रही सही कसर 2018 में आई बरसात ने पूरी कर दी। पुल का एक पावा और बरसात के पानी के साथ चलता बना।पिंडारी ग्राम सभा के मनरहवा, नगराज,कहमा ढांड,सतपेड़वा समेत कई टोलों के ग्रामीण पिंडारी तक पहुंचने के लिए नदी पार कर जोखिम भरा सफर करते हैं। बच्चे स्कूल जाने के लिए कपड़े उतार कर नदी से गुजरते हैं। हमेशा हादसे का खतरा बना रहता है। पिछली बरसात में ग्रामीण बच्चों ने स्कूल जाने के लिए नदी पर एक लकड़ी का जुगाड़ू पुल तैयार किया परन्तु वो भी ज्यादा नही चल सका।

रामचन्द्र, जगमति, प्रमोद, बाबूराम, रामप्रीत, रामकिशुन पनिका खिलावन पनिका, प्रह्लाद गौड़ आदि ने बताया कि नदी का पुल टूट जाने से हम लोगों के समक्ष भारी मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। बच्चों को स्कूल भेजते हुए भी डर लगता है कि नदी पार करते हुए कोई अनहोनी ना हो जाए। बरसात के दिनों में बच्चों का स्कूल छुड़वाना पड़ता है। उस वक्त नदी में पानी का स्तर बढ़ जाता है। पूर्व ग्राम प्रधान धीरेंद्र कुमार जायसवाल ने बताया कि बिच्छी नदी पर बना पुल ग्रामीणों की लाइफ लाइन का काम कर रहा था।

पुल के टूटने से ग्रामीणों के समक्ष मुसीबत खड़ी हो गयी। मैने कई बार शासन को पत्र भी लिखा, प्रशासन से भी गुहार लगाई परन्तु किसी ने एक नही सुनी। छोटे - छोटे बच्चे नदी पार कर स्कूल पढ़ने जाते हैं। हमेशा डर बना रहता है। ग्राम प्रधान रामसंजीवन भारती बताते हैं कि हमारे गांव में और किसी तरह की कमी नही है। बस ये पुल बन जाए तो गांव में विकास की लहर दौड़ पड़ेगी।ग्रामीणों ने कहा कि चुनाव सिर पर है ऐसे में हम लोकतंत्र के इस महापर्व को कैसे बना पाएंगे वोट डालने के लिए हम लोगो को 40 किलोमीटर का सफर तय कर पिंडारी स्थित पोलिंग बूथों तक जाना पड़ेगा ऐसे में ग्रामीण चुनाव का बहिष्कार करने को मजबूर हैं।


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